वरिष्ठता नियमों की अनदेखी पर सरकार की चुप्पी, शिक्षा विभाग में पारदर्शिता पर उठे सवाल
अनूपपुर
जिले में कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा 2024-25 के लिए केंद्र अध्यक्ष और सहायक केंद्र अध्यक्षों की नियुक्ति में शासन के स्पष्ट दिशा-निर्देशों की अनदेखी शिक्षकों में नाराजगी और असंतोष का कारण बन गई है। मध्य प्रदेश शासन, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वरिष्ठता क्रम के आधार पर नियुक्तियाँ किए जाने के सख्त निर्देश थे, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) अनूपपुर द्वारा जारी सूची में इन नियमों का पूरी तरह उल्लंघन किया गया।
इस नियुक्ति प्रक्रिया में वरिष्ठ शिक्षकों को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया, जबकि शासन के आदेश के अनुसार पहले प्राचार्यों, फिर व्याख्याताओं, और उसके बाद उच्च माध्यमिक शिक्षकों को केंद्र अध्यक्ष नियुक्त किया जाना था। इसके बावजूद, जिन शिक्षकों को 2011, 2012, 2013 और 2014 में माध्यमिक शिक्षक को उच्च माध्यमिक शिक्षक मान लिया गया पदोन्नति मिली थी, उन्हें उन शिक्षकों से अधिक वरिष्ठ मान लिया गया, जो 2006, 2007 और 2008 में उच्च माध्यमिक शिक्षक बने थे। यह स्पष्ट रूप से शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है और यह सवाल खड़ा करता है कि क्या इन नियुक्तियों में योग्यता और वरिष्ठता के बजाय किसी अन्य आधार पर चयन किया गया है।
शिक्षकों के अनुसार, मध्य प्रदेश शासन द्वारा 12 दिसंबर 2024 को जारी पत्र क्रमांक 778/1773/270/203 में यह स्पष्ट किया गया था कि वरिष्ठतम शिक्षकों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस निर्देश के बावजूद, जिस तरह से इस चयन प्रक्रिया को अंजाम दिया गया, वह पूरी तरह मनमानी और पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। अगर शासन के निर्देशों को नजरअंदाज किया जा सकता है, तो यह शिक्षकों की मेहनत और उनके अधिकारों का खुला उल्लंघन है।
इस तरह की मनमानी न केवल वरिष्ठ शिक्षकों के साथ अन्याय है, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र की निष्पक्षता और ईमानदारी पर भी गंभीर सवाल उठाती है। जब एक स्पष्ट चयन प्रक्रिया पहले से निर्धारित थी, तो उसे दरकिनार कर कम अनुभव वाले शिक्षकों को नियुक्त करने के पीछे कौन से कारण थे? क्या यह चयन प्रक्रिया किसी दबाव में की गई? क्या इसमें किसी प्रकार का भ्रष्टाचार हुआ? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग को देना होगा।
इस निर्णय के खिलाफ शिक्षकों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यदि सरकार वरिष्ठता सूची के अनुसार नियुक्तियाँ नहीं करती, तो वे उच्च स्तरीय जांच और कानूनी कार्रवाई की माँग करेंगे। यह फैसला उन शिक्षकों के अधिकारों को छीनने जैसा है, जिन्होंने वर्षों की मेहनत और सेवा के बाद अपनी वरिष्ठता अर्जित की थी। यदि इस तरह की मनमानी को नजरअंदाज किया गया, तो भविष्य में भी नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियाँ की जाएंगी और इससे योग्य शिक्षकों के साथ अन्याय होता रहेगा।
शिक्षकों की माँग है कि इस चयन प्रक्रिया की तुरंत जाँच कराई जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। वे चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर संज्ञान ले और यह सुनिश्चित करे कि आगे से नियुक्तियाँ पूरी पारदर्शिता और नियमों के तहत की जाएँ। यदि सरकार ने जल्द ही इस मामले में दखल नहीं दिया, तो शिक्षक आंदोलन का रास्ता अपना सकते हैं और जरूरत पड़ने पर वे न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाएँगे।
है। सरकार की चुप्पी इस विवाद को और गहरा रही है और इससे शिक्षकों का असंतोष बढ़ता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या शासन अपने ही बनाए नियमों का पालन करवाने में सक्षम है, या फिर यह मामला भी अन्य प्रशासनिक अनियमितताओं की तरह दबा दिया जाएगा? अब देखना यह है कि सरकार इस अन्याय को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है, या फिर यह शिक्षकों के हितों को नजरअंदाज करने का एक और उदाहरण बनकर रह जाएगा।