अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष का सफर, सुनीता विलियम्स ने रचा इतिहास


*सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश*

नासा के अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर बोइंग कंपनी के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट से जून 2024 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के लिए रवाना हुए थे। मिशन केवल 8 दिनों का था, लेकिन तकनीकी खराबियों के कारण दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को 9 महीने से अधिक समय तक अंतरिक्ष में ही रहना पड़ा। अंततः स्पेस-एक्स के क्रू-9 ड्रैगन कैप्सूल के जरिए 19 मार्च 2025 को वे सफलतापूर्वक फ्लोरिडा के तट पर अटलांटिक महासागर में स्प्लैशडाउन (समुद्र में लैंडिंग) कर पृथ्वी पर लौटे। इस मिशन में उनके साथ नासा के अंतरिक्ष यात्री निक हेग और रूसी कॉस्मोनॉट अलेक्जेंडर गोर्बनोव भी शामिल थे।

*तकनीकी खराबी के कारण मिशन में हुई देरी*

बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी खामियां लॉन्च के बाद से ही सामने आने लगी थीं। जब स्पेसक्राफ्ट ISS के पास पहुंचा, तब 5 थ्रस्टर्स (रॉकेट के छोटे इंजन) काम करना बंद कर चुके थे और हीलियम गैस का रिसाव हो रहा था। लगातार एक के बाद एक खराबियां सामने आती गईं, जिसके चलते यह मिशन लंबा खिंच गया। नासा को चिंता थी कि अगर तकनीकी खामियों के साथ यह यान पृथ्वी के वायुमंडल में री-एंटर करता, तो बड़ा खतरा हो सकता था। इसलिए, नासा ने स्पेस-एक्स के भरोसेमंद ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के जरिए वापसी कराने का फैसला किया। इस निर्णय पर बोइंग कंपनी नाराज भी दिखी, क्योंकि यह स्टारलाइनर की पहली मानवयुक्त उड़ान थी, जो पूरी तरह सफल नहीं हो पाई।

*स्पेस-एक्स ड्रैगन: भरोसेमंद और अत्याधुनिक अंतरिक्ष यान*

एलन मस्क की स्पेस-एक्स कंपनी द्वारा निर्मित ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को पहले भी नासा के कॉमर्शियल क्रू प्रोग्राम में शामिल किया गया था और यह पहले भी सफल मिशन अंजाम दे चुका है। इस यान की विशेषताएं इस प्रकार हैं- 

यह सात अंतरिक्ष यात्रियों को एक साथ ले जाने में सक्षम है।

यह पूरी तरह ऑटोनॉमस (स्वयं-नियंत्रित) है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसे मैन्युअली भी ऑपरेट किया जा सकता है। 

इसमें आपातकालीन सुरक्षा प्रणाली मौजूद है, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा बनी रहती है। 

यह यान बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है (री-यूजेबल), जिससे यह बेहद किफायती साबित हुआ है।

*वापसी का रोमांचक सफर*

18 मार्च 2025 को क्रू-9 ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को ISS से अनडॉक किया गया और 17 घंटे की यात्रा के बाद यह 27359 किमी/घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हुआ। वायुमंडल में प्रवेश करते समय यान को भीषण गर्मी और दबाव सहना पड़ा, लेकिन स्पेस-एक्स की अत्याधुनिक हीट शील्ड ने इसे सुरक्षित रखा। 19 मार्च 2025 की सुबह 3:27 बजे (भारतीय समयानुसार) यह अमेरिका के फ्लोरिडा तट पर सफलतापूर्वक स्प्लैशडाउन (समुद्र में लैंडिंग) हुआ।

*सुनीता विलियम्स ने रचा इतिहास*

इस मिशन के साथ ही 59 वर्षीय भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने नया रिकॉर्ड बना दिया। वे 286 दिन अंतरिक्ष में बिताने वाली तीसरी महिला बन गई हैं। 

इससे पहले-

1. क्रिस्टीना कोच – 328 दिन (पहली महिला)

2. पेगी व्हिटसन – 289 दिन (दूसरी महिला)

*अंतरिक्ष मिशन के दौरान आने वाली चुनौतियां*

खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें ये शामिल हैं:

हीलियम रिसाव – गैस लीक होने पर स्पेसक्राफ्ट का बैलेंस बिगड़ सकता है।

थ्रस्टर्स फेलियर – इंजन ठीक से काम न करें, तो यान दिशाहीन हो सकता है।

कंट्रोल लॉस – यान का सही तरह से मैनेउवर न होना।

ब्लैकआउट – पृथ्वी से संपर्क टूट जाना।

री-एंट्री के दौरान शील्ड फेलियर– पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय भीषण गर्मी से सुरक्षा जरूरी होती है।

डॉकिंग/अनडॉकिंग असफल होना- आईएसएस से सही ढंग से नहीं जुड़ पाना। 

स्प्लैशडाउन की समस्या- समुद्र में उतरते समय पैराशूट ठीक से काम न करे। यही वजह है कि नासा और स्पेस-एक्स जैसे संगठन हर संभावित खराबी को ध्यान में रखते हुए मिशन को अंजाम देते हैं।

*भविष्य की सीख और भारत के लिए संदेश*

खगोलविद अमर पाल सिंह के अनुसार, इस मिशन से हमें यह सीख मिलती है कि हर मिशन में टीम वर्क, सटीक योजना और वैज्ञानिक समर्पण बेहद जरूरी होता है। अगर भारत सरकार भी निजी अंतरिक्ष कंपनियों को इस क्षेत्र में अधिक अवसर दे, तो इसरो भी विश्व की अग्रणी स्पेस एजेंसियों के साथ मिलकर अंतरिक्ष अन्वेषण में नई ऊंचाइयों को छू सकता है। स्पेस-रेस अब सिर्फ देशों तक सीमित नहीं, बल्कि निजी कंपनियां भी इसमें अहम भूमिका निभा रही हैं। भारत को भी इस दिशा में और मजबूत कदम उठाने की जरूरत है।

*खगोल विद अमर पाल सिंह, नक्षत्र शाला (तारामण्डल) गोरखपुर,उत्तर प्रदेश,भारत*

हृदय का मरूस्थल कोई स्थायी अवस्था नहीं है, हृदय का मरूस्थल - एक अनुभव


हृदय का मरूस्थल कोई स्थायी अवस्था नहीं है, बल्कि यह जीवन की कठिन परिस्थितियों की उपज होती है। यदि कोई व्यक्ति सही दिशा में प्रयास करे, तो वह फिर से अपने हृदय को संवेदनशील, प्रेमपूर्ण और ऊर्जावान बना सकता है। हर रेगिस्तान में कहीं न कहीं पानी का एक स्रोत अवश्य होता है, बस उसे खोजने की आवश्यकता होती है।

