अवैध वन कटाई में प्रशासन की उदासीनता, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला रवैया
*जनता के भ्रष्टाचारियो के खिलाफ खोला मोर्चा, डीएफओ से की कार्यवाही की मांग*
अनूपपुर
जिले के कोतमा वन परिक्षेत्र बीट धुरवासिन कोटमी में व्यापक अवैध वन कटाई और भ्रष्टाचार का खुलासा होने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न होने से स्थानीय जनता में असंतोष और रोष व्याप्त है। स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा की गई जांच में खुलासा हुआ कि कई सरई और साजा के कीमती पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया, जिससे वन विभाग को लाखों रुपये की आर्थिक क्षति हुई है। इस कृत्य में सहायक परिक्षेत्र अधिकारी विनोद कुमार मिश्रा, वन रक्षक सोमपाल सिंह कुशराम, और तत्कालीन प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी अशोक निगम को दोषी पाया गया, लेकिन आज तक इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
*भ्रष्टाचार के खुले प्रमाण*
प्रशासन का यह उदासीन रवैया न केवल उनके कर्तव्य से विमुख होने को दर्शाता है, बल्कि भ्रष्टाचार को सीधा-सीधा बढ़ावा देता है। जिस प्रकार से जांच रिपोर्ट में अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत के प्रमाण सामने आए हैं, उससे यह सवाल उठता है कि आखिर कब तक प्रशासन भ्रष्टाचारियों को बचाता रहेगा? स्पेशल टास्क फोर्स की स्पष्ट रिपोर्ट के बावजूद संबंधित अधिकारियों को अपने पद पर बनाए रखना वन विभाग की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है।
सरकार द्वारा इस मामले में ठोस कदम न उठाना यह दर्शाता है कि वन विभाग खुद अवैध गतिविधियों के खिलाफ एक प्रभावी निवारण लागू करने में पूरी तरह असमर्थ है। प्रशासन की यह ढिलाई एक खतरनाक संदेश देती है कि ऐसे भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारी बिना किसी डर के अपनी मनमानी कर सकते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी।
*पर्यावरण की अनदेखी व धन की बर्बादी*
अवैध कटाई से न केवल पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है, बल्कि इससे जनता के कर के पैसों का दुरुपयोग भी हुआ है। वन विभाग, जिसका उद्देश्य पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा है, अपने ही उद्देश्यों के खिलाफ काम करता नजर आ रहा है। जनता का कहना है कि अधिकारियों पर प्रस्तावित आर्थिक दंड और पदोन्नति रोकने की नोटिस जैसी मामूली सजा देकर उन्हें बचाने की कोशिश की जा रही है। यह भ्रष्टाचारियों के लिए एक तरह की प्रोत्साहना है कि वे जनता के हितों को ताक पर रखकर अपने स्वार्थ को साधें।
*जनता की मांग: कठोर कार्रवाई की जरूरत*
जनता अब इस मामले में त्वरित और कठोर कदम उठाने की मांग कर रही है। जिम्मेदार अधिकारियों को न केवल उनके पद से तुरंत हटाया जाना चाहिए, बल्कि उनके खिलाफ म.प्र. सिविल सेवा नियम 1966 की धारा 16 के अंतर्गत सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो। यदि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर चुप्पी साधे रहता है, तो यह सरकार की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर गहरा धब्बा होगा।
यह प्रकरण दर्शाता है कि जब तक भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दिया जाएगा, तब तक पर्यावरण और समाज की सुरक्षा असंभव है। सरकारी विभागों की ऐसी लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैया न केवल जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाता है बल्कि सरकार की नीतियों और उद्देश्यों पर भी सवाल खड़े करता है।