माहेश्वरी समाज ने तीज-चतुर्थी एक साथ मनाई सत्तू से बने व्यंजन का प्रसाद ग्रहण किया
*निमड़ी की
पूजा कर, चंद्रमा को दिया अर्घ्य, की सौभाग्य की कामना*
अनूपपुर
तीज और चतुर्थी एक साथ गुरुवार को मनाई गई।महिलाओं ने चतुर्थी का व्रत रखा।रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य दिया।माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने सातुड़ी तीज पर व्रत रखा।रात्रि को चंद्रमा का पूजन किया।अर्घ्य दिया और सत्तू से बने व्यंजनों का प्रसाद ग्रहण किया।इससे पहले सत्तू को पासा गया।सत्तू से बने विभिन्न व्यंजन बनाए,इन्हें प्रसाद स्वरूप खाया। माहेश्वरी महिला संगठन शहडोल अध्यक्ष साधना मंत्री एवं अनूपपुर अध्यक्ष शशि ईनानी द्वारा सातुड़ी तीज का आयोजन किया गया।उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि भाद्रपद कृष्णपक्ष तृतीया को सम्पूर्ण राजस्थान में मनाया जाने वाला सातुड़ी तीज पर्व इस राज्य की विशिष्ट परम्परा का पर्व है।लेकिन माहेश्वरी समाज के लिये तो यह विशेष महत्व रखता है।कारण यह है कि साक्ष्यों की मान्यता के अनुसार इसी दिन माहेश्वरी समाज के पूर्वज 72 उमराव भगवान महेश की कृपा से पुर्नजीवित हुए थे।
*ऐसे मनाते हैं यह पर्व*
इस दिन 72 उमरावों के भगवान शिव एवं माता पार्वती के आशीर्वाद से पुनः जीवित होने पर उनकी पत्नियों में हुई असीम खुशी ने एक महोत्सव का रूप धारण कर लिया था।अनेक दिनों से तपस्या में लीन महिलाओं ने अपना उपवास जंगल में उपलब्ध कच्चे दूध,ककड़ी, नींबू एवं प्रभु द्वारा प्रदत्त सत्तु को ग्रहण करके तोड़ा था। ठीक इसी प्रकार आज भी माहेश्वरी महिलाएं तीज के दिन उपवास रखकर शाम को नीमड़ी की पूजा करके, चंद्र दर्शन कर अर्ध्य देती हैं एवं अपना उपवास कच्चे दूध, सत्तु,ककड़ी व नींबू से तोड़ती हैं।
*चंद्रमा से सौभाग्य की कामना*
रात्रि में चंद्रमा उगने के बाद अर्ध्य दिया जाता है।अर्ध्य देते समय बोलते हैं-सोना को सांकलों,मोत्यां को हार,बड़ी तीज (कजली तीज) का चांद के अरग देवता,जीवो बीर-भरतार।अर्ध्य देने के बाद पिंडा (सत्तू) पासा बड़ा किया जाता है। पति या भाई चांदी के सिक्के से पिंडे का एक टुकड़ा तोड़ते (बड़ा करते) हैं। पति द्वारा पत्नी को कच्चे दूध के 7 घूंट पिलाकर उपवास खुलवाया जाता है।