मनुष्य का हृदय भावनाओं का केंद्र होता है, जहाँ प्रेम, करुणा, सहानुभूति, और संवेदनशीलता के बीज अंकुरित होते हैं। लेकिन जब जीवन में निरंतर आघात, धोखा, असफलता, और उपेक्षा मिलती है, तो हृदय धीरे-धीरे एक मरूस्थल में परिवर्तित हो जाता है। एक ऐसा स्थान जहाँ संवेदनाएँ सूख जाती हैं, भावनाएँ निष्प्राण हो जाती हैं और व्यक्ति भीतर से शुष्क एवं निर्जीव महसूस करने लगता है। व्यक्ति भावनात्मक  रूप से सुन्न हो जाता है और दूसरों पर विश्वास खो देता है। 

जब कोई व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं को साझा करने के लिए किसी को नहीं पाता, तो धीरे-धीरे उसका हृदय एक रेगिस्तान की तरह खाली और सूना महसूस करने लगता है। समाज में कई बार लोग अपने दुख और दर्द को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। लगातार भावनाओं को दबाने से व्यक्ति भीतर से कठोर और संवेदनाहीन होता चला जाता है।

जीवन में हम सभी कभी न कभी दिल के मरूस्थल से गुजरते हैं। यह एक ऐसी जगह है जहां प्यार, स्नेह और खुशी की कमी होती है। यहां की रेत पर पैरों के निशान होते हैं, जो प्यार की खोज में यहां आते हैं और जाते हैं। दिल का मरूस्थल एक ऐसी जगह है जहां दिल की धड़कनें धीमी होती जाती हैं और प्यार की यादें धीरे-धीरे मिटती जाती हैं। यहां की हरियाली की कमी और आसमान की उदासी इस मरूस्थल को और भी वीरान बना देती है। लेकिन फिर भी, इस मरूस्थल में एक उम्मीद होती है। एक उम्मीद कि एक दिन, प्यार की बारिश, यहां जरूर होगी। एक उम्मीद कि इस मरूस्थल को हरा-भरा बना देगी और दिल के टुकड़े फिर से जुड़ जाएंगे।

*इस मरूस्थल से बाहर निकलने का मार्ग*

अपने दुख, दर्द, और भावनाओं को स्वीकार करना और किसी विश्वसनीय व्यक्ति से साझा करना दिल को हल्का कर सकता है। स्वयं से प्रेम करना और खुद को महत्व देना, इस रेगिस्तान में एक नखलिस्तान की तरह काम कर सकता है। संवेदनाओं को व्यक्त करने के लिए संगीत, चित्रकला, कविता, या लेखन का सहारा लिया जाए तो दिल फिर से जीवन से भर सकता है।जीवन में नई आशाओं और नए संबंधों की तलाश से यह भावनात्मक सूखा धीरे-धीरे हरियाली में बदल सकता है।

दिल का मरूस्थल हमें यह सिखाता है कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हमें हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए कि एक दिन, सब कुछ ठीक हो जाएगा। इसलिए, अगर आप भी दिल के मरूस्थल से गुजर रहे हैं, तो हार न मानें। उम्मीद रखें और आगे बढ़ते रहें। एक दिन, आपको भी प्यार की बारिश का अनुभव होगा और आपका दिल फिर से हरा-भरा हो जाएगा।

*सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश*

शनिदेव की मदद से हनुमान जी को मिली थी विजय, चमत्कारिक है ऐंति के शनिदेव की ऐतिहासिक कथा 

( मनोज कुमार द्विवेदी की कलम से, अनूपपुर- मप्र )


अनूपपुर

कहा जाता है कि यदि त्रेतायुग में शनि महाराज हनुमान जी की मदद नहीं करते तो भगवान श्री राम कभी लंका विजय नहीं कर पाते। मुरैना के ऐंति पर्वत स्थित शनिदेव के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर में श्रद्धा लुओं को यहाँ पहुँच कर आत्मिक शांति प्राप्त होती है। तुलसी मानस प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश भोपाल द्वारा उद्धृत यहाँ लगाए गये एक शिला पट्टिका में उल्लेख है कि त्रेतायुग में शनि महाराज की सहायता से हनुमान जी ने लंका में भगवान श्री राम की विजय का मार्ग प्रशस्त किया था। मुरैना के ऐंति गाँव में विश्वप्रसिद्ध शनि देव का ऐतिहासिक मन्दिर आज भी इसका गवाह है। लंका में जब राक्षसों ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगाई थी और हनुमान जी ने लंका दहन का प्रयास किया था तो वे सफल नहीं हो पाए थे। तब योगबल से हनुमान जी ने पता लगा लिया कि  उनके प्रिय सखा शनिदेव रावण के पैरों के नीचे आसन वने हुए हैं । उन्ही के प्रभाव से लंका में आग नहीं लग पा रही है।

 हनुमान जी ने अपने बुद्धि चातुर्य से शनि देव को रावण के पैरों के नीचे से मुक्त करवाया और तुरंत लंका छोड़ने को कहा। वर्षों तक रावण के पैरों के नीचे आसन बने रहने के कारण शनिदेव अत्यंत दुर्बल हो गये थे । लंकाधिपति की कैद से मुक्त होने के बाद कुछ दूर चल कर ही वे थक गये। उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वे दुर्बल हो गये हैं और अधिक नहीं चल सकते। और जब तक वो लंका में हैं ,तब तक लंका दहन नहीं हो सकता। वो इतने कमजोर हो गये हैं कि तुंरत लंका नहीं छोड़ सकते। यह सुनकर हनुमान जी मानसिक परेशानी से घिर गये। तब शनिदेव ने कहा कि आप इतने बलशाली हैं कि मुझे आप भारत भूमि की ओर प्रक्षेपित कर दें। तब मैं लंका से दूर हो जाऊंगा और तब आप लंका दहन कर सकेगें। 

 वीर हनुमान जी ने ऐसा ही किया। उन्होंने शनिदेव को पूरे वेग से भारत की ओर फेंका। शनिदेव मुरैना जिले के ऐंति गाँव के समीप एक पर्वत में गिरे। जिसे अब शनिपर्वत कहा जाता है‌। इस पर्वत पर जहां वे गिरे वहाँ आज भी विशाल गड्ढा है। यहाँ शनिदेव ने घोर तपस्या करके अपनी शक्तियाँ प्राप्त कीं। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ शनि मन्दिर की स्थापना की। इस मन्दिर में पूर्वाभिमुख भव्य दिव्य शनि प्रतिमा स्थापित हैं। सूर्य और शनि देव के मध्य एक श्रृंगारिक सुन्दर से हनुमान जी की स्थापना भी विक्रमादित्य ने किया था। 

ऐंति से ही शनि शिंगणापुर की प्रतिमा हेतु शिला पहुँची थी। इसकी अलग कहानी है। 

 ऐंति के शनि मन्दिर में प्रत्येक अमावस्या को विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें लाखों भक्त गण यहाँ शनिदेव की पूजा अर्चना और दर्शन के लिये आते हैं।


ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्र यमाग्रजं ।

छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैशचरं ।।

होली में सब रंग आएंगे, प्यासे तीर उमड़ आएंगे, पर ए रंगों की बरसात, मेरे सरताज ना आएंगे


*रंगों की बरसात*


होली में सब रंग आएंगे,

प्यासे तीर उमड़ आएंगे।

    पर ए रंगों की बरसात,

    मेरे सरताज ना आएंगे।

 

