कुत्तों के हमले से नर चीतल की मौत, किया गया दाह संस्कार


अनूपपुर

जिले के राजेंद्रग्राम वन परिक्षेत्र अंतर्गत पटना बीट के जंगल में दोपहर, आवारा कुत्तों के द्वारा 3 वर्ष उम्र के नर चीतल पर हमला कर गंभीर रूप से घायल किए जाने पर, घटना स्थल पर ही मौत हो गई, घटना की जानकारी पर अधिकारी/कर्मचारी मौके पर पहुंचकर शाकाहारी वन्यप्राणी नर चीतल के शव को अपनी अभिरक्षा में लेते हुए वन परिक्षेत्र कार्यालय परिसर राजेंद्रग्राम लाकर पशु चिकित्सक लोकेश मोहवे,डॉक्टर रितु तिवारी,परिक्षेत्र सहायक बेनिवारी सत्यदेव सिंह,वन्यजीव संरक्षण अनूपपुर शशिधर अग्रवाल,वनरक्षक बीट पटना नागेंद्र सोनी,बीट करौंदी वनरक्षक प्रकाशशेखर परतेती,पटवारी हल्का लखौरा शेष नारायण सिंह,पूर्व अध्यक्ष प्रमोद मरावी की उपस्थिति एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर मृत चीतल के शव का पंचनामा कर, शव परीक्षण कराने बाद पूरे सम्मान से कफन,फूलमाला अगरबत्ती अर्पित करते हुए अंतिम संस्कार किया गया। आवारा कुत्तों द्वारा बीट पटना के कक्ष क्रमांक पी,एफ,184 के जंगल में यह चीतल विचरण कर रहा था के दौरान घर कर हमला कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया रहा है।

वरिष्ठता नियमों की अनदेखी पर सरकार की चुप्पी, शिक्षा विभाग में पारदर्शिता पर उठे सवाल


अनूपपुर 

जिले में कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा 2024-25 के लिए केंद्र अध्यक्ष और सहायक केंद्र अध्यक्षों की नियुक्ति में शासन के स्पष्ट दिशा-निर्देशों की अनदेखी शिक्षकों में नाराजगी और असंतोष का कारण बन गई है। मध्य प्रदेश शासन, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वरिष्ठता क्रम के आधार पर नियुक्तियाँ किए जाने के सख्त निर्देश थे, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) अनूपपुर द्वारा जारी सूची में इन नियमों का पूरी तरह उल्लंघन किया गया।

इस नियुक्ति प्रक्रिया में वरिष्ठ शिक्षकों को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया, जबकि शासन के आदेश के अनुसार पहले प्राचार्यों, फिर व्याख्याताओं, और उसके बाद उच्च माध्यमिक शिक्षकों को केंद्र अध्यक्ष नियुक्त किया जाना था। इसके बावजूद, जिन शिक्षकों को 2011, 2012, 2013 और 2014 में माध्यमिक शिक्षक को उच्च माध्यमिक शिक्षक मान लिया गया  पदोन्नति मिली थी, उन्हें उन शिक्षकों से अधिक वरिष्ठ मान लिया गया, जो 2006, 2007 और 2008 में उच्च माध्यमिक शिक्षक बने थे। यह स्पष्ट रूप से शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है और यह सवाल खड़ा करता है कि क्या इन नियुक्तियों में योग्यता और वरिष्ठता के बजाय किसी अन्य आधार पर चयन किया गया है।

शिक्षकों के अनुसार, मध्य प्रदेश शासन द्वारा 12 दिसंबर 2024 को जारी पत्र क्रमांक 778/1773/270/203 में यह स्पष्ट किया गया था कि वरिष्ठतम शिक्षकों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस निर्देश के बावजूद, जिस तरह से इस चयन प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, वह पूरी तरह मनमानी और पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। अगर शासन के निर्देशों को नजरअंदाज किया जा सकता है, तो यह शिक्षकों की मेहनत और उनके अधिकारों का खुला उल्लंघन है।

इस तरह की मनमानी न केवल वरिष्ठ शिक्षकों के साथ अन्याय है, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र की निष्पक्षता और ईमानदारी पर भी गंभीर सवाल उठाती है। जब एक स्पष्ट चयन प्रक्रिया पहले से निर्धारित थी, तो उसे दरकिनार कर कम अनुभव वाले शिक्षकों को नियुक्त करने के पीछे कौन से कारण थे? क्या यह चयन प्रक्रिया किसी दबाव में की गई? क्या इसमें किसी प्रकार का भ्रष्टाचार हुआ? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को देना होगा।

इस निर्णय के खिलाफ शिक्षकों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि सरकार वरिष्ठता सूची के अनुसार नियुक्तियाँ नहीं करती, तो वे उच्च स्तरीय जांच और कानूनी कार्रवाई की माँग करेंगे। यह फैसला उन शिक्षकों के अधिकारों को छीनने जैसा है, जिन्होंने वर्षों की मेहनत और सेवा के बाद अपनी वरिष्ठता अर्जित की थी। यदि इस तरह की मनमानी को नजरअंदाज किया गया, तो भविष्य में भी नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियाँ की जाएंगी और इससे योग्य शिक्षकों के साथ अन्याय होता रहेगा।

