संतोष सोनी की 2 रचना का हुआ वाचन, नवांकुर पुस्तक में होगा प्रकाशन
*मंत्रणा*
किसकी टांग खींचना है कहाँ भगदड़ करना है कौन सामने, कौन पीछे होगा इस बात की हो रही मंत्रणा
किस पर किस बात का आरोप लगाना व छिपाना है क्या खोकर क्या पाना है कौन कामयाब होगा इस बात की हो रही मंत्रणा
जो काबिल है उसे करना है पंगु जो सख्त है, उसे बनाना है मूक जो सक्षम है, उससे कराना है चूक कब कहाँ कौन साधक बनेगा हो रही है इस बात पर मंत्रणा
मंत्रणा, किस पर लादना है भूत-प्रेत किसे करना है जिन्द के बस में कहाँ करना है बातें मंदिर-मस्जिद की कहाँ धर्म पर संकट बताना है हो रही है इन बातों पर मंत्रणा
कहाँ बाटना है शराब-कबाब कहाँ देना है गलत जबाब, कहाँ बताना है शूल को मखमल कहाँ बाटना है साड़ी साल कंबल हो रही इन बातों पर मंत्रणा
न हो बात जन सरोकार की उनके दारोमदार की नहीं है वो जिम्मेदार निज कमियों के छिपाने अपनी निज नाकामयाबियों को "आनंद" मिलजुल कर रहे मंत्रणा
*स्वरचित संतोष सोनी "आनंद" एडवोकेट*
*कविता*
वो आज आये हैं हाथ मिलाने को, जिंदगी में नया गीत गुनगुनाने को।
कल तक कहते थे बेसुरा है राग मेरा, आज अर्ज करते हैं मधुर गीत गाने को।
आड़े वक्त पर मेरे नमक लिए फिरते थे जो, इस वक्त वो आए हैं मरहम मुझे लगाने को।
सुना है मुझे वो अपना मान बैठे हैं, कल तलक मशगूल थे हमें सताने को।
वो गुनाहगर नहीं है अब भी कहते हैं, दोष अब लगा रहे नादान जमाने को।
हर जगह अलग पकाते थे खिचड़ी अपनी, "आनंद" अपना कहने लगे, दाल अपनी गलाने को।
*संतोष सोनी "आनंद" एडवोकेट-अनूपपुर*