 सपनों में रंग डाला तुमको,

   प्यासी अंखियों के काजल से,

 भिगो दिया भीगी पलकों ने,

    तन के सिंदूरी बादल से ।

    

इंद्रधनुष कांधों पर रखकर,

रंगों के कहार आएंगे ,

   पर ए फागुन की सौगात ,

   मेरे सरताज ना आएंगे।


सखियों के अधरों से रह-रह,

    मधुर मिलन के चित्र झरेंगे,   

विरह वेदना के क्षण प्रतिपल,

    विरहिन के आंसू पोंछेंगे।

         

पूनम की गागर सिर पर रख,

धरती गगन फाग गाएंगे ,

   मगर ऐ सूनी-सूनी रात ,

   मेरे सरताज ना आएंगे ।


होली में सब रंग आएंगे,

प्यासे तीर उमड़ आएंगे ,

  मगर ऐ सतरंगी सौगात,

  मेरे सरताज ना आएंगे।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर

महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी को हिंदी सेवी सम्मान प्रदान किया गया 


जबलपुर

संस्कारधानी के गौरव, दधीचि महाकाव्य के रचयिता,गद्य-पद्य में निष्णात, जिनके रचना संसार के खाते में 53 प्रकाशित पुस्तकें है, महाकवि आचार्य भगवत दुबे से प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा के संस्थापक,  सशक्त हस्ताक्षर के संस्थापक गणेश श्रीवास्तव प्यासा, प्रसिद्ध कवयित्री ज्योति मिश्रा ने सौजन्य भेंट की। कवि संगम त्रिपाठी ने अंगवस्त्र,मोती की माला, कलमश्री,स्मृति चिन्ह प्रदान कर श्रद्धाभाव से सम्मानित किया। आचार्य जी ने भी प्रसन्न होकर कवि संगम त्रिपाठी का शाल से अभिनंदित किया और अपनी कृति 'पलक पांवड़े ' भेंट कर अपना आशीर्वाद दिया।

कवि संगम त्रिपाठी ने विज्ञप्ति में बताया कि संस्कारधानी जबलपुर के गौरव महाकवि आचार्य भगवत दुबे ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु जारी अभियान में मैं सदा आपके साथ हूं और हर तरह से सहयोग प्रदान करता रहूंगा। महाकवि आचार्य भगवत दुबे का हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहयोग व समर्थन वंदनीय है।

एस एच एम वी फाउंडेशन द्वारा डाॅक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई 


जबलपुर

एस एच एम वी फाउंडेशन ने भाषा  सेवा के लिए अर्पित माहनुभावो को (गुंडाल राघवेंधर व कवि संगम त्रिपाठी जी) को गौरव डॉक्टरेट की मानद पत्र प्रदान किया गया है। एस एच एमी वी फॉउंडेशन भारत में कहीं सेवा कर रहे है। फॉउंडेशन का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओ का प्रचार करना, भारतीय कला और संस्कृति को आगे बढ़ाना संस्था का मुख्य उद्देश्य हैं।

डॉ गुंडाल राघवेंधर जी व डॉ कवि संगम त्रिपाठी जी को संस्था ने गौरव डॉक्टरेट की मानद पत्र प्रदान करके गौरव महसूस हो कर रही है। अपनी स्तर और भाषाओ को प्रचार करना, भाषा को बचाने का कार्य करके, बच्चों को सिखाना, पढ़ाना मुख्य लक्ष्य बनाकर हजारों लोगों को अपना भाषा सिखाया है। ये बहुत गर्व की बात है। आप लोग देश की सेवा कर रहे है। संस्था ने आपके देश सेवा के लिए गौरव डाक्टरेट की मानद उपाधि  फाउंडेशन द्वारा दिया जा रहा है।

संस्थापक डॉ गुंडाल विजय कुमार ने कहा है मेरा सौभाग्य है इन महान पुरुषों कों मेरा संस्था के तरफ से गौरव डाक्टरेट देने के लिए संस्था बहुत गौरव महसूस कर रहा है। मैं इन महान व्यक्ति को प्रणाम करता हूं।  इसी तरह आगे आने वाली पीढ़ीयो को भी अपना धर्म निभाना है। भाषा का सेवा करिए। डॉ धर्म प्रकाश वाजपेयी, प्रदीप मिश्र अजनबी, गणेश श्रीवास्तव, राजकुमारी रैकवार राज , आदि प्रमुख लोगों ने बधाई दिया है।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य' को हिंदी सेवी सम्मान मिला 


जबलपुर 

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा हिंदी सेवी सम्मान की श्रृंखला में डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य' को हिंदी सेवी सम्मान प्रदान किया है। कवि संगम त्रिपाठी ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य' कलम के माध्यम से हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। आदित्य जैसा उनका नाम है वैसा ही उनकी रचनाओं में प्रकाश भी है। डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य' शब्दों के जादूगर है। उनकी रचनाओं में चिंतन व अध्यात्म का संगम है। राष्ट्रप्रेम की धारा उनकी रचनाओं से सतत प्रवाहित होती है।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र 'आदित्य' को हिंदी सेवी सम्मान प्रदान करने पर डॉ धर्म प्रकाश वाजपेई, प्रदीप मिश्र अजनबी, डॉ विजय कुमार, डॉ लाल सिंह किरार, माला अज्ञात, राजकुमारी रैकवार राज, प्रभा बच्चन श्रीवास्तव, अजय पांडेय आदि ने बधाई दी है।

सोमनाथ शुक्ल को हिंदी सेवी सम्मान से किया गया सम्मानित, लोहा ने दी शुभकामनाएं


प्रयागराज    

प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा हिंदी के प्रचार-प्रसार में सतत काम कर रही है और हिंदी सेवियों को सम्मानित भी कर रही है। इसी तारतम्य में सोमनाथ शुक्ल प्रयागराज को कवि संगम त्रिपाठी ने हिंदी सेवी सम्मान प्रदान किया।

कवि संगम त्रिपाठी ने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि सोमनाथ शुक्ल प्रयागराज हिंदी के प्रचार-प्रसार में अमूल्य कार्य कर रहे हैं व हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में सतत क्रियाशील है। कवि संगम त्रिपाठी प्रयागराज प्रवास के दौरान सोमनाथ शुक्ल को हिंदी सेवी सम्मान प्रदान किया।

सोमनाथ शुक्ल लेखनी के माध्यम से रचनात्मक कार्य कर रहे हैं। प्रयागराज की विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हैं और उनकी कई कृतियां व साझा संकलन प्रकाशित हो चुकी है। सोमनाथ शुक्ल ने हिंदी प्रचार प्रसार में कवि संगम त्रिपाठी को प्रेरणात्मक सहयोग प्रदान करते आ रहे हैं।

अर्चना द्विवेदी 'गुदालू' जबलपुर को हिंदी सेवी सम्मान मिला 


जबलपुर

जानकी रमण महाविद्यालय में कवयित्री अर्चना द्विवेदी 'गुदालू' जबलपुर को प्रबुद्ध कवि आदरणीय श्री संगम त्रिपाठी जी द्वारा स्थापित संस्था "प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा" द्वारा चलाए जा रहे हिंदी हितार्थ राष्ट्रव्यापी अभियान हिंदी महाकुंभ का सम्मान मिला, साथ ही सशक्त हस्ताक्षर संस्था की काव्यगोष्ठी में काव्यपाठ का भी सुअवसर मिला ..... गणेश श्रीवास्तव प्यासा जबलपुरी के प्रति आभार।

अर्चना द्विवेदी 'गुदालू' ने कहा कि हिंदी से मेरा प्रेम,,,, मुझे सम्मान के द्वार तक पहुंचा दिया, विद्यालय से मेरा प्रेम,,,,,मुझे महाविद्यालय में कलम और सम्मान दिला रहा है,अभिभूत हूँ,,,,अविस्मरणीय आह्लादित क्षण!!

