हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक की जिरह पर गांजा के आरोपी की सजा को किया निलंबित
*पुलिस ने बुलाकर झूठा फंसाकर बना दिया था आरोपी*
अनूपपुर
गांजा के एक प्रकरण में आरोपी की सजा को हाई कोर्ट के द्वारा निलंबित करते हुए जमानत पर रिहा करने का आदेश हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक पांडे की जिरह के बाद किया है 21 दिसंबर 2023 विशेष न्यायाधीश (एन.डी.पी.एस. एक्ट) शहडोल (म.प्र.) द्वारा विशेष प्रकरण क्रमांक 86/2021 में निर्णय पारित करते हुए अभियुक्त सुनील केशरवानी को धारा 25 एनडीपीएस के तहत 20 साल कि कैद और 2 लाख रुपए जुर्माना से दण्डित किया था
10 जुने 2021 को टी.आई. पुलिस थाना अमलाई को मुखबिर द्वारा सूचना प्राप्त हुई कि एक ट्रक क्र. सी.जी. 16 सीके 0399 अनूपपुर से ब्यौहारी जा रहा है जो ट्रक के डिब्बे में अवैध रूप से गांजा ले जा रहा है पुलिस स्टाफ द्वारा घेरा बंदी ट्रक को रोकने पर ड्राइवर द्वारा अपना नाम लक्ष्मण यादव और परिचालक राजू यादव बताया ट्रक की तलाशी के बाद वाहन से केबिन की छत पर 3 क्विंटल 60 किलो गांजा बरामद हुआ था, और ट्रक मालिक सुनील केशरवानी को भी धारा 25 और 29 एनडीपीएस एक्ट के तहत मामले पर आरोपी बना दिया था।
उक्त सजा पे अपील करते हुए मामला जबलपुर उच्च न्यायालय पहुंचा अपीलकर्ता सुनील केशरवानी के ओर से अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय पिता मिथलेश पाण्डेय मूल निवासी जमुना कॉलरी अनुपपुर ने अपने पैरवी करते यह प्रकरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि अपीलकर्ता निर्दोष है ड्राइवर और क्लीनर के मेमोरेंडम पर उन्हें आरोपी बनाया गया है अभियोजन पक्ष ने अपने बचाव में कहा कि उसने अपना ट्रक कटनी से अंगुल (ओडिशा) भेजा था और लौटते समय यदि ड्राइवर और क्लीनर ने कोई सामग्री लोड की थी तो उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता यह प्रस्तुत किया गया है कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8(i)(सी) के प्रावधान की आवश्यकता पूरी नहीं होती है
अपीलार्थी को प्रतिबंधित पदार्थ के परिवहन के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी यह प्रस्तुत किया गया है कि पुलिस ने शुरू में उसे बुलाया था क्योंकि उसका ट्रक दुर्घटनाग्रस्त हो गया था इसके बाद उसे झूठा फंसाया गया है उसे घटना स्थल से गिरफ्तार नहीं किया गया वह ट्रक के साथ यात्रा नहीं कर रहा था इस तरह सजा को निलंबित करने और अपीलकर्ता को जमानत देने की प्रार्थना की गई जिस पर उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण सिंह जी ने इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, मामले की खूबियों पर टिप्पणी किए बिना अपीलकर्ता की शेष जेल की सजा को निलंबित करने और उसे जमानत पर रिहा करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला बताते हुए और पुलिस के कार्यवाही और एनडीपीएस स्पेशल कोर्ट शहडोल के फैसले को गलत बताते हुए अपीलकर्ता की शेष जेल की सजा को निलंबित करने का निर्णय को सुनाया।