वासना में लिप्त महा असुरो, अमानव कहूँ या दानव कहूँ, धिक्कार है, तुम पर

वासना में लिप्त महा असुरो, अमानव कहूँ या दानव कहूँ, धिक्कार है, तुम पर



*नमन मंच, अतुकांत रचना*

सृजन पंक्ति - *धिक्कार है तुम पर*


अमानव कहूँ या दानव कहूँ, 

धिक्कार है, धिक्कार है, तुम पर। 

वासना में लिप्त महा असुरो, 

धिक्कार है, धिक्कार है तुम पर।।


छल कपट से भरा हुआ मन, 

मिलकर धोखे से कर दिया वार। 

काली अंधियारी भयानक रात में, 

अस्मत को किया है तार-तार।।


 उन मात पिता पर क्या बीती, 

नहीं सोचा होगा एक पल भी। 

उनके सुनहरे सपनों को, अपनों को, 

 खाक में मिलाने में नहीं लगा एक क्षण भी। 


 देना था जिन्हें न्याय सही, 

वह चुप्पी साध कर बैठ गए। 

कहीं मोमबत्तियां जरूर जली, 

कुछ हड़ताल पर भी बैठ गए।।


हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, 

घर में ही शोक मना लिया ।

 दिन, महीने, साल बीतते रहे, 

एक और निर्भया को गॅंवा दिया। 


उन वहशियों को क्यों नहीं मिला,

कोई ऐसा कठोर भयानक दंड। 

जिससे अंतरात्मा उनकी काॅंप उठे ,

और हर दूसरा व्यक्ति गुनाह करे बंद। 


नारी के आत्म सम्मान को ,

जो नर पिशाच ठेस लगाये। 

उसे बीच चौराहे पर खड़ा कर, 

गोलियों से छलनी किया जाए। 


तभी इस समस्त भूमंडल में,

 नारी सुरक्षित रह पाएगी। 

वरना हर मन में भरे आक्रोश से, 

सृष्टि में प्रलय आ जाएगी।। 


*हे नरपिशाच धिक्कार है, धिक्कार है तुम पर*।। 


*रश्मि पाण्डेय शुभि जबलपुर मध्यप्रदेश*

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