आभार साहित्यिक परिवार!

वेतनमान के अनुरूप पदोन्नति का लाभ दिया जाये, बिना शर्त दिवंगत शिक्षकों के आश्रितों को अनुकम्पा नियुक्ति दी जाए

*तृतीय वेतनमान की विसंगति को दूर कर शिक्षकों को देय तिथि से लाभ दिया जाये*


मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी-कर्मचारी संघ की जिला शाखा द्वारा प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार स्कूल शिक्षा एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के अंतर्गत कार्यरत सहायक शिक्षकों, उच्च श्रेणी शिक्षकों, प्रधान पाठको तथा व्याख्याताऒ को प्राप्त वेतनमान के अनुरूप पदोन्नति का लाभ प्रदान किया जावे। मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी कर्मचारी संघ के संयोजक दिलीप सिंह ठाकुर ने आगे बताया कि तृतीय वेतनमान की विसंगति को दूर करते हुए 30 वर्ष की सेवा पर सहायक शिक्षकों को क्रमशः 4200 रूपये के स्थान पर 5400 रूपये तथा व्याख्याताऒ को 6600 रूपये के स्थान पर 7600 रूपये का लाभ देय तिथि से दिया जावे।

मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी कर्मचारी संघ के संयोजक दिलीप सिंह ठाकुर ने आगे बताया कि अन्य विभागों के कर्मचारियों की भांति शिक्षकों के भी सेवाकाल में न्यूनतम 300 दिवस के अर्जित अवकाश के नगदीकरण  का लाभ भी दिया जाये। मध्यप्रदेश राज्य अधिकारी कर्मचारी संघ के संयोजक दिलीप सिंह ठाकुर के अनुसार नियुक्ति की आस में भटक रहे प्रदेश के दिवंगत शिक्षकों को बिना शर्त अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान की जाये।

मध्य प्रदेश राज्य अधिकारी कर्मचारी संघ के दिलीप सिंह ठाकुर,भास्कर गुप्ता, राशिद अली, विश्वनाथ सिंह,नितिन तिवारी, आलोक शर्मा,अजब सिंह, धर्मेंद्र परिहार आदेश विश्वकर्मा,सुधीर गौर,दुर्गेश खातरकर,ऋषि पाठक,इमरत सेन, सुल्तान सिंह,चंद्रभान साहू,पवन सोयाम, रामदयाल उइके,रामकिशोर इपाचे,मदन पांन्द्रो,सुरेंद्र परसते,भोगीराम चौकसे, गंगाराम साहू,अंजनी उपाध्याय,समर सिंह,आकाश भील,ब्रजवती आर्मो, भागीरथ परसते, योगिता नंदेश्वर, पूर्णिमा बेन, अम्बिका हँतिमारे, राजेश्वरी दुबे,कमलेश दुबे, सुमिता इंगले,डेलन सिंह, जागृति मालवीय,संदीप परिहार, पुष्पा रघुवंशी, प्रेमवती सोयाम, रेनू बुनकर आदि ने सरकार से  इस विषय पर गंभीरता से चिंतन मनन कर शीघ्र अतिशीघ्र निर्णय लेने को कहा है।

संभलने भी नहीं देता ये बदलता मौसम, वार करता है जिस्मो जां पै बदलता मौसम


*बदलता मौसम*

संभलने भी नहीं देता ये बदलता मौसम,

वार करता है जिस्मो जां पै बदलता मौसम।


हम बदल पाते नहीं और ये बदल जाता है,

फिर ये जी भर के सताता है बदलता मौसम।


अपनी ऋतु से भी ये मुंह फेर के चल देता है,

बड़ा ही बेवफा होता है बदलता मौसम।


लगता है रूठ गया अगली बरस आएगा,

पर अचानक ही लौट आता बदलता मौसम।


चाहे जब रंग बदल लेता है गिरगिट की तरह, 

आंख तोते सी फेर लेता बदलता मौसम।


चाहे जब रूठ के चल देता तुम्हारी तरहा,

चाहे जब लौट के आ जाता बदलता मौसम। 


इसकी बातों पै अनिल को कतई यकीं नहीं,

दगा देने में ये माहिर है बदलता मौसम।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश

पहले भूखे, प्यासे निर्धन, पुष्प सींच लेने दो, वैलेंटाइन डे पर तब कोई इजहार करूंगा


*वैलेंटाइनडे पर इजहार*


पहले भूखे,प्यासे निर्धन 

पुष्प सींच लेने दो,

वैलेंटाइन डे पर तब 

कोई इजहार करूंगा।


मेंहदी,मांग,महावर,बिछुओं 

तक ने पलक भिगोई ।

डाल तिरंगा आंचल शव पर 

जब भारत मां रोई,


उस शहीद की समाधि पर 

कुछ अश्रु चढा देने दो,

वैलेंटाइन डे पर तब 

कोई इजहार करूंगा।


मुरझाई पलकों मैं जिनके 

आंसू सूख गए हैं,

ताजमहल सपनों के 

दिल ही दिल में टूट गए हैं।


हर घर का चेहरा मुस्काए 

हृदय खुशी से झूमे,

आंगन में वसंत ऋतु आकर 

द्वार, झरोखे चूमे।


पतझड़ के सूखे पत्तों पर 

नए गीत लिखने दो।

वैलेंटाइन डे पर तब 

कोई इजहार करूंगा।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट, हाईकोर्ट ग्वालियर मध्य प्रदेश

सरसों के फूलों पर ,मुस्कान सजाती जाना, अमराई के माथे पर, बौर सजाती जाना, तब बसंत महकेगा


*बसंत ऋतु पर गीत*  

       

        *तब बसंत महकेगा*    


तुम सरसों के फूलों पर ,मुस्कान सजाती जाना ,

तुम अमराई के माथे पर ,बौर सजाती जाना ,


तब पतझर की सूखी डाली,पै बसंत महकेगा ,

तब कोयल के रस भीने,स्वर से बसंत चहकेगा"।


मैं पलाश के पत्तों पर ,श्रंगार-गीत रच दूंगा ।


तुम अनब्याही अभिलाषा की,मांग सजाती जाना , 

तुम पंखुड़ियों से क्यारी की ,सेज सजाती जाना ,


तब तन पर यौवन की केसर,से बसंत बहकेगा,

तब कलियों के खुलते घूंघट, से बसंत झांकेगा।


मैं कोंपल की कोरों पर ,श्रंगार- गीत रच दूंगा।

 

