छात्रावास में रोटी बनाकर, झाडू लगाकर व संडास की सफाई करते बच्चे बना रहे अपना भविष्य

छात्रावास में रोटी बनाकर, झाडू लगाकर व संडास की सफाई करते बच्चे बना रहे अपना भविष्य


मामला आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास कोयलारी का 

देश के भविष्य कहे जाने वाले बच्चे जब छात्रावास में रहकर पढ़ाई करते हैं तब खाने पीने, रहने सोने जैसी व्यवस्था सरकार करने के वादे करती है किन्तु जिन्हे इसकी जिम्मेवारी दी जाती है वे बच्चों के भविष्य संवारने की जगह गर्त की तरह ढकेलते दिखाई पड़ते हैं तब समस्त वादों की पोल स्वत: खुल जाती है, ऐसी ही मामला आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास कोयलारी में देखने को मिला है।

राजेन्द्रग्राम। जिले के पुष्पराजगढ़ तहसील के कोयलारी ग्राम में आदिवासी बच्चों की शिक्षा स्तर संवारने के उद्देश्य से विद्यालय व छात्रावास की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई है, इसकी जिम्मेवारी जनजाति कार्य एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग को दी गई है साथ ही हर छात्रावास में अधीक्षक, रसोईया व सहायक के साथ चपरासी की व्यवस्था सुनिश्चित है, बावजूद इसके अधीक्षक व विभागीय अधिकारियों की कमीशन खोरी व मिली भगत से बच्चों का भविष्य संवरने की जगह गर्त में धकेला जा रहा है, जिन छात्रावासों में सर्वसुविधा होने का दम सरकारें भरती है वहां खाना बनाने से लेकर संडास तक की सफाई बच्चों से कराई जाती है इतना ही नही इन्हे गैस सिलेंडर की जगह लकड़ी के धुंये वाले चूल्हे पर रोटी बनाने के लिये मजबूर किया जाता है।

*ये सब करेगें तो कब पढ़ेगें*

आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास कोयलारी में उपस्थित बच्चे अपने लिये स्वयं खाना बनाते हैं, झाडू़ पोछा करते हैं, पानी भरने के साथ संडास तक की सफाई करते हैं, ऐसे में इन बच्चों को पढऩे का समय नही मिलता जिससे समग्र शिक्षा का विकास की परिकल्पना अधूरी दिखाई पड़ती है, ऐसा नही कि सरकारो ने इस ओर ध्यान नही दिया बल्कि बकायदा हर कार्य के लिये कर्मचारी नियुक्त किये गये हैं किन्तु छात्रावासों से बच्चों के हक पर डाका डाल इन अधीक्षकों से वसूली कराई जाती है और वह पैसा ऊपर से नीचे तक बांटा जाता है तभी तो बच्चों का ये हाल है, जब बच्चे ये सब कार्य करेंगे तो कब और कैसे पढ़ेंगे।

*रजिस्टर 30, अधीक्षक 26, बच्चे 22 बता रहे संख्या*

आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास कोयलारी में 30 बच्चे रहना सरकारी रिकार्ड में दर्ज है तो वहीं अधीक्षक जोधन सिंह 26 बच्चे होना बता रहे हैं जबकि उपस्थित बच्चों से बात की गई तो  उनके द्वारा महज 22 बच्चे होना ही बताया गया, साथ ही बच्चों ने बताया कि कौन बच्चा कब और क्या कार्य करेगा कि नियम बनाया गया है जिससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपस्थिति पंजीयन में गड़बड़ झाला किया गया है जिसके मास्टरमाइंड अधीक्षक के होने की ओर इशारे मिल रहे हैं, यदि यह सही है तब अन्य छात्रावासों में ऐसी स्थिति नही होगी कह पाना मुस्किल ही दिखाई पड़ता है।

*चूल्हे फूंकने से संवरेगा भविष्य ?*

भले ही सरकारें लाख दावे कर ले कि छात्रावासों में गैस सिलेंडर से ही भोजन पकाये जाते है किन्तु आदिवासी जूनियर बालक छात्रावास कोयलारी जैसी घटनायें देखने को मिल ही जाती हैं यहां सिलेंडर की जगह लकड़ी के चूल्हे पर भोजन पकाया जाता है वह भी रसोइये के द्वारा नही बल्कि उक्त छात्रावास के बच्चों द्वारा, साथ ही साफ सफाई का जिम्मा भी इन्ही छात्रों के नन्हे कंधों पर डाल दिया गया है आखिर चूल्हे फंूकने से कैसे भविष्य संवरेगा जैसे सवाल मष्तिस्क पटल पर स्वयं ही प्रक ट होते हैं।

*व्यवस्थापक अव्यवस्था के कारण*

छात्रावास से जुड़े जानकारों ने आरोप लगाते हुये बताया कि यहां नियुक्त छात्रावास अधीक्षक जोधन सिंह आसपास के छात्रावास अधीक्षकों का प्रतिनिधित्व करते हुये कमीशन की राशि एकत्रित कर आला अधिकारियों तक पहुंचाने का कार्य करते हैं, शायद यही वजह है जिन्हे ऐसे छात्रावासों की व्यवस्था सुव्यवस्थित रखने की जिम्मेवारी दी गई है अपनी मौन सहमति दिये बैठे हैं तभी तो ऐसे हालातों पर आदिवासी बच्चे रहने को मजबूर है तभी तो लोग कह रहे हैं व्यवस्थापक ही अव्यवस्था के कारण बने हुये हैं।

*इनका कहना है*

मेन्यू के आधार पर खाना नही बनता यह सही है, किन्तु खाना हम ही पकाते हैं बच्चे तो आज ही खाना पका रहे है।

*अजीत रसोईया*

विकासखण्ड अधिकारी को भेजकर इसकी जांच करायेगें जांच में जो भी दोषी पाया जाता है उस पर न्याय संगत कार्यवाही की जायेगी।

*पीएन चतुर्वेदी एसी ट्रायवल*

छात्रावास भवन की बदहाल स्थिति से मैने अधिकारियों व नेताओं को अवगत कराया है किन्तु कोई ध्यान नही देता।

*जोधन सिंह अधीक्षक*

ऐसी स्थिति सभी छात्रावासों की है विभागीय अधिकारी छात्रावासों से कमीशन वसूली तक सीमित है, जिससे बच्चों की पढ़ाई सही ढंग से नही हो पा रही है।

*फुन्देलाल सिंह विधायक*

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