सोन-तिपान के संगम पर साहित्यिक सफ़र, साहित्यकार पर एक नजर


सोन-तिपान के संगम पर अनूपपुर का साहित्यिक सफ़र, साहित्यकार पर एक नजर

*अनूपपुर*



*गिरीश पटेल*


बहु आयामी प्रतिभा के धनी गिरीशचंद पटेल किसी परिचय के मोहताज नहीं है वे कुशलवक्ता, आयोजक, कहानीकार, कवि के साथ योगाचार्य भी है। सर्व प्रथम तुलसी महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में अपनी निःशुल्क सेवाएँ प्रदान की। नगर के साहित्यिक, सांस्कृतिक मंच अभास के अध्यक्ष के रूप में कई वर्षों तक सक्रिय रहे। योग विद्या में गहरी सोच होने के नाते कई बार योग शिविर का आयोजन किया तथा अभी भी योग करते है और योग की शिक्षा देते है। कई वर्षों से प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर के अध्यक्ष है तथा आपके नेतृत्व में संघ का प्रांतीय सम्मेलन अनूपपुर नगर में सफलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। आप लगातार कविताएँ एवं या कहानिया लिखने एवं साहित्यिक प्रतिभाओ को आगे बढ़ाने का का कार्य कर रहे है-आनंद पाण्डेय सह संपादक दैनिक उज्ज्वल समाचार भोपाल।

कवि एवं कहानीकार गिरीश पटेल की कलम से अनूपपुर के साहित्यिक सफर एवं साहित्यकारों पर एक नजर- 👇👇👇

अनूपपुर भले ही जगह छोटी रही हो (जिला बनने के पहले) पर यहाँ साहित्यकारों की कमी नहीं रही। साहित्यकार यानि वह प्रतिभाशाली व्यक्ति जो साहित्य सृजन करता हो तात्पर्य यह कि वह लेखक, कहानीकार, कवि, गीतकार, समालोचक, शायर या नाटककार कुछ भी हो या एकाधिक गुणों से भरपूर हो। पत्रकार भी लेखन में व्यस्त रहते हैं पर उनका लेखन एक विषय विशेष पर केन्द्रित रहता है यानि समाचार बनाना और रिपोर्टिंग करना अस्तु उन्हें साहित्यकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। एक पत्रकार साहित्यकार हो सकता है पर एक साहित्यकार का पत्रकार होना ज़रूरी नहीं है।

जब सेलफोन और टेलीफोन नहीं थे तब लगभग हर व्यक्ति पत्र लिखता था और लेखन ही लेखक का कर्म है तो क्या पत्र लिखने वाला हर व्यक्ति लेखक और साहित्यकार हुआ? इसके लिए हमें अंग्रेज़ी के शब्द ऑथर और राइटर के भेद को समझना होगा ऑथर साहित्यकार हैं पर राइटर साहित्यकार नहीं है, दूसरे शब्दों में ऑथर एक राइटर है पर राइटर का ऑथर होना आवश्यक नहीं है। हिंदी में साहित्यकार और लेखक दोनों को ही समानार्थी समझ कर इसका उपयोग किया जाता है इसीलिए भ्रांति उत्पन्न होती है। इसे समझ लेने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्र लिखने वाला हर व्यक्ति साहित्यकार नहीं है। एक बड़े साहित्यकार ने लिखा है कि हर व्यक्ति कम से कम एक कहानी तो लिख ही सकता है और वह कहानी उसके जीवन और अनुभवों से उपजेगी। तो ऐसी एक कहानी लिखने वाले व्यक्ति को क्या साहित्यकार कहा जा सकता है? कदापि नहीं। तो अब साहित्यकार का अर्थ लगभग स्पष्ट हो गया।

अब हम अनूपपुर के साहित्यकारों की बात करें तो मेरी नज़र और फेहरिस्त में जो साहित्यकार सम्मिलित हैं उनकी संख्या 39 है, हो सकता है इनके सिवा और भी साहित्यकार हों जिनके नाम मैं भूल रहा होऊँ या जिनके बारे में मुझे ज्ञात नहीं। तो मुझे उन्हीं साहित्यकारों का ज़िक्र करना है जो मेरी फेहरिस्त में हैं।

*उदय प्रकाश*👇


उदय प्रकाश का परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। हमारा यह कहना कि उदय प्रकाश अनूपपुर के हैं के बजाय यदि हम यह कहें कि अनूपपुर उदय प्रकाश का है तो यह समीचीन होगा। उदय प्रकाश उस साहित्यकार का नाम है जिनकी ख्याति भारत में ही नहीं अपितु देश-देशांतर में व्याप्त है। देश-विदेश के कई शोधकर्ताओं ने उनके ऊपर शोध-प्रबंध लिखे हैं और यही इस बात का संकेत है कि वे इस क्षेत्र में किस ऊँचाई पर बैठे हुए हैं।