तुम पुरवा के पांवों में , झंकार सजाती जाना,

तुम भंवरों के गुंजन में,झपताल सजाती जाना,


तब बंजारिन के इकतारे,से बसंत झनकेगा ,

तब पायलिया की रुन-झुन धुन से बसंत खनकेगा,


मैं मृदंग की थापों पर , श्रंगार-गीत रच दूंगा।


 गीतकार-अनिल भारद्वाज,एडवोकट, हाईकोर्ट ग्वालियर,

श्री नर्मदे हर सेवा न्यास ने संयुक्त रूप से नर्मदा जयंती महोत्सव का किया भव्य आयोजन, लोकसंस्कृति, आस्था का अनूठा संगम


अनूपपुर

पवित्र नगरी अमरकंटक में पुण्यसलिला मां नर्मदा के पावन जन्मोत्सव पर्व पर श्री नर्मदे हर सेवा न्यास के तत्वावधान में तीन दिवसीय नर्मदा जयंती महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। 3 फरवरी से 5 फरवरी तक चले इस उत्सव में धार्मिक, सांस्कृतिक और लोककला से जुड़े कार्यक्रमों ने लोगों को भाव-विभोर कर दिया।

महोत्सव के मुख्य आकर्षणों में रामघाट मैदान पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकगीत और लोकनृत्य प्रतियोगिता प्रमुख रहे। अमरकंटक के पीएमश्री शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, कल्याणिका केंद्रीय शिक्षा निकेतन, पीएमश्री नवोदय विद्यालय, सरस्वती शिशु विद्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय एवं मां कल्याणिका पब्लिक स्कूल पेंड्रा के छात्र-छात्राओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और अपनी शानदार प्रस्तुतियों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि हिमाद्रि मुनि महाराज प्रबंध न्यासी श्री कल्याण सेवा आश्रम अमरकंटक एवं कोल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रामलाल रौतेल (कैबिनेट मंत्री दर्जा) ने समस्त प्रतिभागियों को प्रोत्साहन राशि एवं सांत्वना पुरस्कार प्रदान कर उनका उत्साहवर्धन किया। लोकनृत्य प्रतियोगिता में कल्याणिका केंद्रीय विद्यालय अमरकंटक ने प्रथम स्थान, सरस्वती जनजातीय वनवासी छात्रावास ने द्वितीय स्थान और मां शारदा शक्ति कन्यापीठ ने तृतीय स्थान प्राप्त कर सम्मान अर्जित किया। तीन दिवसीय महोत्सव के दौरान 3 फरवरी को सुप्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी गायक नीलकमल वैष्णव की लोकगीत संध्या ने श्रद्धालुओं को भक्तिरस में सराबोर कर दिया। 4 फरवरी को मंदिर प्रांगण में भव्य नर्मदा पूजन एवं हवन का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। 5 फरवरी को लोकगीत एवं नृत्य प्रतियोगिताओं के साथ आयोजन का भव्य समापन हुआ।

अमरकंटक महोत्सव के अंतर्गत विभिन्न जिलों से आए लोककला समूहों और कलाकारों ने भी अपनी अनुपम प्रस्तुतियों और प्रदर्शनी से दर्शकों का मन मोह लिया। प्रदर्शनी में पहुंचे आगंतुकों को भी विशेष अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया। नर्मदा सेवा न्यास प्रतिवर्ष इस पावन अवसर पर भव्य आयोजन करता है, जो आस्था, संस्कृति और लोककला का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। इस वर्ष भी हजारों श्रद्धालुओं और कलाकारों की उपस्थिति ने इस आयोजन को विशेष बना दिया। आयोजन समिति ने सभी प्रतिभागियों, आगंतुकों और श्रद्धालुओं का आभार व्यक्त करते हुए अगले वर्ष और भी भव्य उत्सव आयोजित करने का संकल्प लिया।

युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जन्म शताब्दी दिवस समारोह का होगा भव्य आयोजन


दिल्ली -     डी पी वाजपेई शैक्षिक न्यास पूर्व प्रधानमंत्री, भारतीय राजनीति के अजातशत्रु, भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी का सौवां जन्मदिन समारोह 25 दिसंबर 2024 को सायं 4.00 बजे से दीनदयाल उपाध्याय कालेज, द्वारका सेक्टर- 3, दिल्ली में मना रहा हैं।

हमारी संस्था पूज्य अटल जी के पत्रकार, कवि और शिक्षक स्वरूपों की स्मृतियों के  संरक्षण पर विशेष बल देती रही है। इस शताब्दी वर्ष से, हम दो राष्ट्रीय पुरस्कार प्रारंभ कर रहे हैं। इसके लिए एक प्रवर परिषद गठित की गई है, जिसकी अनुशंसा पर पुरस्कारों का चयन किया गया है। जन्म शताब्दी दिवस समारोह में केंद्रीय मंत्री, असम विधान सभा के अध्यक्ष, माननीय सांसदों के साथ प्रमुख राजनीतिक विभूतियों के उपस्थित रहने की सहमति प्राप्त हुई है।

संस्थान द्वारा गठित प्रवर परिषद द्वारा विस्तृत विचार विमर्श एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण  के साथ अपने अपने क्षेत्र में की गई सेवाओं के मूल्यांकन के पश्चात प्रवर परिषद की संस्तुति के आधार पर, युगपुरूष अटल बिहारी वाजपेयी सेवा संस्थान अटल बिहारी राष्ट्रवादी पुरस्कारों की घोषणा करता है।

 प्रथम राष्ट्रवादी पत्रकारिता पुरस्कारश्री अतुल तारे को इसके साथ साथ युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी समाजसेवी पुरस्कार प्रेम सिंह रावत, राम कुमार सोलंकी, भारतभूषण कुलरत्न , डॉ डी सी उपाध्याय,  गोपाल बिष्ट। युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी शिक्षक पुरस्कार प्रो बलराम पाणी, दिल्ली विश्वविद्यालय,  प्रो बृजेश पांडेय, जे एन यू , डॉ स्वदेश सिंह , दिल्ली विश्वविद्यालय,  डॉ एच सी जैन , दिल्ली विश्वविद्यालय , डॉ अनुराग मिश्रा , दिल्ली विश्वविद्यालय। युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारिता पुरस्कार राजशेखर व्यास पूर्व डायरेक्टर जनरल दूरदर्शन, सुरेश चौहान निदेशक,सुदर्शन चैनल,  स्वाति खानविलकर वरिष्ठ पत्रकार , गौतम कुमार मिश्र, दैनिक जागरण, पूनम गौड़, नव भारत टाइम्स को प्रदान करने का निर्णय किया गया है।

