भगवान किसी को भी दुख और कष्ट नहीं दे सकते हैं- प्रेमभूषण महाराज

भगवान किसी को भी दुख और कष्ट नहीं दे सकते हैं- प्रेमभूषण महाराज

*बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है*


अनूपपुर

जिसके पास जो होता है दूसरे को वही वस्तु दे सकता है। अपने कष्ट और दुख के लिए हम बेवजह भगवान को दोष लगाते हैं। भगवान किसी को दुख या कष्ट दे ही नहीं सकते हैं, क्योंकि उनके पास ना तो दुख है, ना कष्ट है। भगवान के पास कोई बीमारी भी नहीं है तो वह देंगे कहां से? उक्त बातें अनूपपुर (मध्य प्रदेश) के अमरकंटक रोड स्थित कथा पंडाल में श्री राम कथा का गायन करते हुए छठे दिन प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए  कहीं।  

सरस राम कथा गायन के लिए लोक ख्याति प्राप्त प्रेममूर्ति प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम सेवा समिति के पावन संकल्प से आयोजित नौ दिवसीय रामकथा गायन के क्रम में श्री सीताराम विवाह से आगे के प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि मनुष्य अपने कर्म बिगाड़ करके ही जीवन में दुख कष्ट और बीमारी प्राप्त करता है। मनुष्य को खासकर अपने विवाह के बाद अपने कर्मों के प्रति सावधान जरूर हो जाना चाहिए। कर्म करने में लापरवाही का परिणाम भी सामने आता है। सीखने के लिए एक अवस्था होती है जीवन भर बार-बार गलती कर करके नहीं सीखा जा सकता है।

हमारे हाथ में केवल हमारा कर्म है। हमारे कर्म से ही हमारा प्रारब्ध बनता है। कोई भी व्यक्ति किसी और के भाग्य को बदल नहीं सकता है। क्योंकि उसका भाग्य तो उसके अपने ही कर्मों से बना होता है। कर्म का फल हर हाल में खाना होता है और सनातन धर्म विश्वास पर ही टिका है। भगवान को न मानने वाले या प्रकृति से छेड़छाड़ करने वाले लोगों को अगर यह लगता है कि उसका फल उन्हें नहीं भोगना होगा तो वह गलत सोचते हैं। अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का पूरा फल हर हाल में प्राप्त होता है। केवट जी को 17 जन्मों के बाद भगवान का पैर पखाड़ने का अवसर मिला था। धरती का संसार भगवान की रचना है और इसकी हर रचना पर भगवान की ही दृष्टि है। भगवान को वही जान पाता है जिसे भगवान जनाना चाहते हैं। और भगवान को जान जाने वाला भगवान का ही होकर ही रह जाता है।

प्रेम भूषण ने कहा कि मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाती के भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं करी है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट जी, शबरी जी और निषाद जी को जो सौभाग्य प्रदान किया वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं। धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों में यह बार-बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। कोई भी गा ले, फल अवश्य मिलेगा।

प्रेम भूषण महाराज ने कहा कि मनुष्य का पुनर्जन्म उसकी अपनी ही किसी एक ज्ञानेंद्रिय के  विकारों के कारण ही होता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिय हमको भटकाती रहती हैं। जब हमारी ज्ञानेंद्रियां भगवतोन्मुख होने लगती हैं तभी हमारा कल्याण होना शुरू हो जाता है। जब हम नित्य भगवत दर्शन करते हैं, भगवान का दर्शन करते हैं तो हमारी जिह्वा भगवान में रम जाती है।  महाराज श्री ने कहा कि हमें जीवन में कुछ देर शांत बैठने का भी अभ्यास करना चाहिए। जब हम धीरे-धीरे इसका अभ्यास करते हैं तो हमें अपने अंदर से ऊर्जा का स्रोत पता चलने लगता है। हम अंतर से प्रकाशित होना शुरू कर देते हैं।

महाराज ने कहा की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है । यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सनातन धर्म और परंपरा के साथ कई तरह के खिलवाड़ की घटनाएं हो रही है जो चिंता का विषय है। हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है। मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में गलत कार्य करता है धन उपार्जन करने के लिए। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है।

बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है। भगवान अविकारी हैं और मनुष्य अर्थात जीव विकारों से परिपूर्ण है। भगवान और मनुष्य में यही मूल अंतर है। अपने कर्मों के माध्यम से जीव अगर अपने विकारों से रहित हो जाता है या विकारों को कम करना शुरू कर देता है तो वह भगवान के तुल्य होने लगता है। निरंतर सतकर्मों में रहने वाला व्यक्ति ही विकारों से छुटकारा पाता है। 

प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि जानबूझ कर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज पाप करते और गंगा जी में नहा कर पाप धो लेते। फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं।  सनातन सदग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है, हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। बड़ी संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी, भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। इस आयोजन से जुड़ी समिति के सदस्यों ने  व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी।

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