प्रेम व खुशहाली का पर्व कजलियां उत्साह एवं श्रद्धा पूर्वक मनाया गया
अनूपपुर
कजलियां प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा पर्व है। इसका प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। राखी पर्व के दूसरे दिन कजलियां पर्व मनाया जाता है। इसे कई स्थानों पर भुजलिया या भुजरियां नाम से भी जाना जाता है। बांस की छोटी-छोटी टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं के दाने बोएं जाते हैं। भुजरिया नई फसल का प्रतीक है। कजलियां मुख्य रूप से बुंदेलखंड में राखी के दूसरे दिन की जाने वाली एक परंपरा है, जिसमें नागपंचमी के दूसरे दिन खेतों से लाई गई मिट्टी को बर्तनों में भरकर उसमें गेहूं बोएं जाते हैं और उन गेंहू के बीजों में रक्षाबंधन के दिन तक गोबर की खाद और पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। यह पर्व अच्छी बारिश, अच्छी फसल और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियां पर्व मनाया जाता हैं अनूपपुर जिला मुख्यालय समेत शहरी व ग्रामीण क्षेत्रो में कजलियां पर्व बड़े ही उत्साह एवं श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। अनूपपुर जिला मुख्यालय में सोन, तिपान व चंदास नदी में कजलियां विसर्जन के लिए लोगो की भीड़ देखी गई। वही कोतमा नगर के पंचायती मंदिर एवं पुरानी बस्ती से शाम कजलईया का जुलूस निकाला गाया, जो भजन कीर्तन करते हुए बस स्टैंड पुरनिहा तालाब व केरहा तालाब में कजलियां के विसर्जन के साथ समाप्त हुआ शाम से छोटे- छोटे बच्चे एवं बडे बुजुर्ग कजलिया लेकर एक दूसरे के घरों में पहुंचकर गले मिले। कजलईया पर्व हिन्दू त्यौहारो में मुख्य पर्व माना जाता है जिसमें लोग एक दूसरे से गले मिलकर अपनी खुशियां बांटते है। यह क्रम शाम से शुरू होगा जो देर रात तक निरंतर चलता रहा।