पुरस्कार समारोह का आयोजन दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज ऑडिटोरियम द्वारका सेक्टर- 3 में  किया जाएगा। उक्ताशय की जानकारी डी. पी. वाजपेयी राष्ट्रीय समन्वयक, युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी सेवा संस्थान ने दी है। कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु प्रदीप मिश्र अजनबी, राष्ट्रीय महासचिव, प्रेरणा हिन्दी प्रचारणी सभा, कार्य कर रहे हैं। प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा के संस्थापक कवि संगम त्रिपाठी ने अपील की है कि अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग प्रदान करें।

साहित्य अकादमी, संस्कृत परिषद ने पांडुलिपि अनुदान के लिए चुनी वंदना खरे मुक्त


अनूपपुर

साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश संस्कृत परिषद भोपाल कैलेंडर वर्ष 2022 एवं कैलेंडर वर्ष 2023 के पांडुलिपि अनुदान की  घोषणा हुई, जिसमें चचाई जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश से वन्दना खरे मुक्त को चुना गया है। रचनाकार अपनी कलम से हर तरह की रचना रचता है, और अपने भाव अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की पूरी-पूरी सच्चाई और ईमानदारी के साथ कोशिश भी करता है, पर कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं जो दिल को छू लेती हैं, जिनको बहुत वाह वाही भी मिलती है, ऐसी ही एक रचना मांँ पर लिखी थी आंँचल पकड़ मांँ बड़ी हो गई, हाथ जो छोड़ा तुमने हमारा, देखो ना!! मैं खड़ी हो गई!! मैं बड़ी हो गई!!

 कुछ मुक्तक कुछ दोहे कुछ अतुकांत कुछ गीत कुछ गजलें कुछ कविताएं वन्दना खरे की कलम ने सब कुछ लिखने की कोशिश की है, देश प्रेम पर शहीदों पर बहुत कुछ अपने शब्दों को पिरोने  की कोशिश की है। इस उपलब्धि के लिए मेरी मांँ का आशीर्वाद शारदे मांँ का आशीर्वाद मेरी सफलता का यही राज है कि यह दो माँ का आशीर्वाद मुझे मिला। साहित्य अकादमी का बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार जो मुझ जैसी नन्ही कलम की कविताओं का संग्रह उन्हें पसंद आया और उन्होंने मुझे चुना ।

भगवद् गीता अर्जुन को युद्धभूमि में दी गई शिक्षा बस नहीं युवाओं को मिलती है शिक्षा- प्रशांत पाण्डेय


अनूपपुर

शिक्षक प्रशांत पाण्डेय ने बताया कि भगवद् गीता केवल अर्जुन को युद्धभूमि में दी गई शिक्षा नहीं है, युद्धभूमि में यह ज्ञान प्रदान करने का तात्पर्य है कि यह हर युग और हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है। इसे शंखनाद के बाद कहा गया है, जो हर समय के लिए उपयुक्त है एवं मानव जीवन को नई दिशा देने का सामर्थ्य रखता है। विशेषकर आज की युवा पीढ़ी, जो कई मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक समस्याओं से जूझ रही है, उनके लिए भगवद्गीता अनेक लाभदायक समाधान प्रस्तुत करती है।

1. स्वधर्म पालन: गीता सिखाती है कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को समझकर उसे पूर्ण निष्ठा से निभाना चाहिए।

2. समत्व भाव: सफलता और असफलता दोनों में समान दृष्टि रखना जीवन को संतुलित बनाता है।

3. स्वयं को पहचानें: आत्मा की पहचान और आत्म-साक्षात्कार जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने में मदद करता है।

4. कर्मयोग: गीता सिखाती है कि फल की चिंता किए बिना अपना श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए।

5. आध्यात्मिकता का महत्व: जीवन में भौतिक उपलब्धियों से परे आत्मिक शांति और संतोष आवश्यक हैं।

6. साहस और धैर्य: कठिन परिस्थितियों में साहस और धैर्य बनाए रखना सफलता की कुंजी है।

7. निर्णय लेने की क्षमता: गीता से युवाओं को जीवन में सही निर्णय लेने की प्रेरणा मिलती है।

8. संदेह से बचें: संदेह करने वाले व्यक्ति का जीवन अस्थिर रहता है; इसलिए विश्वास और श्रम से आगे बढ़ें।

9. कृष्ण भक्ति: श्रीकृष्ण की भक्ति युवाओं को आत्मिक शांति, आनंद और सच्चे प्रेम का अनुभव कराती है। यह भक्ति जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण और समर्पण की भावना लाती है।

10. आदर्श नेतृत्व: गीता से नेतृत्व के गुण सीखकर युवा समाज के प्रेरणास्रोत बन सकते हैं।

गीता केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण कला है।

 भविष्य की चिंता छोड़ कर आज को भरपूर जियें - हम रामजी के - रामजी हमारे

*संग्रह वृत्ति का त्याग कर , जीवन वृत्ति को अपनाएं - प्रेमभूषण*


अनूपपुर

श्रीराम सेवा समिति अनूपपुर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के अष्टम दिवस व्यासपीठ से कथा कहते हुए परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने सफल जीवन का अद्भुत संदेश देते हुए कहा कि संग्रह वृत्ति को त्याग कर जीवन वृत्ति को अपनाईये। यह मानुष तन बड़े भाग्य से मिला है। इसे रोने , दुखी होने, निंदा करने, संग्रह करने में व्यर्थ ना करके प्रभू शरण में आनंद का जीवन मार्ग अपनाएं 

प्रेमभूषण ने कथा को आगे बढाते हुए  कहा कि मां शबरी भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। गुरु मतंग ने शबरी से कहा था कि भगवान तुम्हारी झोपड़ी में आएंगे। गुरु आदेश से शबरी अंबा भगवान नाम का जप करती हुई संयम पूर्वक प्रतीक्षा कर रही हैं। परमपूज्य जी ने कहा कि कल्पना जब यथार्थ स्वरुप लेती है तब क्रियाशीलता रुक जाती है। 

दर्द जब गीत में बदलता है, हार जब जीत मे बदलता है।क्या कहें उस आलम को, जब कोई प्रीत, मीत में बदलता है।

भगवान को भूख नहीं लगती। वो केवल भक्तों के लिये लीला करते हैं। श्रीराम जी केवल लीला करते हैं।भगवान आनंद प्रदान करते हैं। आवश्यकता के अनुरुप रचना बना लेते हैं। सद् गुरुओं की रचना थी कि यदि राम पहले ही धनुष तोड़ देगें तो बाकी राजा बवाल करेंगे। इसलिए पहले सभी राजाओं को शक्ति का आंकलन करने दिया गया । यह सब प्रभू की रामलीला है। प्रभू जब जिससे जैसा चाहते हैं, तब उससे वैसा करवा लेते हैं।जीवन में सब कुछ हो लेकिन झूठ के मार्ग पर कभी ना चलें। एकबार झूठ का आश्रय लेने पर कभी भला नहीं हो सकता। सत्य का मार्ग कल्याणकारी , रसमय, शान्ति प्रदाता ,प्रगतिकारक है।

