वन विभाग की लापरवाही मिलीभगत व भ्रष्टाचार से वन भूमि पर संकट के बादल

*पर्यावरण व स्थानीय जीवन पर खतरा, वन विभाग की जवाबदेही पर सवाल*


अनूपपुर

जिले के कोतमा वन परिक्षेत्र के सर्किल लतार अंतर्गत ग्राम कोटमी में आर एफ 442 की वन मुनारा क्रमांक 08 का टूटना और उस पर अवैध कब्जा करना वन विभाग की गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। अतिक्रमणकारियों को वन विभाग की तरफ से मिली सह और सरकारी संपत्ति पर बढ़ता अतिक्रमण एक चिंताजनक विषय है।

*विभाग की लापरवाही व मिलीभगत*

वन मुनारे का टूटना और अतिक्रमणकारियों द्वारा वन भूमि पर कब्जा करना केवल एक अपराध नहीं, बल्कि वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत को भी उजागर करता है। वन विभाग का काम केवल जंगलों की सुरक्षा करना ही नहीं, बल्कि अवैध गतिविधियों को रोकना भी है, लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि विभाग के अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह से त्याग कर दिया है।

*भ्रष्टाचार और निष्क्रियता*

वन विभाग के अधिकारियों पर अतिक्रमणकारियों से सांठगांठ का आरोप है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विभाग में भ्रष्टाचार और निष्क्रियता का बोलबाला है। ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी का त्याग कर अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। अभी तक कोई चालान या कार्रवाई न होना दर्शाता है कि विभाग के अधिकारी केवल नाम के ही संरक्षक बने हुए हैं।

*वन विभाग की जवाबदेही पर सवाल*

विभाग के अधिकारियों की निष्क्रियता और मिलीभगत से यह सवाल उठता है कि आखिर वन विभाग की जवाबदेही कहां है। ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई न होने से साफ होता है कि विभागीय अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को लेकर गंभीर नहीं हैं। वन मुनारे का तोड़ना एक संकेत है कि विभाग की सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था बेहद कमजोर हो चुकी है, जिससे अतिक्रमणकारियों का हौसला बढ़ रहा है।

*पर्यावरण व स्थानीय जीवन पर खतरा*

वन विभाग की लापरवाही और अतिक्रमण की बढ़ती घटनाएं न केवल वन संपत्ति बल्कि पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा हैं। वनों का नाश, अवैध कब्जा और विभाग की उदासीनता पर्यावरण संतुलन के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं।

*वन विभाग में सुधार की आवश्यकता*

वन विभाग में व्यापक सुधार की आवश्यकता है, ताकि ऐसे भ्रष्टाचार और लापरवाही की घटनाएं रुक सकें। विभाग में जवाबदेही तय करने, कड़ी सजा देने और पारदर्शिता लाने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। उच्च स्तर पर जांच करवाई जाए और दोषी अधिकारियों को बर्खास्त किया जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। वन विभाग की नाकामी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि बिना सख्त कदम उठाए जंगलों और पर्यावरण की सुरक्षा एक सपना ही बनी रहेगी।

बघेलखण्ड क्षेत्र से सम्बन्धित विचार अवलोकनीय, बघेली बोली क्षेत्र विषयक अनेक नव भेद

*बघेलखण्ड का संक्षिप्त परिचय एवं क्षेत्र सीमाएं व बघेलखण्ड का क्षेत्र*


बघेलखण्ड के क्षेत्रान्तर्गत प्रमुख रूप से रीवा , सतना ,, सीधी, शहडोल ,, उमरिया, अनूपपुर सिंगरोली जिले का भू -भाग आता है। बघेली बोली को लेकर क्षेत्र विषयक अनेक नव भेद है। बघेलखण्ड के क्षेत्र से सम्बन्धित विचार अवलोकनीय हैं यथा प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी जार्ज ग्रियर्सन ने बघेली को बघेलखण्ड में बोली जाने वाली बोली कहा जाता है। किंतु आगे उन्होंने लिखा है। यह चंदभकार की छोटा नागपुर रियासत में और रीवा के दक्षिण में स्थित ब्रिटिश  जिले के मंडला में भी पर्याप्त शुद्धि के साथ बोली जाती हैं। और कुछ काम शुद्धि के साथ मिर्जापुर जिले के दक्षिण सोन भाग में एवं जबलपुर में, जहाँ यह धीरे- धीरे क्रमशः बिहारी था बुन्देली में विलीन होती जाती हैं।

इसी प्रकार फतेहपुर बादा था हमीरपुर ज़िले में भी बघेली का एक वह रूप बोला जाता है, जो कम अधिक मात्रा में बुन्देली भाषा से मिश्रित हैं। बघेल मंडला के दक्षिण तथा दक्षिण पश्चिमी में बोली जाने वाली कतिपय विश्रृंखलित बोलियो का मूलाधार भी जान पड़ती है। अवधी और बघेली के बीच की सीमा रेखा का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है, यदि हम अवधी और बघेली की सीमा का निर्धारण करना चाहें तो फतेहपुर एवं बादा की बीच यमुना नदी एवं उसके आगे इलाहाबाद जिले की दक्षिण-- सीमा  रेखा होगी। यद्दपि उन्होंंने इसे  निर्णायक मानदंड के रूप में स्वीकार नहीं किया है। और इसे अनिशिचत माना है। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा  के अनुसार बघेली का क्षेत्र इस प्रकार है। अवधी के दक्षिण में बघेली का क्ष्रेत्र हैं।