उदय प्रकाश का बचपन सीतापुर में बीता इनका जन्म 1 जनवरी 1952 को हुआ। इनके पिताजी, जो कि कुंवर साहब के नाम से विख्यात थे, पढने के बहुत शौक़ीन थे। इनकी माता जी बहुत अच्छा गाती थीं और और बहुत सुन्दर अक्षरों में लिखती थीं। इनकी बुआ स्वयं कविता लिखती थीं। इस प्रकार इन्हें साहित्य का अच्छा वातावरण मिला, नैसर्गिक प्रतिभा तो इन्हें प्राप्त हुई ही होगी जिसके चलते ये 6-7 वर्ष की आयु में ही कविता लिखने लग गए। इनकी कविताएँ कई पत्रिकाओं में छपने लग गई । 8 वीं तक अनूपपुर में पढ़ने के पश्चात् ये आगे की पढ़ाई करने शहडोल चले गये । जब ये 12 वीं में आए तब इन्होंने शहडोल से एक पत्रिका निकाली अर्थान्तर'। शहडोल महाविद्यालय में बहुत थोड़े समय अध्ययन करने के पश्चात् ये सागर विश्व विद्यालय चले गये। वहाँ से पढ़ाई पूरी कर जे० एन० यू० में। १९७७ में वे जे० एन० यू०में असिसटेन्ट प्रोफ़ेसर के रूप में कार्य करने लगे । इन्होंने कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाओं में अपनी सेवाएँ अर्पित कीं, जिसमें प्रमुख रूप से- डिपार्टमेंट ऑफ मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक विभाग, टाइम्स रिसर्च फाउंडेशन में अंग्रेज़ी व हिंदी के प्राध्यापक, टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय विभाग, संडे मेल, बंगलुरू से निकलने वाली पत्रिका 'एमिनेन्स' के संपादक आदि । इसके अलावा 1984 से मीडिया फ़ोटोग्राफ़ी, पेंटिंग, कला समीक्षा, फ़िल्म समीक्षा आदि का कार्य किया। उन्होंने अपनी अंतिम शैक्षणिक सेवा अमरकंटक विश्वविद्यालय में 2012 में अर्पित की।

वे अपने आप को मूलतः कवि ही कहते हैं पर उनकी कहानियों ने भी साहित्य- जगत में धूम मचा दी। उनकी कहानियों पर फिल्में बनी और बन रही हैं। उनके साहित्य का अनुवाद कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में हो चुका है और अच्छी ख्याति प्राप्त हुई है। बहुत कम लोग जानते हैं कि वे बहुत अच्छे चित्रकार भी हैं तथा कई प्रसिद्ध पुस्तकों के कवर का चित्रांकन भी इन्होंने किया है। चूँकि यह लेख मात्र उदय प्रकाश पर नहीं है इसलिए इसे यहीं विराम देता हूँ।

*गोविंद श्रीवास्तव*👇


गोविंद श्रीवास्तव अनूपपुर हायर सेकेंडरी स्कूल में व्याख्याता के रूप में कार्यरत थे। उदय प्रकाश से लेकर हमारे सहपाठियों और हमसे कनिष्ठ विद्यार्थियों तक को इन्होंने पढाया है पर संयोग से हमारी कक्षा को पढ़ाने का मौक़ा इन्हें कभी प्राप्त नहीं हुआ। ये हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ ही इतिहास के भी मर्मज्ञ थे और विद्वानों में इनकी गिनती होती थी। साहित्य में इनकी शुरू से ही अभिरुचि थी। ये पान के बहुत शौकीन थे और विद्यालय में अध्यापन के दौरान भी ये पान खाते रहते थे। कक्षा में पढ़ाते समय ये जब किसी से पुस्तक माँगते थे तो कोई भी विद्यार्थी इन्हें पुस्तक देने को तैयार नहीं होता था क्योंकि पान खाते हुए पुस्तक सामने रखकर पढ़ाने से पुस्तक के पन्नों पर मॉडर्न आर्ट बन जाता था दूसरे शब्दों में पान से पेंटिंग हो जाती थी। सन् 1964-65 में इनकी एक कहानी खोके घोंघे 'सरिता में प्रकाशित हुई थी। इसी दरम्यान इनकी एक कविता जिसकी एक पंक्ति थी - ऐसा लगता है कि सारा गाँव बिड़ी पी रहा है। आई। शुरुआत इन्होंने तुकांत कविताओं और पयों से की फिर नई कविता लिखने लगे पर बाद में ये दोहों पर केन्द्रीकृत हुए और बहुत ही अर्थपूर्ण शानदार दोहे लिखे । ये अच्छे समीक्षक भी थे।

प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के प्रथम अध्यक्ष भी थे और निरंतर कई वर्षों तक इन्होंने इस संघ को अपनी सेवाएँ अर्पित कर जीवन प्रदान किया। प्रगतिशील लेखक संघ ने इनका सम्मान करने की योजना बनाई थी पर कॉरोना काल की वजह से यह कार्यक्रम लंबित हुआ और इसके पहले कि यह काल बीतता, वे हमेशा के लिये हमें छोड़कर चले गए और हमारे मन में यह टीस रह ही गई।

