भूमि पूजन के बाद भी शहीद के नाम पर बन पाया स्मृति द्वार, उपेक्षा का दंश झेल रहा है परिवार
*देश के लिए प्राणों की आहूति देने वाले शहीद की कुर्बानी को भूल गई सरकार, जनप्रतिनिधि मौन कब होगा वादा पूरा?*
अनुपपुर
जरा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आए ये बाते उनके लिए कही जाती है जो देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति देकर हम सबको सुरक्षित रखते है मगर, देश के लिए शहादत देने वाले शूरवीरो के परिजनों को शासन प्रशासन की उदासीनता झेलनी पड़ रही है आलम यह है कि स्मृति द्वार का भूमि पूजन कई वर्ष पूर्व होने के बावजूद आज तक सिर्फ अश्वाशन का झुनझुना ही मिला, किये गए वादों को पूरा न होता देख शहीद के परिजन काफी दुखी हैं।
अनूपपुर जिले के फुनगा गाँव का जहाँ भारतीय सेना का जवान शहीद बिनोद सिंह परिहार 2006 में ऑपरेशन मेघदूत के तहत बर्फ के ग्लेशियर में फंसे हुए अपने दो साथियों को निकालते समय सियाचिन बॉर्डर पर शहीद हो गए थे देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर फुनगा को गौरवान्वित किया था इसको देखते हुए शहीद सैनिक के शहादत को लोग हमेशा याद रखें इसके लिए स्मृति द्वार का निर्माण कराया जाना था जो आज तक नही हो सका, इससे से भी ज्यादा हैरानी तो यह जान कर होगी कि इसके लिये नेताओं ने बकपादा भूमि पूजन कर फोटो खिंचवाया पर अपसोस खुद उस वक्त के नेता ने दल ही बदल लिया तो दूसरे नेता ने मंच से डेढ़ लाख रुपये स्वीकृति करने की घोषणा कर दी लेकिन धरातल पर किये वादे आज भी अधूरे है। जबकि इस बात को शहीद की भाभी और पिता दोनों ने कही है।
आपको बता दें कि शहीद विनोद सिंह परिहार के पिता सूर्यभान सिंह सेना से ही सेवानिवृत्त हुए है उनकी उम्र 85 वर्ष हो चुकी है, शहीद की माता फरवरी 2023 में स्वर्ग सिधार गई तो वही शहीद विनोद सिंह के बड़े भाई कुछ वर्ष पहले सड़क हादसे में अपनी जान गंवा चुके हैं, अब घर में सिर्फ शहीद विनोद सिंह की भाभी 2 बच्चे और पिता ही है। रिटायर्ड फौजी अरुण पाल सिंह कहते है कि हमारे अनूपपुर जिले में राजनेता या प्रशासन फौजियों को सम्मान नही देता शायद इसी वजह से आज तक फुनगा के शहीद विनोद सिंह परिहार के नाम पर एक स्मृति द्वार तक नही बनवाया जा सका यही कारण है कि अनूपपुर जिले से कोई सेना में नही जाना चाहता जबकि अन्य क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता यहाँ तक कि दिल्ली सरकार शहीदो को 1 करोड़ रुपये देती है इस तरह में कैसे इस क्षेत्र के युवाओं को प्रेरणा मिल पायेगी इस जिले में फौजियों के साथ नाइंसाफी होती है।
शहीद विनोद सिंह के पिता सूर्यभान सिंह बताते है कि बेटा भोपाल में पढ़ाई कर रहा था और वहां से बिना बताए अचानक गायब हो गया, ठीक 2 दिन बाद उसका फोन आता है कि मेरा भारतीय सेना में सिलेक्शन हो गया है और उनका फोन काटते ही घर में कॉल लेटर आ जाता है फस्ट पोस्टिंग राजपूत रेजीमेंट आर्मी के तहत राजस्थान में हुई थी खेलकूद में बहुत अच्छा होने के कारण जल्द प्रमोशान मिला और एक लांस नायक की पोस्ट पर पहुंच गए 3 दिसंबर को आखरी बार घर पर आते हैं और 10 दिसंबर को अपने भतीजे का नामकरण करते हैं 2 दिन बाद ही इनको कॉल आता है कि 19 दिसंबर को सियाचिन ग्लेशियर में आपको रिपोर्ट करना है 11 दिसंबर को इनकी शादी फिक्स हो जाती है पर इन्होने कहा जब में सियाचिन से आऊंगा तब में शादी करूंगा उसके बाद वह 17 दिसंबर को घर से रवाना हो जाते है सियाचिन ग्लेशियर के लिए जहां 19 दिसंबर को यह रिपोर्ट करते हैं सिख रेजीमेंट सियाचिन ग्लेशियर में, 26 फरवरी को इनको ऑर्डर मिलता है कि आपको एक पेट्रोलिंग पार्टी के साथ रात में पेट्रोलिंग सर्च के लिए निकलना है जिस पेट्रोलिंग पार्टी के इंचार्ज यह खुद थे, फिर अचानक बर्फ स्खलन हो जाने के कारण अपने साथियों को बचाते बचाते 27 फरवरी को वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं। 28 फरवरी सुबह लगभग 12:00 बजे इनके घर में फोन आता है कि विनोद सिंह शहीद हो चुके है। गाँव के ग्रामीण अजय बताते है कि बहुत दुख तो इस बात का है कि शहीद विनोद सिंह तो शहीद हो गये साथ ही उनके भाई का भी सड़क दुघर्टना का शिकार हो गए यह परिवार और क्षेत्र के लिए पीड़ा दायक तो है इससे भी ज्यादा पीड़ा का विषय तो यह है कि उनके पिता वृद्ध है चाहिये और जब तक चल फिर पाते थे तब भी उन्होंने काफी प्रयास किया तब से लेकर अब तक कोई भी विधायक, जनप्रतिनिधि वादा किया हुआ शहीद द्वार नही बनवा पाए। ये बड़े शर्म की बात है। एक शहीद व उनके परिवार के कितनी बड़ी दुखद बात होगी कि जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान निछावर कर सकता है उसके व उसके परिवार के मान सम्मान के लिए व स्मृति द्वार के लिए भीख मांग रहे हैं।
दरअसल ऑपरेशन मेघदूत, भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सशस्त्र बलों के ऑपरेशन के लिए कोड- नाम था, जो सियाचिन संघर्ष से जुड़ा था 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया यह सैन्य अभिवान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर किया था आज भारतीय सेना की तैनाती के स्थान को वास्तविक ग्राउंड पॉजिशन लाइन (एजीपीएल) के रूप में जाना जाता है।
लोगो का कहना है कि हमारे देश के सैनिक चाहे वह थल सेना, बायु सेना, नैवी किसी के भी ही सभी हमारे लिए बहुत ही आदरणीय है और सम्मानीय है अगर कोई भी सिपाही देश की रक्षा करते करते अपनी जान न्यौछावर करता है तो मेरा ऐसा मानना है कि वह व्यक्तिगत परिवार का नुकसान नही है पूरे देश का नुकसान है क्योंकि वह रास्ट्रीय संपत्ति के रूप में देखा जाए तो अतिशियोक्ति नहीं होगी यह घटना जिस वर्ष की है जो अब सवाल यह उठता है कि देश के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले चीर सैनिक शहीद विनोद सिंह परिहार के नाम पर किये गए वादों को पूरा किया जायेगा या जिस तरह से शहीद को माँ ने स्मृति द्वार पर बेटे का नाम लिखा देखने के पहले ही दम तोड़ दिया, वही कहानी 85 वर्ष के हो चुके शहीद के पिता के साथ भी जुड़ जाएगी।