शिक्षकों की माँग है कि इस चयन प्रक्रिया की तुरंत जाँच कराई जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। वे चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर संज्ञान ले और यह सुनिश्चित करे कि आगे से नियुक्तियाँ पूरी पारदर्शिता और नियमों के तहत की जाएँ। यदि सरकार ने जल्द ही इस मामले में दखल नहीं दिया, तो शिक्षक आंदोलन का रास्ता अपना सकते हैं और जरूरत पड़ने पर वे न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाएँगे।

है। सरकार की चुप्पी इस विवाद को और गहरा रही है और इससे शिक्षकों का असंतोष बढ़ता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या शासन अपने ही बनाए नियमों का पालन करवाने में सक्षम है, या फिर यह मामला भी अन्य प्रशासनिक अनियमितताओं की तरह दबा दिया जाएगा? अब देखना यह है कि सरकार इस अन्याय को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है, या फिर यह शिक्षकों के हितों को नजरअंदाज करने का एक और उदाहरण बनकर रह जाएगा।

 एसईसीएल का मोबाइल मेडिकल यूनिट बना ‘कबाड़’, विभाग को लगा करोड़ों का चूना

*एसईसीएल ने 170 करोड़ की सीएसआर परियोजना को दी मंजूरी दूसरी ओर रिजल्ट शुन्य*


अनूपपुर

जिले के जमुना कोतमा कोल माइंस एरिया साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) द्वारा जमुना कोतमा कोल माइंस एरिया में शुरू किया गया मोबाइल मेडिकल यूनिट (MMU) वर्तमान में धूल फांक रहा है  सूत्रों की मानें तो इस यूनिट का उद्देश्य 25 किलोमीटर के दायरे में स्थित गांवों तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाना था लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है।

एसईसीएल ने इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत गांवों में रहने वाली आबादी को कई स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने का वादा किया था इन सेवाओं में ब्लड शुगर की जांच, गर्भावस्था परीक्षण, एल्ब्यूमिन और शर्करा की जांच, हीमोग्लोबिन (HB) की जांच, ऊंचाई और वजन मापना, दृष्टि परीक्षण, रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट और उच्च रक्तचाप की जांच शामिल थी इसके अतिरिक्त 35 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वार्षिक जांच का भी प्रावधान था  योजना में यह भी शामिल था कि दवाओं की आवश्यकता वाले मरीजों को (विशेषकर उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मिर्गी के रोगियों को) साप्ताहिक रूप से दवाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।

लेकिन वर्तमान में मोबाइल मेडिकल यूनिट एक शोपीस बनकर रह गया है यह यूनिट धूल से अटा पड़ा है और  बताया जा रहा है कि इसमें तैनात डॉक्टर और अन्य कर्मचारी बिना कोई काम किए ही वेतन ले रहे हैं  इस स्थिति से न केवल इस ई सी एल के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है बल्कि उन ग्रामीण आबादी को भी निराशा हाथ लगी है जिन्हें इस यूनिट से स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद थी। नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र ने बताया कि मोबाइल मेडिकल यूनिट को भी ‘डेंटिंग पेंटिंग’ करके तैयार किया गया था  सूत्र ने आगे आरोप लगाया कि किसी पुराने और बेकार कबाड़ को ही मरम्मत करके और रंग-रोगन करके मोबाइल मेडिकल यूनिट का रूप दे दिया गया जबकि कागजों पर इसे एक नई और आधुनिक इकाई दर्शाया गया  इस प्रकार  कथित तौर पर करोड़ों रुपये का चूना लगाया जा रहा है

इस पूरे मामले में भ्रष्टाचार की बू आ रही है एक तरफ जहां इस ई सी एल ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा देने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ  ज़मीनी स्तर पर स्थिति बिलकुल विपरीत है  मोबाइल मेडिकल यूनिट का संचालन बंद होने से  ग्रामीणों को  स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहना पड़ रहा है और एसईसीएल के पैसे पानी में बह रहे हैं  यह जांच का विषय है कि आखिर क्यों यह महत्वपूर्ण स्वास्थ्य पहल  असफल हो गई और  इसके लिए कौन जिम्मेदार है  इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि  दोषियों पर कार्रवाई हो सके और  मोबाइल मेडिकल यूनिट को  वास्तव में  ग्रामीणों के लिए उपयोगी बनाया जा सके। जहां एक तरफ एसईसीएल ने एक दिन पहले 170 करोड रुपए की सी एस आर परियोजना को मंजूरी देकर वाह वाही लूट रही है वहीं दूसरी ओर जमुना कोतमा क्षेत्र में सी एस आर के तहत संचालित चिकित्सा मोबाइल यूनिट सेवा महीनों से ठप पड़ी हुई है यहां पर वही कहावत चरितार्थ होती है कि अंधेर नगरी चौपट राजा।

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