*डॉक्टर रामलखन गुप्ता*👇


डॉक्टर रामलखन गुप्ता अनूपपुर तुलसी महाविद्यालय में प्राचार्य के पद में 1976 में पदस्थ हुए। प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर की पहली बैठक इन्हीं के निवास पर सम्पन्न हुई तभी से प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर की स्थापना हुई। प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना का श्रेय गुप्ता जी को ही जाता है। महाविद्यालय के प्राचार्य होने के साथ ही वे कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे तथा साहित्य सृजन करते रहे। कविताओं में इनकी गहरी अभिरुचि थी। साहित्य उत्थान के लिये इनका प्रयास सराहनीय था, इसके लिए वे तरह-तरह के प्रयास करते रहते थे और कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते रहते थे। इनके प्रयासों से अनूपपुर में अच्छा साहित्यिक वातावरण निर्मित हुआ था। अनूपपुर महाविद्यालय से निवृति के पश्चात् वे जबलपुर में बस गए थे पर भौतिक रूप से वे अब इस दुनिया में विद्यमान नहीं है।

*डॉक्टर यज्ञ प्रसाद तिवारी*👇


डॉक्टर रामलखन गुप्त के अनूपपुर आने के पहले से ही जहाँ तक मुझे याद है सन् 1973 में तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर के हिन्दी विभाग में आपकी नियुक्ति हुई थी। उस समय तुलसी महाविद्यालय के संस्थापक सदस्यों के साथ ही सभी शिक्षकों को भी महाविद्यालय के संचालन में अपना योगदान देना होता था क्योंकि यह इस महाविदयालय के संघर्ष का काल था, इस समय अत्यल्प वेतन में सारे शिक्षक अपनी सेवाएँ अर्पित कर रहे थे ज़ाहिर है कि डॉक्टर तिवारी भी उन्हीं में से एक थे। शुरू में कुछ समय के लिए वे हमारे घर पर भी रहे जिसकी वजह से हमें उनका सानिध्य प्राप्त हुआ । डॉक्टर तिवारी बहुत ही विद्वान व्यक्ति हैं। मुझे लगता है कि पहले-पहल उनकी एक पुस्तक 'तुलसी मूल्य और दर्शन ' काफ़ी उच्च कोटि की शोध पुस्तक गोस्वामी तुलसीदास पर आई थी जिसे मैंने पढ़ा है। उनका एक एकांकी / लघु नाटक का संग्रह' खाली कप' भी आया था। इसके सिवा भी इन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, लेख और कविताएँ भी। मुझे लगता है कि सन् १९७८ के आसपास तिवारी जी ने एक संस्था का गठन किया था जोकि साहित्यिक, सांस्कृतिक, कलात्मक और सामाजिक गतिविधियों का मंच था जिसका नाम रखा गया था' आभास' इस संस्था में कुल पाँच सदस्य थे- डॉक्टर यज्ञ प्रसाद तिवारी, प्रोफेसर वी० एन० सिंह, राधेश्याम अग्रवाल, रामनारायण पाण्डेय और मैं। डॉक्टर तिवारी और प्रोफ़ेसर सिंह इसके निर्देशक के पद पर थे। रामनारायण पाण्डेय सचिव, राधेश्याम अग्रवाल कोषाध्यक्ष तथा मैं इस संस्था का अध्यक्ष था। केवल पाँच सदस्यों वाली यह संस्था काफी मज़बूत और प्रगतिशील थी। ठीक ७ बजे सायं इस संस्था की बैठक होती थी और सभी सदस्य ठीक ६ बज कर ६० मिनट पर उपस्थित हो जाते थे। गज़ब की समय की पाबंदी थी। इतने कम सदस्यों वाली इस संस्था ने गज़ब के काम किए थे। मंचीय कार्यक्रम, साहित्यिक कार्यक्रम, चित्रकला प्रतियोगिता, और गाँवों में मेडिकल केम्प करने के अलावा इस संस्था ने आभास 'नाम की एक पत्रिका भी प्रकाशित की थी जिसमें अखण्ड शहडोल ज़िले के चुनिंदा साहित्यकारों की रचनाएँ समाहित थी, बहुत ही आकर्षक और शानदार पत्रिका निकली थी यह। बाद में इस संस्था में चचाई के भी कई सदस्य जुड़ गए थे जिसमें नरेश चंद्र 'नरेश', प्रकाश मानके, ब्रोजेन्द्र राय और प्रदीप (इनका सरनेम मुझे याद नहीं आ रहा है) आदि।डॉक्टर यज्ञप्रसाद तिवारी शहडोल महाविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रमुख रहे। इन्होंने अमेरिका, मॉरिशस सहित कई विदेशी देशों की साहित्यिक यात्रा कर अनूपपुर का नाम रोशन किया है। संप्रति ये कभी अनूपपुर और कभी नागपुर में रहते हैं।

*श्याम बहादुर नम*👇


श्याम बहादुर नम्र बनारस में गांधी वादी संस्था 'सर्व सेवा संघ' में अपनी सेवाएँ दे रहे थे, वहाँ कोई अनबन होने से उन्होंने इस संस्था को छोड़ दिया। इसी संस्था में प्रसिद्ध समाज सेवी श्री अनंत के दास' जौहरी जी' भी सेवारत थे और इसी दरम्यान इनकी जान-पहचान नम जी से हुई थी। अनंत जी इस संस्था को छोड़कर अनूपपुर आ गए थे और यहीं रहने लगे थे। 1977-78 में उन्होंने नम जी को भी अनूपपुर बुला लिया शुरुआत में कई महीने वे अनंत जी के घर पर ही रहे बाद में अनंत जी से भूमि प्राप्त कर इन्होंने अपना घर बनाया और यहीं रह कर खेती करने लगे और सामाजिक कार्यों में हिस्सा भी लेने लगे। प्रसिद्ध शिक्षाविद व सामाजिक कार्यकर्ता आचार्य राममूर्ति नम जी के ससुर थे और उन्हीं की प्रेरणा से शिक्षा के क्षेत्र में नम जी ने भी काम करना शुरू कर दिया। ज़िला शहडोल में उन्हें शिक्षाविद के तौर पर जाना जाता है, पर हम तो यहाँ कवि नम्र जी के बारे में चर्चा करने के लिए उत्सुक हैं। नम जी की गहन से गहन कविता भी गाह्य होती थी और आसानी से समझ में आ जाती थी। यह उनकी रचना की विशेषता थी। बानगी के तौर पर देखिये उनकी चंद पंक्तियाँ- एक रचना जो लगभग सभी ने सुनी होगी-

