प्रलेस की बैठक पंडित शम्भूनाथ शुक्ल लाइब्रेरी में हुई संपन्न, शंकर शर्मा को दी श्रद्धांजलि
*एक राजनेता के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक गतिविधियों में उनका योगदान अविस्मरणीय है*
अनूपपुर
प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर की जनवरी माह की बैठक, स्थानीय पंडित शम्भूनाथ शुक्ल लाइब्रेरी में विगत दिवस संपन्न हुई, जिसमें प्रलेस के सदस्यों के अलावा अनूपपुर के गणमान्य नागरिक भी शामिल रहे ।इस कार्यक्रम में सर्व सम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रलेस अनूपपुर के कवि और लेखकों की रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए एक संकलन प्रकाशित किया जाएगा ताकि सभी की रचनाएँ एक ही पुस्तक में संग्रहित की जा सके। यह पुस्तक शीघ्र ही प्रकाशित की जाएगी ।
इस कार्यक्रम में अनूपपुर के प्रसिद्ध साहित्यकार,राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवी दिवंगत शंकर प्रसाद शर्मा के साथ ही डॉक्टर मनमोहन सिंह, अनूपपुर के प्रथम विधायक जुगल किशोर गुप्ता, कवि विनोद भावुक, प्रलेस कोतमा के सदस्य अविनाश अग्रवाल की दादी और पूर्व विधायक मनोज अग्रवाल की माँ यशोदा देवी अग्रवाल तथा पत्रकार राज कुमार की माँ श्रीमती नैना देवी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई एवं दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना की गई ।शंकर प्रसाद शर्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उपस्थित सभी लोगों ने उन्हें याद करते हुए उनके साथ बिताए हुए क्षणों तथा उनके द्वारा किए कार्यों की प्रशंसा की ।सर्वप्रथम शर्मा जी की छवि पर माल्यार्पण करके उन्हें नमन किया गया ।प्रलेस के सचिव रामनारायण पाण्डेय ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया कि शंकर प्रसाद शर्मा,जो कि शंकर बाबू के नाम से प्रसिद्ध थे, प्रलेस अनूपपुर के संरक्षक रह चुके हैं । एक राजनेता के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक गतिविधियों में उनका योगदान अविस्मरणीय है, उनके पिता राधिका प्रसाद व माता यशोदा देवी बाहर से आकर अनूपपुर में बस गए थे । उमेश सिंह ने बताया कि एक बार रात दो बजे मुझे दवा की ज़रूरत थी तो उन्होंने घर से दुकान आ कर दवा दी और पैसा भी नहीं लिया । बासुदेव चटर्जी ने कहा कि नई पीढ़ी को यह जानना चाहिए कि पुराने लोग इस क्षेत्र के लिए क्या कर गए हैं, अनूपपुर का विकास ऐसे ही नहीं हो गया है, इसके लिए लोगों को बहुत तपस्या करनी पड़ी है और उन लोगों में से शर्मा जी एक हैं । नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष जीवेंद्र सिंह ने कहा कि जब शर्मा जी ग्राम पंचायत के पहले सरपंच बने उस समय मेरे पिता जी सेक्रेटरी थे ।हम बिहार से हैं और जब हम बिहार जाते थे तो अपनी गाय उनके घर पर छोड़ कर जाते थे ।और शुरुआत में हमारे चिठ्ठियां उनके पते पर आती थीं ।पी एस राउत राय ने कहा कि वे बैंक के डायरेक्टर थे पर उनकी सादगी देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि वे बैंक के डायरेक्टर होंगे । उनके व्यवहार को भुलाया नहीं जा सकता ।छत्तीसगढ़ बिलासपुर से विशेष रूप से इस कार्यक्रम में शामिल होने आए तापस कुमार हाजरा ने कहा कि जब मैं अनूपपुर आया तो मैंने शंकर बाबू और भाईलाल पटेल का काफी नाम सुना था जब इनसे मिला तो इनका व्यवहार देखकर समझ ही नहीं आ रहा था कि ये लोग एक हैं या अलग अलग । जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रमेश सिंह ने कहा कि मुझे उनसे मिलने का कई बार अवसर प्राप्त हुआ तो उन्होंने अनूपपुर के विकास में मेरी भूमिका के बारे में जानने की कोशिश की और मुझे दिशा निर्देश दिया कि मुझे क्या करना चाहिए । डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव ने उनके द्वारा लिखित साहित्यिक पुस्तकों की चर्चा करते हुए उसमें लिखित कई अंशों को उद्धृत किया और उनके लेखों का ज़िक्र करते हुए उन्हें विद्वान व्यक्ति की संज्ञा दी। बाल गंगाधर सेंगर ने कहा कि पहले मैं बीजेपी में था और अनूपपुर कांग्रेस के विरोध का कोई मुद्दा नहीं था तो एक नारा लगवा दिया कि कांग्रेस के तीन दलाल , शंकर शंभु भाईलाल । बाद में मुझे उनकी दुकान पर दवा लेने जाना पड़ा और मैं झेंपते हुए गया पर उन्होंने सामान्य व्यवहार किया और मुझे चाय भी पिलाई ।पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष राम खिलावन राठौर ने उन्हें अनूपपुर का गांधी निरूपित करते हुए कहा कि शंकर बाबू के साथ ही भाईलाल पटेल ने मिलकर अनूपपुर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया और ये दोनों कांग्रेस पार्टी के आधार स्तंभ थे ।नगरपालिका अनूपपुर के विधायक प्रतिनिधि शैलेंद्र सिंह ने कहा कि मैं उनके बारे में ज़्यादा तो नहीं जानता पर उनके द्वारा अनूपपुर का विकास स्वयं उनकी कहानी कहता है । इसी क्रम में एडवोकेट संतोष सोनी ने उन्हें अनूपपुर के विकास का पर्याय बताते हुए उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने की बात कही । राजन राठौर ने उनसे हुई मुलाक़ात और चुनाव के समय पार्टी के लिए किए गए प्रयासों और कार्यकर्ताओं के साथ उनके सद्वयवहार की चर्चा की । कार्यक्रम के अंत में प्रलेस अध्यक्ष गिरीश पटेल ने कहा कि मैं पिछले 65 वर्षों से जानता था । जबसे मैंने होश सँभाला उन्हें अपने काका के रूप में पाया । काका के तौर पर मैं दो लोगों को जानता था एक शंकर काका और दूसरे लल्ला काका यानी चैनलाल शिवहरे । हमारे पिता भाईलाल पटेल और शंकर प्रसाद शर्मा ने घर एक साथ बनाया पर गृह प्रवेश के दिन तक यह तय नहीं था कि कौन किस घर में रहेगा, इन दोनों के बीच इतना गहरा रिश्ता था ।