संविधान, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के संकल्प के साथ प्रलेस का राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

संविधान, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के संकल्प के साथ प्रलेस का राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न, टी लक्ष्मी नारायण राष्ट्रीय अध्यक्ष व सुखदेव सिंह सिरसा महासचिव बने

*अधिवेशन के समापन अवसर पर हरिशंकर परसाई के परिवार जनों को सम्मानित किया गया*


*टी लक्ष्मी नारायण राष्ट्रीय अध्यक्ष बने  और सुखदेव सिंह सिरसा दूसरी बार राष्ट्रीय महासचिव के रूप में चुने गए*

*प्रगतिशील लेखक संघ के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में  पांच सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, कई प्रस्ताव पारित किये गए*

जबलपुर

फ़ासीवादी, साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ संयुक्त मोर्चा बनाने के आह्वान के साथ अखिल भरतीय लेखक संघ के 18वें राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ। हरिशंकर परसाई के शहर जबलपुर में  प्रगतिशील लेखक संघ का यह दूसरा राष्ट्रीय अधिवेशन था। 1980में हरिशंकर परसाई की उपस्थिति में राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ था और अब परसाई की जन्मशती के अवसर पर उनकी  यादों और उनके धारदार विचारों क़े साथ राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ। 

इस तीन दिवसीय लेखक, बुद्धिजीवी समागम में देश के 19 राज्यों से पहुंचे पांच सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।सम्मेलन में मणिपुर और नूह की हिंसा के साथ ही विभाजन- कारी सोच और साम्प्रदायिकता को लेकर गंभीर चिंता देखने को मिली।

अधिवेशन में उद्घाटन सत्र से लेकर लगभग हर सत्र में वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए सभी जन संगठनों व देश भर के लेखकों से एकजुट होकर आम आदमी, किसान, मजदूर, महिला, अल्पसंख्यकों, दलित,आदिवासियों के हक और अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने की बात कही। मणिपुर से पहुंचे साहित्यकार इकेन खूराइजम ने मणिपुर हिंसा पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि दो महीने तक केंद्र सरकार ने हिंसा को लेकर कुछ नहीं बोला।

लेखकीय दायित्व को याद करते हुए उन्होने कहा कि हम इतने दुख और दर्द में रहे कि न कुछ लिख पाये, न कोई कविता  न कहानी। यह राजनीतिक और आर्थिक लड़ाई है, जिसे साम्प्रदायिक बना दिया गया। मैतेई और कुकी सदियों से एक साथ रहते आ रहे थे आज उन्हें एक दूसरे का जानी दुश्मन बना दिया गया। उन्होने कहा कि हम शांति और न्याय की आवाज बुलंद करने के लिए यहां अपने साथियों के साथ पहुंचे हैं। बेहतर दुनिया बनाने में लेखकों की भूमिका विषय पर आयोजित परिसंवाद में आनंद मेन्से कर्नाटक, आरती भोपाल, शिवानी पश्चिम बंगाल, समाधान इंग्ले महाराष्ट्र द्वारा विचार व्यक्त किया गया। सत्र का संचालन शैलेंद्र शैली ने किया।

अधिवेशन के आखिरी सत्र में अकादमिक जगत और विश्वविद्द्यालयों की स्वायत्तता बरकरार रखने और देश में किसी भी तरह के अवैज्ञानिक प्रचार को सरकार द्वारा प्रतिबंधित करने की मांग, नूह जैसी हिंसा दुबारा ना घटित हो, हिमांचल प्रदेश में राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग, 545 दिनों से चल रहे रूस-युक्रेन युद्ध के खिलाफ़, किसान आन्दोलन की सफ़लता को याद करते हुए उनकी मांगों का समर्थन, न्यूज़ क्लिक सहित अन्य मीडिया संस्थानों पर हो रहे हमलों के खिलाफ़ सहित सभी वर्गों को समान नि:शुल्क शिक्षा की मांग के साथ विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किये गये।

सांगठनिक सत्र में कार्यकारणी का गठन किया गया, जिसमें आन्ध्रप्रदेश के तेलगू भाषा के बड़े साहित्यकार पी लक्ष्मी नारायणा को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार सुखदेव सिंह सिरसा को राष्ट्रीय महासचिव के रूप में दूसरी बार चुना गया। वरिष्ठ लेखकों में से नरेश सक्सेना, विभूति नारायण राय, राजेन्द्र राजन, अमिताभ चक्रवर्ती,  रतन सिंह ढिल्लो आदि ने सम्बोधित किया। हरिशंकर परसाई के जन्मदिन पर हुए समापन के अवसर पर केक काटने के साथ ही परसाई के  परिवारजनों को सम्मानित कर उनका जन्मदिन मनाया गया। मध्यप्रदेश लेखक संघ के सचिव तरुण गुहा नियोगी ने अधिवेशन के सफ़ल आयोजन को लेकर  सभी प्रतिनिधियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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