हर शाख पे उल्लू बैठा है

अंज़ामे गुलिस्ताँ क्या होगा इसी के जवाब में नम जी लिखते हैं-

शाख़ काटकर हमने सारे उल्लू दूर उड़ाये उसी शाख़ की कुर्सी पर फिर उल्लू बैठे पाए बोलो क्या करोगे

नम जी में सादगी थी और संघर्ष करने की क्षमता थी पर काल ने उन्हें असमय ही हमसे छीन लिया

*जगदीश पाण्डेय*👇


जगदीश पाण्डेय हमारे सहपाठी थे, और प्रगतिशील लेखक संघ में भी थे। शरीर से दुबे पतले और कमज़ोर नज़र आते थे पर व्यवहार में प्रायः उग्रता दृष्टिगोचर होती थी। इनकी रचनाएँ काफ़ी दमदार थीं और अच्छे रचनाकारों में इनकी गिनती होती थी। इनकी हस्तलिपि अत्यंत सुन्दर थी। ये अच्छे समीक्षक भी थे। अनूपपुर के बाहर भी लोग इन्हें जानते और इनका सम्मान करते थे। दुःख पूर्वक कहना पड़ रहा है कि अब ये भी हमारे बीच नहीं हैं।

*डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव*👇


डॉक्टर नीरज श्रीवास्तव, सोन मौहरी अनूपपुर से हैं। ये 1996-97 के आसपास अनूपपुर में रहने लगे और इन्होंने फ़ोटोकॉपी और टाइपिंग की दुकान अनूपपुर बस स्टैंड में कर ली। ये 1983 से कविता लिखने लगे। शहडोल महाविद्यालय से निकलने वाली वार्षिक पत्रिका' वाणी ' में ये छात्र सम्पादक की हैसियत से जुड़े । शहडोल आकाशवाणी में ये केजुअल एनाउन्सर के तौर पर 7-8 वर्षों तक रहे । इन्होंने हिंदी से एम० ए०, बी० एड० और 1998 में पी० एच० डी० की। पहले डी० ए० वी० स्कूल में शिक्षक रहे फिर इसे छोड़ कर अपने व्यवसाय में आ गए। अभी केशवाही महाविद्यालय में प्राचार्य के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने विभिन्न लेखों और कविताओं के साथ ही एक काव्य लिखा है 'नर्मदा के मेघ'।

*हनुमान प्रसाद तिवारी*👇


हनुमान प्रसाद तिवारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अनूपपुर में हिंदी के व्याख्याता के पद पर 1968 के आस पास कार्यरत थे। हिंदी में अच्छी अभिरुचि होने के कारण इन्हें कविता से भी लगाव था। इन्होंने कितनी कवितायें लिखी और क्या क्या लिखा इसके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। एक बार एक कवि गोष्ठी के दौरान इनकी कविताओं को सुनने का मौका मिला। ये हिंदी के अच्छे विद्वान और व्याकरणाचार्य थे। अनूपपुर विद्यालय से स्थानांतरण होने के बाद फिर उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।

*विनोद शंकर भावुक*👇


विनोद शंकर भावुक का निवास पुरानी बस्ती अनूपपुर में है। ये पहले चूड़ियों का कारोबार करते थे लेकिन साहित्य में रुचि होने के कारण ये ज़्यादातर कविताएँ ही लिखते थे। बाद में ये गद्य भी लिखने लगे। अभी तीन चार साल पहले इन्होंने एक धार्मिक पुस्तक भी लिखी है जिसे पढने का मुझे मौक़ा मिला है कई बार इन्हें गोष्ठियों में आमंत्रित किया गया पर अब ये उसमें हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं।

*राम स्वरूप रैकवार*👇


राम स्वरूप रैकवार बस स्टैंड अनूपपुर में पान की दुकान करते थे। इनके पान की दुकान की एक खासियत यह थी कि ये बड़ी अदा से पान पेश करते थे। ग्राहक इनकी अदा पर फिदा हो जाते थे। राम स्वरूप जी मुख्यतः कुंडलियों में अपनी रचना प्रस्तुत करते थे। यदि यह कहा जाए कि अनूपपुर में कुंडलियों लिखने वाले एक मात्र रचनाकार राम स्वरूप ही थे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राम स्वरूप जी भी अब इस दुनिया में नहीं रहे।

