ब्रज छोड़कर मत जइयो, सावन का ये मौसम है, मोहि और न तरसइयो, सावन का ये मौसम है

ब्रज छोड़कर मत जइयो, सावन का ये मौसम है, मोहि और न तरसइयो, सावन का ये मौसम है



*सावन का ये मौसम है*

 

ब्रज छोड़कर मत जइयो,

सावन का ये मौसम है।

मोहि और न तरसइयो,

सावन का ये मौसम है।


मैं जानती हूं जमुना तीर काहे तू आए,

हम गोपियों के मन को कान्हा काहे चुराए,


जा लौट के घर जाइयो,

माखन चुराके खाइयो,

पर चीर ना चुरइयो,

सावन का ये मौसम है।


इस प्यार भरे गीत के छंदों की कसम है,

तोहि नाचते मयूर के पंखों की कसम है।


घुंघटा मेरो उठाइयो,

पर नजर ना लगइयो,

फिर बांसुरी बजइयो,

सावन का ये मौसम है।


नयनों की ज्योति तुझको बुलाने चली गई,

मिलने की आस,अर्थी सजाने चली गई,


अब के बरस जो अइयो 

सारी उमर न जइयो,

कांधा मोहे लगाइयो,

सावन का ये मौसम है।

 

ब्रज छोड़कर मत जइयो,

सावन का ये मौसम है।

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 'गीतकार'-अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट, ग्वालियर,

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