संभलने भी नहीं देता ये बदलता मौसम, वार करता है जिस्मो जां पै बदलता मौसम
*बदलता मौसम*
संभलने भी नहीं देता ये बदलता मौसम,
वार करता है जिस्मो जां पै बदलता मौसम।
हम बदल पाते नहीं और ये बदल जाता है,
फिर ये जी भर के सताता है बदलता मौसम।
अपनी ऋतु से भी ये मुंह फेर के चल देता है,
बड़ा ही बेवफा होता है बदलता मौसम।
लगता है रूठ गया अगली बरस आएगा,
पर अचानक ही लौट आता बदलता मौसम।
चाहे जब रंग बदल लेता है गिरगिट की तरह,
आंख तोते सी फेर लेता बदलता मौसम।
चाहे जब रूठ के चल देता तुम्हारी तरहा,
चाहे जब लौट के आ जाता बदलता मौसम।
इसकी बातों पै अनिल को कतई यकीं नहीं,
दगा देने में ये माहिर है बदलता मौसम।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर मध्यप्रदेश