गुरु जी ने कहा कि समय बदल गया है। सोशल मीडिया पर नयी पीढी शुरु हुई है‌ । जो महा पुरुषों की निंदा करती है। इसे ज्ञान का प्रदर्शन मानते हैं । निंदा किसी की करने का हमे कोई अधिकार नहीं है। लोग पहले कुछ भी बोल लेते हैं, फिर माफी मांगते घूमते हैं।भगत का जीवन साधुमय जीवन हो। असत्य का जीवन नहीं होना चाहिए । उत्पात ,खट कर्म , उधम  का जीवन नहीं होना चाहिए ।जीव से संबंध मात्र को ही भगवान भक्ति मानते हैं । भक्त स्वयं को भक्त घोषित नहीं करता। जो भक्त है , वो है।

भगवान श्रीराम शबरी से कहते हैं कि धर्ममय प्रवृष्टि, प्रतिष्ठता , साधुता, सज्जनता, प्रचुर धन, बुद्दिमय चातुर्य, सर्व गुण सम्पन्नता हो लेकिन मेरे प्रति भक्ति ना हो तो वह मुझे प्रिय नहीं है। भगवान राम शबरी से नवधा भक्ति का मार्ग बतलाते हैं ।

प्रथम संतों की संगत, कथा प्रसंग सुनने की ललक , भगवत गुणगान, नाम जप, इंद्रिय निग्रह ,संतों का सम्मान, दृष्टि को सहज ,शुद्ध रखें। सरल निर्मल स्वभाव नवमी भक्ति है।समाज को अपनी दृष्टि से देख कर , हायपर हो कर किसी का कल्याण नहीं है। भक्तों को हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। सबसे स्नेह रखिये, सबका आदर करिये। मन को शांत रखने का अभ्यास हो। यथालाभ का अर्थ सहज भाव से प्राप्ति । ऐसा नहीं हुआ तो दुख मिलेगा। भक्तों का दुखी होना उचित नहीं है। जिनमें यह नव गुण होते हैं, वे मुझे अतिशय प्रिय हैं । उन पर मेरी सकल कृपा रहती है। 

जो भगवान के भरोसे है, निर्मल सच्ची भक्ति रखता है, पूर्ण समर्पित है। हम रामजी के - रामजी हमारे हैं । वो हमको - हम उनको प्यारे हैं। प्रभू कहते हैं कि मेरे दर्शन का फल अनुपम है। जीवात्मा भी परमात्मा है। रोना  - धोना ,दुखी होना नहीं चाहिये। आनंद में रहिये।संग्रह की वृत्ति से हटकर जीने की वृत्ति अपनाइये। पुण्य करो, सत्कर्म करो, दान करो, जप करो, तप करो और इससे अपने जीवन की सच्ची पूंजी को बढाईये। अपने हाथ को पुण्य करो, दिव्य करो, पवित्र करो। उन्होंने कहा किभूल कर भी किसी को श्राप और आशीर्वाद नहीं देना चाहिए। आशीर्वाद देने से पुण्य नष्ट होता है। श्राप देने से स्वयं का अमंगल होता है। भगवान जीव का भला उसके सत्कर्मो के अनुरुप करते हैं। आपकी श्रद्धा, सेवा ,समर्पण,शीलता स्वत: आशीर्वाद प्राप्त करवा देता है। आशीर्वाद दिया नहीं जाता, स्वयमेव मिल जाता है। आज कथा दोपहर दो बजे से पांच बजे तक भगवान श्री राम राज्याभिषेक का महोत्सव मनाया जाएगा।

किसी अन्य के अधिकार का अतिक्रमण ही महाभारत कराता है - प्रेमभूषण महाराज

*अगर परमार्थ पथ की यात्रा करनी है तो स्वार्थ को गठरी बांध के  फेंकना होगा*


अनूपपुर

भगवान राम और भैया भारत के चरित्र से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी अन्य के अधिकार का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। भरत जी, राम जी को ही अयोध्या का राजा मानते हैं और इसी कारण लाख समझाने पर भी उन्होंने राजगद्दी नहीं स्वीकार की। लेकिन दूसरी तरफ हम देखते हैं दुर्योधन ने युधिष्ठिर के अधिकार को नहीं स्वीकार किया और महाभारत हो गया। उक्त बातें अनूपपुर (मध्य प्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए सातवें दिन प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए  कहीं।  

सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में भगवान के चित्रकूट प्रवास और आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि रामचरितमानस में भरत चरित्र सुनने पर आपको धर्ममय और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है। भारत जी हमेशा यह प्रयास करते रहते हैं की हमारा कौन सा ऐसा कर्म हो जिससे प्रभु प्रसन्न रहें। आज का मनुष्य भरत चरित्र तो सुनता है लेकिन उस शिक्षा नहीं लेता है। भाई से भाई का प्रेम अब केवल किताबी बातें रह गई हैं। थोड़ी सी संपत्ति के विवाद में एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन जाते हैं। अगर समाज में व्यक्ति अपने-अपने धर्म का पालन करने लगे तो राष्ट्र का कल्याण हो जाएगा।

आज के मनुष्य के लिए यह स्थिति बड़ी ही चिंताजनक है। जब हम मनुष्य के लिए निर्धारित 16 संस्कारों की बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि लोग इस व्यवहार को मनमुखी होकर उपयोग में ले रहे हैं। हमें अपने परिवार के लोगों के धरती से विदा होने पर उनका विधिवत् संस्कार करना चाहिए। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि 10 दिन के पिंडदान से उसे आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है और पुनः वह अपना स्वरूप प्राप्त कर लेता है। संस्कार संपन्न करने में किसी भी तरह की कोताही नहीं करनी चाहिए।

महाराज ने कहा कि मनुष्य का जीवन मिला है तो हमें जीने की ललक बढ़ाने की आवश्यकता है, भजन का स्वभाव बनाने की आवश्यकता है। जीवन का उद्देश्य भगवान का भजन ही होना चाहिए जैसे महाराजा दशरथ के जीने का उद्देश्य भगवान का दर्शन था और जाने का उद्देश्य भगवान के नाम का सिमरन था।  राम राम करते ही उनके प्राण पखेरू उड़ गए थे। उन्हें देवलोक में स्थान मिला । हमारे सदग्रंथ बताते हैं कि पुण्यशाली व्यक्ति को ही देव लोक में स्थान मिलता है। तो हमें भी अपने जीवन में पुण्य बढ़ाने के लिए ही प्रयास करना चाहिए।

प्रेमभूषण ने कहा कि अगर परमार्थ पथ की यात्रा करनी है तो स्वार्थ को गठरी बांध के  फेंकना होगा। क्योंकि स्वार्थ को सामने रखकर किया जाना वाला परमार्थ दोनों ही के लिए घातक होता है। 

वर्तमान समय में मनुष्य की गतिविधियां  और आचरण गलत दिशा में जा रही हैं। कई मामलों में  पशुओं से आधुनिक मनुष्यों की तुलना करना पशुओं की बेइज्जती होगी। पशु को जब तक भूख ना लगे वह कहीं मुंह नहीं मारता है। पशु कभी भी अपनी आवश्यकता  से अधिक भोजन भी नहीं करता है। ऐसे कई व्यवहार हैं  जो पशुओं को आज के मनुष्य से श्रेष्ठ साबित करते हैं।