इसका केंद्र रीवा राज्य हैं, किन्तु यह मध्यप्रान्त के दमोह, जबलपुर , मंडला तथा बालाघाट के जिलों तक फैली हुई है।डाक्टर हरदेव बाहरी के मतानुसार ,,12 वी सती में सोलंकी राजपूत व्याघ्रदेव ने बघेल वंश की नीव डाली जिससे प्रदेश का नाम बघेलखण्ड और बोली बघेलखण्डी या बघेली पड़ गया।रीवा इसका केंद्र है, किन्तु बघेलखण्ड के बाहर भी बघेली बोली जाती हैं। इसका क्षेत्र उत्तर में मध्य उत्तर प्रदेश की सीमा से लेकर दक्षिण में बालाघाट तक, और पश्चिम में दमोह और बादा की पूर्वी सीमा से लेकर पूर्व में मिर्जापुर , छोटा नागपुर और बिलासपुर की पश्चिमी सीमाओं तक फैला हुआ है।

डॉ. उदयनारायण तिवारी ने बघेलो को वस्तुत बघेलखण्ड की बोली माना है, किंतु उन्होंने उसका प्रसार बघेलखण्ड के बाहर भी स्वीकार किया है। उन्हीं के शब्दों में बघेली  छोटा नागपुर के चन्दभकार तथा रीवा के दक्षिण मंडला जिले में भी बोली जाती हैं। यह मिर्जापुर तथा जबलपुर के कुछ भाग में बोली जाती हैं।इसी प्रकार  फतेहपुर बादा तथा हमीरपुर भी उसी के अंतर्गत  है  किंतु  इधर  की बघेली में पड़ोस की बोलियों का समिम्श्रण  हो जाता है। मंडला के दक्षिण पश्चिम की बघेली भी वस्तुत मिश्रित ही है।

डॉ. भगवती प्रसाद शुक्ल ने रीवा को केंद्र  मानते हुए बघेली का क्षेत्र इस प्रकार निरुपित किया है। उत्तर में यमुना नदी के दक्षिण बादा फतेहपुर हमीरपुर के परगने से लेकर, कसौदा और शंकरगढ़ तक पश्चिम में कोठी सोहावन से मैहर के आस पास तक दक्षिण पश्चिम में कटनी जबलपुर दमोह और बालाघाट के कुछ गांवो तक दक्षिण में अमरकंटक और मंडला तथा  दक्षिण पूर्व में सिंगरोली तथा देवसर तक।

उपयुक्त मतों पर दृष्टिपात करने पर हम देखते है कि प्रायः  सभी विद्वानो  के मत का आधार ग्रियर्सन का भाषा - सर्वेक्षण रहा है। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर बोलचाल की भाषा को प्रमुख आधार मानते हुए मेरे विचार से बघेली का क्षेत्र  उत्तर में यमुना नदी के दक्षिण बादा , फतेहपुर हमीरपुर एवं इलाहाबाद  ज़िले की करछना तथा मेजा  तहसीलों से लेकर दक्षिण में अमरकंटक , मंडला  तथा बालाघाट के कुछ गांवो तक और पश्चिम में दमोह जिले की पूर्वी सीमा मैहर, तथा कोठी सोहावल से लेकर पूर्व में मिर्जापुर छोटा नागपुर तथा बिलासपुर की पश्चिमी सीमाओं तक फैला हुआ है।

बघेली के क्षेत्र की भाषागत सीमा इस प्रकार हैं,,,, बघेली के उत्तर में अवधी तथा उत्तर-पूर्व में भोजपूरीबका क्षेत्र है। इसके पूर्व दक्षिण में छ्त्तीसगढ बोली जाती है। दक्षिण में बालाघाट के आस पास के कुछ  हिस्सों  में मराठी का क्षेत्र है, और दक्षिण पश्चिम ,पश्चिम तथा  पश्चिम --उत्तर  में बुन्देलखण्डी  का क्षेत्र है।

अर्पणा दुबे

राज्य स्थापना दिवस पर फरीदा अख्तर को मिला शिक्षा दूत सम्मान


शहडोल

सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड की प्राथमिक शाला बगडेवा की सहायक शिक्षिका एलबी फरीदा अख्तर को सत्र 2024 का शिक्षा दूत सम्मान" प्रदान किया गया है। यह सम्मान अंबिकापुर में राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर अंबिकापुर विधायक राजेश अग्रवाल, सीतापुर विधायक रामकुमार टोप्पो, और अन्य विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में कृषि मंत्री रामविचार नेताम के द्वारा प्रदान किया गया। पुरस्कार में सम्मान पत्र के साथ 5 हजार की राशि का चेक भी दिया गया है । उक्त पुरस्कार पाने वाली शिक्षिका फरीदा अख्तर मूलतः शहडोल जिले के धनपुरी की रहने वाली है। जिनका विवाह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर में हुआ है। वह छात्र जीवन से ही एक मेधावी छात्रा रहीं हैं।

उल्लेखनीय है कि फरीदा अख्तर नवाचारी शिक्षिका हैं और बच्चों को गीत, संगीत, कला और सामाजिक गतिविधियों से जोड़कर शिक्षा देने में अग्रणी हैं। उनके स्कूलों में टीएम मॉडल के तहत कई संकुल स्तरीय प्रदर्शनी आयोजित हो चुकी हैं। इस उपलब्धि पर विकासखंड शिक्षा अधिकारी प्रदीप राय, सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी मनोज तिवारी, और बीआरसी दीपेश पांडेय ने शिक्षकों को शुभकामनाएं दीं, साथ ही उनके शिक्षक साथियों ने भी उन्हें बधाई दी है।

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