केसरवानी वैश्य सभा कार्यकारिणी की बैठक सम्पन्न, सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय

केसरवानी वैश्य सभा कार्यकारिणी की बैठक सम्पन्न, सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय


शहड़ोल

सिटी स्टार होटल शहडोल में, केसरवानी वैश्य सभा मध्यप्रदेश के चतुर्थ संयुक्त कार्यकारिणी की बैठक में, उपस्थित सभी सभासदों व मंचासीन महानुभावों के व्यक्त विचारों व सुझावों के आधार पर, बैठक में, सर्वसम्मति से निम्न निर्णय लिया गया।

1- देश में जातियों की आर्थिक सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक एवं अन्य स्थितियों की जांच के लिए 1953 में गठित काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट में, कालांतर में गठित बी पी मंडल आयोग की रिपोर्ट में, इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के प्रकरण में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय के आधार पर,भारत सरकार के राजपत्र में, केसरवानी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में रखा गया है। इसी आधार पर बिहार एवं झारखंड राज्य में, केसरवानी जाति को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किया गया, और उन्हें, अन्य पिछड़ा वर्ग का सभी लाभ दिया जा रहा है। इन्हीं आधारों पर,मध्यप्रदेश में भी पिछले 30 वर्षों से लगातार केसरवानी जाति को "अन्य पिछड़ा वर्ग" की श्रेणी में सम्मिलित किए जाने की पूरजोर मांग की जा रही है। वर्तमान में यह अधिकार भारत सरकार द्वारा प्रदेश सरकार को दे दिया गया है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा, केसरवानी समाज की वर्षों से लम्बित इस वैधानिक मांग के प्रति, एवं समाज को किसी भी उचित क्षेत्र से,विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने की मांग के प्रति,जिस तरह केसरवानी समाज को, समाज की सभाओं को, प्रमुख राजनैतिक दलों द्वारा,बार-बार आश्वासन देते हुए, धोखे में रखा गया ! और अंततः समाज की वैधानिक मांगों की अनदेखी व उपेक्षा की गई ! एवं की जा रही है, उसकी समाज द्वारा, "निन्दा" की जाती है।

2- वर्तमान विधानसभा चुनाव के दौरान, केसरवानी समाज के सभी स्थानीय निवासियों द्वारा, अपने-अपने क्षेत्र के, सभी दलों व निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष, सामूहिक रूप से, केसरवानी समाज की उपरोक्त उपेक्षा व अनदेखी का उल्लेख करते हुए, समाज के भारी क्षोभ व आक्रोश की जानकारी से, उन्हें अवगत कराया जाए।

3- मध्यप्रदेश केसरवानी समाज की, वैधानिक मांगों के प्रति,मध्यप्रदेश शासन द्वारा जिस तरह अनदेखी व उपेक्षा की गई है और समाज को धोखे में रखा गया, उसे ध्यान में रखते हुए, केसरवानी समाज को, विधानसभा चुनाव में, "स्वविवेक" से मतदान का निर्णय लेने के लिए, स्वतंत्र किया गया।

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