*रुद्र प्रताप सिंह 'दददा*👇


दद्दा जी सीतापुर में रहते थे। दद्दाजी ही एक मात्र बघेली के कवि थे और अपनी रचनाएँ बघेली में ही लिखते थे। दद्दाजी के सिवा अनूपपुर में कोई भी बघेली का कवि नहीं था। कई बार कवि गोष्ठियों में दद्दा जी को सुनने का मौक़ा मिला। दद्दा जी अपनी बात सीधे-सीधे कहते थे, उनकी कविताओं में घुमाव फिराव नहीं था इसलिए इनकी रचनाएं श्रोताओं को बहुत जल्दी समझ में आ जाती थीं। दद्दाजी की एक कविता की चंद पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं जो इस प्रकार है-

कहये रहौं तोसे के पढ़ मोर लाला घूमत रहे तब तो नदिया औ नाला कैसन के जनिहे य जीवन के बात कैसे समझिहे य दिन है के रात इन सब कवियों के बारे में बताते हुए दुःख होता है कि अब ये हमारे बीच नहीं है।

*शंकर श्रीवास्तव*👇


शंकर श्रीवास्तव पान की दुकान करते थे बल्कि कहा जाए कि पान का थोक व्यवसाय करते थे और इन्हें भी कविता लिखने का शौक था। अक्सर कवि गोष्ठियों में शिरकत करते थे। ये भी बहुत ही कम उम्र में चल बसे।

*मधुकर चतुर्वेदी*👇


मधुकर जी 1985 के आसपास एक उभरते हुए कवि थे। अच्छा लिखते थे और उस समय लगभग सभी गोष्ठियों में उनका आवागमन होता था पर काफ़ी समय से वे कविता के क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं। फिलहाल वे अपने व्यवसाय में लिप्त हैं।

*पवन छिब्बर*👇


छिब्बर जी मुख्यतः हास्य और व्यंग्य कलाकार हैं। ये रायपुर में रायपुर संगीत समिति जो कि एक ऑर्केस्ट्रा समिति थी, में एनाउन्सर थे और अमीन सय्यानी की हुबहू आवाज़ में संचालन करते थे । छिब्बर जी मिमिक्री आर्टिस्ट भी हैं और तमाम कलाकारों और व्यक्तियों की नकल इस तरह करते हैं कि असली और नकली में फ़र्क़ करना कठिन हो जाता है। ये संचालन और मिमिक्री के अलावा नृत्य और गायन में भी रुचि रखते हैं। ये छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के माने हुए कलाकार हैं तथा इन्होंने फिल्मों में भी काम किया है। बाद में ये व्यंग्य कविता भी लिखने लगे और फिलहाल प्रगतिशील लेखक संघ के संरक्षक हैं।

*रामायण पाण्डेय*👇


रामनारायण पांडेय अपने अध्ययन काल में ही लिखना प्रारंभ कर चुके थे। पहले ये पाण्डेय 'सत्य' और पंकज 'अनूपपुरी' के नाम से कविता लिखते थे बाद में ये रामनारायण पाण्डेय के नाम से ही लिखने लग गए। शिक्षण समाप्त कर ये तुलसी महाविद्यालय अनूपपुर में लिपिक के पद पर कार्य करने लगे। कुछ समय पश्चात ये बिलासपुर के महाविद्यालय में लिपिक के पद पर ही कार्यरत हुए । इस बीच इनका विवाह हो गया और किसी कारणवश इन्होंने बिलासपुर महाविद्यालय से त्यागपत्र दे दिया और अनूपपुर वापस आ गए। यहाँ आकर कुछ समय बाद इन्होंने पान की दुकान खोल ली इस बीच ये लगातार साहित्य से जुड़े रहे कविता लिखना तथा तमाम साहित्यिक व्यक्तियों से सम्पर्क साधने में इनकी गहरी अभिरुचि थी। जब अनूपपुर प्रगतिशील लेखक संघ का गठन हुआ तब से आज तक ये उसके सचिव पद पर कार्यरत हैं या यह कहा जाए कि लगभग चालीस वर्षों से ये इस पद पर हैं तो गलत नहीं होगा मुझे लगता है कि शायद ही कोई व्यक्ति इतने लंबे समय तक किसी पद पर रह सकता है पर रामनारायण ने इतने वर्षों तक इस पद पर रहकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पान की दुकान बंद कर ये अनूपपुर में संचालित पंडित शम्भूनाथ शुक्ल लायब्रेरी में लाइब्रेरियन के पद पर पदस्थ हुए। इस दरम्यान इन्होंने लाइब्रेरी में ही अनेक साहित्यिक कार्यक्रम संचालित किए और अनूपपुर में साहित्यिक गतिविधियों को जारी रखा और उन्हें जीवन प्रदान किया। इस तरह से रामनारायण पांडे जी ने साहित्य की अपूर्व सेवा की है जो हमेशा याद की जाएगी।

