कार्यपरिषद का फर्जी गठन व दुरुपयोग मामले में कुलपति पर राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने किया प्रकरण दर्ज
*भगवा पार्टी के जिला अध्यक्ष ने ज्ञापन सौपकर अधिकारीयों से पाँच प्रश्न पूछा*
अनूपपुर
कुलपति प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी तथा कार्य परिषद के अन्य पांच सदस्यों के विरुद्ध राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में प्रकरण पंजीबद्ध कर लिया गया है, इसकी शिकायत विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभाग संगठन मंत्री तथा मध्य क्षेत्र के स्वालंबन कार्य प्रमुख मोरध्वज पैकरा ने अनुसूचित जनजाति आयोग में किया था। प्रकरण पंजीबद्ध हो जाने के पश्चात राष्ट्रीय जनजाति आयोग कार्य परिषद के फर्जी गठन तथा कार्य परिषद की शक्ति के दुरुपयोग के अपराध की जांच शुरू कर दिया है। उसके बावजूद भी कुलपति अपने साथ-साथ अन्य कार्य परिषद के अन्य सदस्यों को जेल भिजवाने में लगे हैं तथा कार्य परिषद की बैठक 2-3 दिसंबर 2024 को फिर से सुनिश्चित कर लिया है। कार्यकाल समाप्त होने के 48 घंटे पहले की जा रही फर्जी कार्यपरिषद् की बैठक करने पर कुलपति तथा कार्य परिषद् के सदस्यों को तत्काल गिरफतार करने हेतु भगवा पार्टी के जिला अध्यक्ष कमलेश द्विवेदी ने पुलिस अधीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक, मुख्यमंत्री तथा सीबीआई को ज्ञापन सौपा है।
*फर्जीवाड़ा पर रोक न लगना अपमान*
कमलेश द्विवेदी ने आगे बताया की इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, घोटाला की अनेक शिकायत पर राष्ट्रपति भवन ने मुख्य सचिव मध्य प्रदेश सरकार से कार्यवाही अग्रेषित किया है इसके बावजूद कुलपति भ्रष्ट कृत्य करने, करोड़ों के अवैध भुगतान तथा अपने समस्त फर्जी कार्यों, सफेदपोश अपराध / भ्रष्टाचार को को कार्यपरिषद से पारित कराकर कागज पर सही करते जा रहे हैं और मंत्रालय के अधिकारियों का आम जनता, युवा के परेशानी को हल्के से लेने की कारण हजारों युवाओं /छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है जिससे मध्य प्रदेश के युवाओं में प्रशासन के प्रति उचित संकेत नहीं जा रहा हैं। मुख्य सचिव के जाँच के बिंदु में प्रमुख है की प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 24(2) के विपरीत जाकर एक भी जनजाति सदस्य नहीं होने के बावजूद कार्य परिषद की बैठक आयोजित कर रहे हैं, जबकि एक्ट के अनुसार कार्यपरिषद में पर्याप्त संख्या में जनजाति सदस्य होने चाहिए। इस कारण से एक्ट के अनुसार यह कार्य परिषद ही फर्जी और जनजातीय विरोधी है, महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि कार्य परिषद के गठन में स्टेटयूट के अनुसार सामाजिक संगठन के चार सदस्यों को कार्य परिषद में नामित किया जाता है, इस हेतु शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार से अनुमति तथा शिक्षा मंत्रालय से नामित कराए जाना चाहिए, लेकिन शिक्षा मंत्रालय को बिना जानकारी दिए प्रकाशमणि त्रिपाठी ने अपने रिश्तेदार, अपने परिचित को कार्य परिषद का सदस्य बनाए है, जिसमें एक भी जनजातीय सदस्य को नहीं रखा जो की फर्जीवाड़ा का स्पष्ट प्रमाण है। कानूनी दृष्टिकोण से बेहद गंभीर है क्योंकि प्रकाशमणि त्रिपाठी कार्यपरिषद की मिनिट्स पर सदस्यों का हस्ताक्षर नहीं करवाते हैं, कभी भी बैक डेट से कोई भी निर्णय कर लेते हैं, कुल सचिव और प्रकाशमणि त्रिपाठी दोनों मिलकर उस पर हस्ताक्षर करके फर्जी मिनिट्स बना लेते हैं, इसप्रकार से अनेक बार फर्जी एवं कूटरचित कार्य परिषद के मिनट से विश्वविद्यालय का संचालन किया जा रहा है। जब कार्यपरिषद की फर्जी होने की जांच चल रही है तब कार्य परिषद की बैठक आयोजित करना अपने आप में बेहद गंभीर और कानूनी दृष्टिकोण से उचित नहीं है, अतः जांच होने तक इस कार्यपरिषद् की बैठक पर रोक लगाया जाये यदि कुलपति नहीं मानते है तो उन्हें और अन्य कार्य परिषद् के सदस्यों को गिरफ्तार किया जाये।
