शिक्षाविद् साहित्यकार श्याम बहादुर की पुण्यतिथि पर स्मृति प्रसंग, विमर्श व रचनापाठ
बचपन- परिंदों से उड़ते दिन, जवानी-अल्प विराम, बुढ़ापा-विस्मय बोधक चिन्ह व मृत्यु-पूर्ण विराम- गिरीश पटेल
अनूपपुर
उर्दू अकादमी की निदेशक नुसरत मेहदी के मार्गदर्शन में व जाने माने शायर दीपक अग्रवाल के संयोजन व संचालन में अकादमी के सिलसिला कार्यक्रम के तहत 3 जनवरी को अनूपपुर में शिक्षाविद् साहित्यकार श्याम बहादुर नम्र की पुण्यतिथि पर स्मृति प्रसंग, विमर्श और रचनापाठ का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
वरिष्ठ शायर सतीश आनंद के मुख्य आतिथ्य और केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य डॉ.देवेंद्र तिवारी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए। इस कार्यक्रम में नम्र की सहधर्मिणी अनुराधा उनके दोनों बेटे अनुराग नम्र और अमन नम्र उनकी पुत्र वधू डॉ. इन्दू सिंह ख़ासतौर पर शामिल हुए। इस कार्यक्रम में अनुराधा नम्र को सम्मानित किया गया। काव्य पाठ सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ. परमानंद तिवारी पूर्व अग्रणी महाविद्यालय प्राचार्य एवं पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. गंगाधर ढोके रहे।
नम्र के व्यक्तित्व व कृतित्व पर वरिष्ठ पत्रकार रामावतार गुप्ता ने प्रकाश डाला तो साहित्यकार संतोष कुमार द्विवेदी ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में कहा कि श्याम बहादुर नम्र हद दर्जे के मौलिक व्यक्ति थे । उनकी नजरें चीजों को आर-पार देख पाती थीं क्योंकि वे पूर्वाग्रह से नहीं बालसुलभ जिज्ञासा से चीजों को देखते थे । वहीं अमन नम्र ने नम्र की प्रमुख कविताओं का पाठ किया तो लोगों की आंखों में चमक पैदा हो गई। साथ ही उन्होंने कुछ संस्मरणों के माध्यम से भी नम्र की याद ताज़ा की।
अध्यक्षीय उद्बोधन में केंद्रीय विद्यालय के डॉ. देवेन्द्र कुमार तिवारी ने कहा की इस महान व्यक्ति के बारे में यह कार्यक्रम हो रहा है उसके बारे में आप सबसे जान का जितना चलता है कि वाक़ई उनका काम कितना बड़ा रहा होगा। उन्होंने हुल्लड़ मुरादाबादी की कविता सुना उपस्थित कवियों को गुदगुदाने का काम किया।
अनुराधा नम्र ने सभी का आभार व्यक्त किया और बताया कि कैसे नम्र जी ने बेहतर जिंदगी को छोड़कर लोगों के भले के लिए एक मुश्किल और कठिन जिंदगी को चुना अपने बच्चों और परिवार को भी उस पर चलने के लिए प्रेरित किया।सरस्वती वंदना नन्हे छात्र नुति अग्रवाल ने प्रस्तुत की इस अवसर पर नम्र जी पर एक वेबसाइट का लोकार्पण भी किया गया।
रचनापाठ सत्र में पढ़ी कविताओं की बानगी -
सूरज दिखा ज़रूर उजाला नहीं मिला,
जो सत्य पर चले तो निवाला नहीं मिला.
सतीश आनन्द, कटनी
है यहाँ किसकी अमानत कौन जाने
हो गई कितनी ख़यानत कौन जाने
किरण सिंह शिल्पी
मैं स्त्री हूं ,मैं नारी हूं ,मैं कली हूं, फुलवारी हूं,
मैं दर्शन हूं, मैं दर्पण हूं, मैं नाद हूं, मैं गर्जन हूं,
मैं बेटी हूं ,मैं माता हूं, मैं बलिदानों की गाथा हूं,
मैं श्रीमद् भागवत गीता हूं ,मैं द्रोपदी हूं,मैं सीता हूं।
आकांक्षा शुक्ला
दुनिया ये होगी मुझसे मुनववर अभी नहीं ।
जुगनूॅ हूं शम्स के मैं बराबर अभी नहीं ।।
रजिदंर सिंह राज़ शहडोल
सीधी गंगा उल्टी बह रई
तुम का कह रहे दुनिया कह रही
डॉ. मनीष सोनी
हमारे बच्चे भी रखते हैं अपने छोटे ख़्वाब
क़लम से चाँद नहीं रोटियाँ बनाते हैं
कुलदीप कुमार
न जाने क्यों मुझे अब आईना अच्छा नहीं लगता
ख़ुद अपने आपको भी देखना अच्छा नहीं लगता
फै़य्याज़ हसन
जो है शहतूत बाहर से वो भीतर से धतूरा है
कसर कुछ भी नहीं बहुरूपिया पूरा का पूरा है
यासीन ख़ान
कहानी वो नहीं बनती यूँ नौका पार हो जिसमें |
अगर सागर में कश्ती है तो फिर तूफां जरूरीहै |
बृजमोहन सराफ बसर
कभी घोड़ा कभी जोकर कभी आया हुए हैं हम
बड़े लोगों के घर पे इस तरह जाया हुए हैं हम
डॉ. गंगाधर ढोके
अपने घर में मैं अकेला था सरासर झूट है,
मेरे सिरहाने खड़ा था एक साया रात भर..
नसीर नाजुक
ये मुझसे हारने वालों को कैसे समझाऊं
मैं अपने आपको हारा समझ के बैठा हूं
दीपक अग्रवाल
मैं वो नदिया हूँ जो पहुँची है उमंगें लेकर
ये समंदर मेरे उत्साह को फ़ीका न करे
रंजना गौतम
कर्म योग सन्यास के योद्धा सहज प्रतीक,
श्याम बहादुर नम्र पर यही बात है ठीक
डॉ.परमानंद तिवारी
बचपन- परिंदों से उड़ते दिन
जवानी-अल्प विराम
बुढ़ापा-विस्मय बोधक चिन्ह
और मृत्यु-पूर्ण विराम
गिरीश पटेल
आँखों से रात भर यहाँ बहती है इक नदी
मैं सुब्ह फ़स्लें सींचता हूँ उसके आब से
- आयुष सोनी
जब से मुझको हुई है वफ़ा आपसे।
तब से मिलता है बस हौसला आपसे।
डॉ. प्रियंका त्रिपाठी
क़ासिम इलाहाबादी ने नदी पर एक बेहतरीन नज़्म पेश की वहीं पवन छिब्बर ने कविताओं में नम्र की यादें ताज़ा की।