*दीपक अग्रवाल*👇


दीपक अग्रवाल अनूपपुर में इस समय महावीर प्रेस को संचालित कर रहे हैं। दीपक अग्रवाल जब कविता करने लगे तो अनूपपुर के साहित्यकारों ने प्रारंभ में विशेष रुचि नहीं दिखाई फिर भी ये गोष्ठियों और साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे। समय बीतता गया और इन्होंने अपनी साधना जारी रखी। कुछ समय पश्चात् जब मोबाइल फ़ोन का युग प्रारंभ हुआ और इन्होंने अपनी रचनाएँ फ़ोन पर डालना शुरू की तो इनकी सराहना शुरू हो गई। दीपक ने उस समय शायरी पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया और धीरे-धीरे इनकी ख्याति फैलने लगी। दो एक मुशायरे में मौका मिलने के बाद आयोजकों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित होने लगा और एक दिन ऐसा आया कि भारत के नामचीन शायरों के साथ इन्हें शिरकत करने का मौक़ा मिला और पूरे भारत में यह एक पहचाना हुआ नाम हो गया। दीपक की शायरी अर्थपूर्ण और यथार्थवादी होती है। इन्हें उर्दू का बहुत अच्छा ज्ञान है इस कारण इनकी रचनाएँ सशक्त बन पाती हैं। दीपक ने निःसंदेह अनूपपुर का नाम पूरे देश में गौरान्वित किया है, अनूपपुर को उन पर नाज है। संप्रति दीपक अग्रवाल प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर में सह सचिव के पद को सुशोभित कर रहे हैं। देखिए दीपक की एक रचना-

मुझसे ढलना तेरा देखा नहीं जाता सूरज

नींद आ जाए मुझे शाम से पहले पहले

कैसी बेचैनी तुझे घेर रही है 'दीपक'

कितना आराम था आराम से पहले पहले ।

*विजेन्द्र सोनी*👇


विजेन्द्र अक्सर कहा करते हैं कि वे कोई कवि नहीं है। हो सकता है वे प्रारंभ में कवि ना रहे हों और उन्होंने कभी गंभीरता पूर्वक इस तरफ सोचा भी ना हो लेकिन एक बात तो है कि उन्होंने साहित्य का गहन अध्ययन किया है पढ़ने में उनकी जबरजस्त रुचि है तो इस तरह से उन्होंने कविता और साहित्य के बारे में काफ़ी ज्ञान अर्जित कर लिया है, कई कवियों की अनेक रचनाएँ उन्होंने पढ़ी हैं और उन्हें हृदयंगम किया है। कौन सी रचना कैसी है और उसकी केंद्रीय वस्तु क्या है यह जानने में वे काफ़ी सिद्धहस्त हैं। इस तरह यह कहा जा सकता है कि उन्हें कविता की अच्छी समझ है। अनूपपुर में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन किया गया था जिसे हम सब ने मिलकर किया था, उसके आयोजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वह कार्यक्रम बहुत सफल रहा और उसे बहुत सराहा गया। यह सब करते-करते वे कब कवि बन गए उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने अच्छी-अच्छी सार्थक कविताएँ लिखी हैं। इस समय वे प्रगतिशील लेखक संघ शहडोल संभाग के संभागीय संयोजक हैं।

*राधेश्याम अग्रवाल*👇


राधेश्याम अग्रवाल मेरे सहपाठी रहे हैं। साहित्य में उनकी शुरुआत से ही गहरी रुचि रही है। वे कविताएँ भी लिखते थे। 'आभास' संस्था में वे कोषाध्यक्ष के पद पर तथा 'अभिनव राजीव बाल कल्याण समिति' में उपाध्यक्ष के पद पर उन्होंने कार्य किया है। दीपक के साहित्य क्षेत्र में पदार्पण के साथ ही इन्होंने कविता लिखना बंद कर दिया। इन्होंने अपने प्रेस से एक साप्ताहिक अखबार निकाला था जिसका नाम था 'रिएक्शन'। ये उसके संपादक थे। इस पत्र में प्रति माह मुझे एक लेख लिखना पड़ता था। अख़बार काफ़ी स्तरीय था और उसकी अच्छी साख थी पर कुछ अप्रत्याशित कारणों से उन्हें यह बन्द करना पड़ा। स्वास्थ्य अच्छा न होने की वजह से वे अब इस क्षेत्र में सक्रिय नहीं है।

*विनोद कुमार वर्मा*👇


अनूपपुर में बी डी ओ के पद पर कार्यरत थे। सेवानिवृत्त होने के बाद ये लेख और कविताएँ लिखने लगे थे। इन्होंने ' अभिनव राजीव बाल कल्याण समिति 'के नाम से एक रजिस्टर्ड संस्था गठित की थी जिसके वे स्वयं अध्यक्ष थे। मैं इस संस्था का सचिव था। कुछ समय अनूपपुर में रहने के बाद ये अपने गाँव चले गए थे और यहीं उनकी मृत्यु हो गई।

*सुधा शर्मा*👇


पेशे से एडवोकेट हैं इसके पहले उन्होंने विद्यालय में अध्यापन का कार्य भी किया है। शुरू से ही वे प्रगतिशील विचारों की थीं और यह उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में साफ़ झलकता है। इन्होंने 1975 से 1980 के बीच लिखना शुरु किया था जो अब तक जारी है। उन्होंने काफ़ी सार्थक और अच्छी कविताएँ लिखीं हैं। वे अभी प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर इकाई में उपाध्यक्ष के पद पर आसीन हैं