*भगवा पार्टी ने पूछा पाँच यक्ष प्रश्न*
भगवा पार्टी के जिला अध्यक्ष कमलेश द्विवेदी ने ज्ञापन सौपकर अधिकारीयों से पाँच यक्ष प्रश्न पूछा है की क्या, कुलपति प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी का भ्रष्टाचार- घोटाला का ताकत, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार से ज्यादा प्रभावी एवं ताकतवर हो गया है?? अनेक शिकायत तथा राष्ट्रपति भवन से शिकायत कार्रवाई हेतु अग्रेषित होने के बावजूद भी ना तो भ्रष्टाचार रुक रहा है ना हीं घोटाला पर कोई कंट्रोल हो रहा है ऐसा क्यों?? विश्व के सबसे सम्मानित, राष्ट्रऋषि, साधु स्वभाव परम तेजस्वी माननीय नरेंद्र मोदी यशस्वी प्रधानमंत्री भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधिकारी, क्या इसीप्रकार का 'मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस' देंगे?? क्या ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सबका प्रयास’ का यही परिभाषा मंत्रालय के अधिकारी दे रहे है?? जनजातियों के साथ छल करके बनाए गए कार्य परिषद के फर्जी होने के स्पष्ट साक्ष्य के बावजूद कार्यपरिषद के दुरुपयोग पर रोक क्यों नहीं लग पा रहा है? इन पाँच प्रश्नों के जवाब के लिए मंत्रालय में सूचना का अधिकार भी लगाया जायेगा।
*कार्यपरिषद की संदिग्ध गतिविधि*
कमलेश द्विवेदी ने आगे बताया की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में पारदर्शिता तथा भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी तंत्र को उच्च प्राथमिकता दिया गया है इस विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद की संदिग्ध गतिविधि शून्य पारदर्शिता प्रकट करती है, कार्यपरिषद का एक भी एजेंडा तथा संबंधित मिनट्स विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं है। सरकार की ओर से सम्मिलित दो अत्यंत जिम्मेदार अधिकारी ( अनुपम राजन तथा संजय कुमार / एस. के. बरनवाल) पारदर्शिता की न्यूनतम मापदंड को सुनिश्चित करने हेतु ऐसा तर्क विश्वविद्यालय को दे सकते है की जब तक पूर्व में आयोजीय कार्यपरिषद की बैठकों का एजेंडा तथा मिनिट्स विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया जाता है तब तक कार्यपरिषद की बैठक पर नहीं करने हेतु निर्देश विश्वविद्यालय को भेज सकते है। कार्य परिषद की बैठक का एजेंडा 21 दिन पहले सदस्यों को भेजा जाता है, कार्य परिषद की पिछली बैठक 22 नवंबर 2024 को हुआ था, जल्दीबाजी में कार्य परिषद की अगली बैठक दिसंबर 2024 के प्रथम सप्ताह में तय किया गया है। कार्य परिषद में अनुपम राजन, संजय कुमार, एस. के. बरनवाल, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार भी इसके सदस्य हैं। मुख्य सचिव को चाहिए की अधिकारी द्वय को यह सूचित करें कि प्रकरण महामहिम राष्ट्रपति के अग्रेषित शिकायत आवेदन जांच के अधीन है, जनजातियों के साथ फर्जीवाड़ा करके गैरकानुनी रूप से गठित की गई कार्यपरिषद की बैठक का आयोजन ना करें।