भारत में बढ़ती शिक्षित बेरोजगारी का संकट "The Educated Struggle" पुस्तक- अजय मिश्रा

भारत में बढ़ती शिक्षित बेरोजगारी का संकट "The Educated Struggle" पुस्तक- अजय मिश्रा


अनूपपुर

लेखक: अजय मिश्रा

परिचय:

अजय मिश्रा की The Educated Struggle भारत में बढ़ती शिक्षित बेरोजगारी के संकट पर प्रकाश डालती है। पुस्तक के अनुसार, उच्च शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, पुरानी शिक्षण पद्धतियाँ और उद्योगों की आवश्यकताओं से मेल न खाने वाली डिग्रियाँ इस समस्या के प्रमुख कारण हैं। भारत में युवाओं की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन वर्तमान शिक्षा प्रणाली उन्हें रोजगार के लिए तैयार नहीं कर पा रही है, जिससे आर्थिक और सामाजिक संकट पैदा हो रहा है।

मुख्य विषय एवं प्रमुख मुद्दे:

1. शिक्षित बेरोजगारी संकट

समस्या की गंभीरता: भारत में 18-37 वर्ष के 37 करोड़ से अधिक युवा रोजगार की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं।

डिग्री बनाम वास्तविकता: इंजीनियरिंग, एमबीए जैसी उच्च डिग्रियाँ प्राप्त करने के बावजूद लाखों युवा बेरोजगार हैं और सरकार की मुफ्त राशन जैसी योजनाओं पर निर्भर हैं।

मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव: बेरोजगारी के कारण अवसाद, शहरों की ओर पलायन, कम वेतन वाली नौकरियाँ, विवाह में देरी और युवाओं में बढ़ता आक्रोश देखने को मिल रहा है।

2. शिक्षित बेरोजगारी के मूल कारण

उच्च शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप:

विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्रशासकों की नियुक्ति राजनीति से प्रभावित होती है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता गिरती जा रही है।

पुरानी और अप्रासंगिक शिक्षा प्रणाली:

भारतीय शिक्षा प्रणाली अभी भी रटने पर आधारित है, जबकि उद्योगों को व्यावहारिक कौशल की जरूरत है।

डिग्रियों और नौकरी की आवश्यकताओं के बीच तालमेल की कमी।

शिक्षा का भ्रम:

डिग्रियों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन उनकी गुणवत्ता और मूल्य में गिरावट हो रही है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पाया, जिससे सुधार केवल सतही स्तर पर रह गए।

3. समाधान के सुझाव

योग्यता आधारित विश्वविद्यालय प्रशासन:

विश्वविद्यालयों के नेतृत्व को पारदर्शी और राजनीति-मुक्त बनाया जाए।

NEP 2020 का सही क्रियान्वयन:

पढ़ाई में व्यावहारिक कौशल, उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) और स्थानीय संसाधनों पर ध्यान दिया जाए।

शिक्षा और उद्योगों के बीच समन्वय:

छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए कंपनियों और विश्वविद्यालयों के बीच मजबूत भागीदारी हो।

स्वरोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा:

शिक्षा को नौकरी ढूंढने के बजाय नौकरी देने की दिशा में मोड़ा जाए और स्टार्टअप व कौशल विकास को प्रोत्साहित किया जाए।

पुस्तक का मुख्य संदेश:

यह पुस्तक हमें सोचने पर मजबूर करती है कि शिक्षा केवल डिग्री लेने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसमें कौशल, नवाचार और आत्मनिर्भरता विकसित करनी चाहिए। लेखक का मानना है कि जब तक भारत में शिक्षा प्रणाली, सरकारी नीतियों और उद्योगों के बीच समन्वय नहीं होगा, तब तक युवाओं के लिए रोजगार का संकट बना रहेगा। अगर इन सुधारों को समय पर लागू नहीं किया गया, तो भारत अपनी जनसंख्या लाभ को अवसर में बदलने के बजाय एक बड़े संकट का सामना करेगा।

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