*मीना सिंह*👇


मीना सिंह जी का मायका कोतमा में है और यहाँ पर उन्होंने अध्यापन भी किया है और साहित्यिक गतिविधियों में हिस्सा भी लिया है। मीना सिंह ने कई कविताएँ लिखी हैं और गीत भी तथा ये बहुत अच्छे सुर में गाती भी हैं। इन्हें अनूपपुर की स्वर-कोकिला कहते हैं। अभी उनकी कई कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छपी हैं तथा उन्हें ऑन लाइन पाठ का अवसर भी प्राप्त हुआ है और वे सम्मानित भी हुई हैं। ये सुरवन्दिता लेखक मंच की एडमिन हैं। प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर में अध्यक्ष मण्डल की सदस्य हैं।

*डॉ. मनीष सोनी*👇


पेशे से होम्योपैथी के डॉक्टर हैं और इस क्षेत्र में काफ़ी लोकप्रिय हैं। आप बुंदेलखंडी और खड़ी हिंदी दोनों बोलियों में लिखते हैं। कभी-कभार कवि गोष्ठियों में नज़र आते हैं। अभी साहित्य के बनिस्बत उन्हें अपने व्यवसाय में अधिक रुचि है।

*किरण सरावगी*👇


कविता में अभिरुचि है। इनकी कविताएँ रेडियो से कई बार प्रसारित हो चुकी हैं। पहले ये लगभग सभी गोष्ठियों में उपस्थित रहती थीं और प्रगतिशील लेखक संघ अनूपपुर में कोषाध्यक्ष पद पर थीं पर कुछ वर्षों से अपने व्यक्तिगत कारणों से वे साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले पा रही हैं।

*अर्पणा दुबे*👇


अर्पणा दुबे सीतापुर की निवासी हैं। ये कविताएँ लिखती हैं और गाती भी हैं तथा यू ट्यूब में इन्होंने अपना अकाउण्ट खोल रखा है। अभी इनका एक कविता संग्रह 'प्यार की राहें' अमाजोन से प्रकाशित हुआ है।

*श्रुति शिवहरे*👇


अनूपपुर की उभरती हुई प्रतिभा है। अभी तक की रचनाओं से यह लगता है कि यदि इन्होंने गंभीरता पूर्वक साहित्य साधना की तो निश्चित रूप से ये अच्छा मुकाम हासिल करेंगी।

*संतोष सोनी*👇


आप एडवोकेट हैं, सरल, मृदुभाषी और व्यवहार कुशल हैं आप नई कविता में तो रुचि लेते ही हैं पर छन्द बद्ध कविता भी लिखते हैं। आप प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के अध्यक्ष मण्डल के सदस्य हैं। आपकी कविताओं में प्रगतिशीलता साफ़ झलकती है ।

*अभिलाषा अग्रवाल*👇


अभिलाषा अग्रवाल अनूपपुर की बेटी हैं जो सम्प्रति दिल्ली में रहती हैं। साहित्य में इनकी कितनी रुचि है, यह इस बात से पता चलता है कि, अनूपपुर में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय आयोजन में शामिल होने के लिए ये विशेष तौर पर दिल्ली से अनूपपुर आई । इनका एक काव्य संग्रह " ख़्वाब शोर मचाते हैं" काव्या पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है।

*ललित दुबे*👇


ललित दुबे, बाल कल्याण समिति अनूपपुर में कार्यरत हैं और प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के सदस्य हैं। आप लेखक, कवि और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आपने कई टी वी सिरियल की पटकथा भी लिखी है और अभिनय भी किया है। आपकी एक पुस्तिका "अमरकंटक की वन औषधि प्रकाशित हुई है। तथा एक पुस्तिका " अनदेखा अनूपपुर " हिंदी व अंग्रेज़ी में प्रकाशित होने वाली है।

*रामचंद्र नायडू*👇


रामचंद्र नायडू “शेपर्स एकेडमी “ नामक शैक्षणिक संस्था के संस्थापक थे । ये प्रारंभ से ही साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे । सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों में इनकी गिनती की जाती है । इन्होंने “खिड़की” नामक एक बाल पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया था तथा वे इसके संपादक भी थे । यह स्तरीय पत्रिका थी और बच्चों में काफ़ी लोकप्रिय थी । काफ़ी समय तक प्रकाशित होने और प्रशंसा प्राप्त करने के बावजूद किन्ही अप्रत्याशित कारणों की वजह से इसे बंद करना पड़ा । रामचंद्र नायडू “नई दुनिया “ के अनूपपुर ज़िले के ब्यूरो चीफ़ भी थे । प्रगतिशील लेखक संघ इकाई अनूपपुर के उपाध्यक्ष भी थे । साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में हमेशा शिरकत करते थे। कोरोना काल की यह अपूरणीय क्षति है कि हमने अपने सच्चे और प्रगतिशील मित्र को खो दिया है।

*के ॰ पी ॰ चतुर्वेदी*👇


के॰ पी॰ चतुर्वेदी,अनूपपुर कन्या शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य पद पर आसीन थे । इनकी कविता में गहरी रुचि थी और ये कविता करते भी थे । जब-तब कन्या शाला में कवि गोष्ठी का आयोजन किया करते थे । ये सन् 2000 के आसपास यहाँ पदस्थ थे। इनके कार्यकाल में अनूपपुर का वातावरण काव्यमय हो गया था । स्थानांतरण की वजह से इन्हें अनूपपुर छोड़ना पड़ा । फिर इनका अनूपपुर से संपर्क टूट गया।