भगवान और सनातन ग्रंथों का विरोध करने वाले  या निंदा को माध्यम बना कर अपनी छवि निखारने का प्रयास करने वालों लोगों के साथ जो होगा उसे दुनिया के लोग देखेंगे। ऐसे लाखों उदाहरण भरे पड़े हैं। 10 से 12 वर्ष के अंदर प्रकृति उनके साथ खुद न्याय करती है। मनुष्य को अपने जीवन में भगवान और भागवतों के साथ नहीं उलझना चाहिए। भगवान तो किसी का दोष माफ भी कर देते हैं। लेकिन, अगर उनके भक्तों के साथ किसी तरह का अन्याय होता है तो उसे भगवान कभी भी माफ नहीं करते हैं। यह हमारे विभिन्न सदग्रंथों में ही उदाहरण के साथ वर्णित है।

मनुष्य को यह प्रयास करना चाहिए कि उससे कभी भी किसी साधु संत और भगत का अपकार नहीं हो। अगर ऐसा होता है तो परिणाम भी झेलने के लिए तैयार रहना होगा। इन दिनों कुछ लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि सनातन धर्म खतरे में है। वास्तव में इस समय सनातन धर्म को अपने ही लोगों से खतरा है किसी बाहरी से नहीं। पुड़िया बेचने वाले, जटा से रुद्राक्ष निकालने वाले और न जाने क्या-क्या करने वाले लोग धर्म के नाम पर तरह-तरह की रोटी सेंक रहे हैं और यह बहुत खतरनाक स्थिति है।

प्रेमभूषण ने कहा कि सनातन धर्म में संकल्प की बड़ी मर्यादा है। किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के पहले संकल्पित होना होता है तभी शुभ कार्य का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब हम संकल्प लेते हैं तो उसे पूरा भी स्वयं अपने हाथों से करना चाहिए। किसी और को जिम्मेदारी देकर नहीं। भागवत पूजन विनोद का विषय नहीं है। जहां धर्म सिद्धांत है, वहां कोई अन्य विकल्प नहीं होना चाहिए। हमारी संस्कृति में धर्म ही मूल है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन के हर पल को जीने की कला विभिन्न धर्म ग्रंथों में संकलित कर रखी है। श्रीरामचरितमानस इस कलयुग में कल्पतरु है जिसकी एक एक पंक्ति मानव जीवन को सही मार्ग दिखाने के लिए और भगवत दर्शन कराने के लिए बहुत ही सटीक है। कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने  व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

भगवान किसी को भी दुख और कष्ट नहीं दे सकते हैं- प्रेमभूषण महाराज

*बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है*


अनूपपुर

जिसके पास जो होता है दूसरे को वही वस्तु दे सकता है। अपने कष्ट और दुख के लिए हम बेवजह भगवान को दोष लगाते हैं। भगवान किसी को दुख या कष्ट दे ही नहीं सकते हैं, क्योंकि उनके पास ना तो दुख है, ना कष्ट है। भगवान के पास कोई बीमारी भी नहीं है तो वह देंगे कहां से? उक्त बातें अनूपपुर (मध्य प्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए छठे दिन प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए  कहीं।  

सरस राम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में श्री सीताराम विवाह से आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि मनुष्य अपने कर्म बिगाड़ करके ही जीवन में दुख कष्ट और बीमारी प्राप्त करता है। मनुष्य को खासकर अपने विवाह के बाद अपने कर्मों के प्रति सावधान जरूर हो जाना चाहिए। कर्म करने में लापरवाही का परिणाम भी सामने आता है। सीखने के लिए एक अवस्था होती है जीवन भर बार-बार गलती कर करके नहीं सीखा जा सकता है।

हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है। हमारे कर्म से ही हमारा प्रारब्ध बनता है। कोई भी व्यक्ति किसी और के भाग्य को बदल नहीं सकता है। क्योंकि उसका भाग्य तो उसके अपने ही कर्मों से बना होता है। कर्म का फल हर हाल में खाना होता है और सनातन धर्म विश्वास पर ही टिका है। भगवान को न मानने वाले या प्रकृति से छेड़छाड़ करने वाले लोगों को अगर यह लगता है कि उसका फल उन्हें नहीं भोगना होगा तो वह गलत सोचते हैं। अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का पूरा फल हर हाल में प्राप्त होता है। केवट जी को 17 जन्मों के बाद भगवान का पैर पखाड़ने का अवसर मिला था। धरती का संसार भगवान की रचना है और इसकी हर रचना पर भगवान की ही दृष्टि है। भगवान को वही जान पाता है जिसे भगवान जनाना चाहते हैं। और भगवान को जान जाने वाला भगवान का ही होकर ही रह जाता है।

प्रेम भूषण ने कहा कि मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाती के भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं करी है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट जी, शबरी जी और निषाद जी को जो सौभाग्य प्रदान किया वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं। धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों में यह बार-बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। कोई भी गा ले, फल अवश्य मिलेगा।

प्रेम भूषण महाराज ने कहा कि मनुष्य का पुनर्जन्म उसकी अपनी ही किसी एक ज्ञानेंद्रिय के  विकारों के कारण ही होता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिय हमको भटकाती रहती हैं। जब हमारी ज्ञानेंद्रियां भगवतोन्मुख होने लगती हैं तभी हमारा कल्याण होना शुरू हो जाता है। जब हम नित्य भगवत दर्शन करते हैं, भगवान का दर्शन करते हैं तो हमारी जिह्वा भगवान में रम जाती है।  महाराज श्री ने कहा कि हमें जीवन में कुछ देर शांत बैठने का भी अभ्यास करना चाहिए। जब हम धीरे-धीरे इसका अभ्यास करते हैं तो हमें अपने अंदर से ऊर्जा का स्रोत पता चलने लगता है। हम अंतर से प्रकाशित होना शुरू कर देते हैं।

महाराज ने कहा की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है । यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सनातन धर्म और परंपरा के साथ कई तरह के खिलवाड़ की घटनाएं हो रही है जो चिंता का विषय है। हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है। मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।

बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है। भगवान अविकारी हैं और मनुष्य अर्थात जीव विकारों से परिपूर्ण है। भगवान और मनुष्य में यही मूल अंतर है। अपने कर्मों के माध्यम से जीव अगर अपने विकारों से रहित हो जाता है या विकारों को कम करना शुरू कर देता है तो वह भगवान के तुल्य होने लगता है। निरंतर सतकर्मों में रहने वाला व्यक्ति ही विकारों से छुटकारा पाता है। 

प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि जानबूझ कर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज पाप करते और गंगा जी में नहा कर पाप धो लेते। फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं।  सनातन सदग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है, हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने  व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

MKRdezign

,

संपर्क फ़ॉर्म

Name

Email *

Message *

Powered by Blogger.
Javascript DisablePlease Enable Javascript To See All Widget