*तापस कुमार हाजरा*👇


तापस कुमार हाजरा, भारतीय स्टेट बैंक की अनूपपुर शाखा में पदस्थ थे और कविता लिखने और काव्य गोष्ठियों में शिरकत करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे । हमारे अच्छे साथियों में से एक हैं । प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय आयोजन में शामिल होने के लिए ये विशेष रूप से अनूपपुर पधारे थे ।रिटायरमेंट के पश्चात् संप्रति ये बिलासपुर में निवासरत हैं।

*रामाधार शुक्ल*👇


अनूपपुर में तहसीलदार के पद पर रह चुके हैं । इनकी कविता आसानी से समझ में आ जाने वाली होती थीं । इनकी कविताओं में छायावाद का असर कम था पर इनकी कविता सार्थक, असरदार और गाह्य हैं । कविता को प्रस्तुत करने का इनका अंदाज़ निराला और प्रभावशाली था । ये एक ऐसे कवि थे जो मंच और गोष्ठियों दोनों जगह वाहवाही लूट ले जाते थे । अनूपपुर में हमें इनका काफी सानिध्य मिला । ये स्वभाव से सरल और हंसमुख थे । बाद में इनका स्थानांतरण अन्य स्थान पर हो गया । अब वे इस दुनिया में नहीं हैं।

*शंकर प्रसाद शर्मा*👇


शंकर प्रसाद शर्मा अनूपपुर के राजनैतिक आकाश में देदीप्यमान वह सितारा है जो अभी भी टिमटिमा रहा है । अभी उनकी उम्र 90 के आसपास है । अध्ययन में उनकी रुचि शुरू से थी और इस उम्र भी उन्हें अध्ययनरत देखता हूँ । उनके लेख अक्सर समाचार पत्रों में छपते रहे हैं । उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं जो मेरी जानकारी में निम्नानुसार हैं-

आदिवासी उद्भव और विकास 

मंथन 

बंधन

फैलता शहर गुम होती ज़िंदगी 

एक अजनबी की अनकही कहानी

*रामलाल भारती*👇


अनूपपुर में अध्यापक का कार्य करते थे और 1980 के आसपास आयोजित लगभग सभी गोष्ठियों में हिस्सा लेते थे । उनकी एक कविता की पंक्ति याद आ रही है, उनकी उस कविता में कवि एक लड़की से प्यार करता होता है और वह लड़की मंजी होती है । नायिका से बिछड़ने के बाद जब वह एक सुंदर से गुलाब को देखता है और गुलाब पर फ़िदा हो जाता है तब उनकी यह पंक्ति आती है- “ लगता है गुलाब मंजा हो गया है “ । स्थानांतरण के पश्चात् वे अनूपपुर छोड़कर चले गए फिर उनका पता नहीं चला।

*गोविंद प्रसाद श्रीवास्तव ‘विरागी’*👇


वैसे तो श्री ‘विरागी’ जी अनूपपुर के निवासी नहीं हैं बल्कि ये अनूपपुर से लगे हुए ग्राम ‘सोन मौहरी’के निवासी हैं परंतु कई वर्षों पूर्व अनूपपुर में आयोजित अधिकांश साहित्यिक कार्यक्रमों में ये शिरकत करते रहे हैं लिहाज़ा यहाँ इनका ज़िक्र किया जाना लाज़िमी है ।आप की शिक्षा दीक्षा शहडोल, सागर और रीवा में हुई ।आप सेवा निवृत्त अध्यापक हैं । आपकी अभिरुचि शुरू से ही साहित्य में रही है । आप कवि, समीक्षक, निबंधकार और संपादक रहे हैं तथा आपकी वार्ताएँ आकाशवाणी से प्रसारित हो चुकी हैं ।आपकी रचनाएँ-अग्निदग्धा, गीत शिखा काव्य प्रकाशित हो चुके हैं व नव भारती प्रकाश्य हैं साथ ही दो निबंध संग्रह विजय बिंदु और तुलसी दल प्रकाश्य हैं ।इन्होंने मानस-धर्म- चक्र का संपादन भी किया है। सन् 1945 में हरिवंश राय बच्चन इनके रिश्तेदार रामनरेश श्रीवास्तवजी के यहाँ मौहरी पधारे थे। 

*अन्य कवि*👇 

अन्य कवियों में वन्दना खरे जो चचाई से हैं तथा पाठक मंच की संयोजक हैं तथा विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेती रहती हैं। इसके अलावा सरदार अवतार सिंह, सरयू प्रसाद सोनी, सरदार हरदेव सिंह आदि सम्मिलित हैं। इनमें से सरयू प्रसाद सोनी अब इस दुनिया में नहीं हैं। सरदार अवतार सिंह कहाँ हैं कुछ पता नहीं। तथा सरदार हरदेव सिंह अभी अनूपपुर में हैं पर इन्होंने बहुत थोड़ा लिखकर बहुत पहले ही विराम ले लिया है।

इस तरह इस लेख में जिन 39 साहित्यकारों का ज़िक्र हुआ है उन सभी को नमन। अनूपपुर के साहित्यिक सफ़र में मुझे जितने साहित्यकारों की जानकारी थी उसके आधार पर मैंने यहां ज़िक्र किया है। यदि इसके बावजूद भी कुछ लोग छूट गए हों तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।

 -गिरीश पटेल

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