रेलवे की हठधर्मिता या तानाशाही, कहा है जनप्रतिनिधि, ट्रेन क्यू हो गयी बेपटरी ?

रेलवे की हठधर्मिता या तानाशाही, कहा है जनप्रतिनिधि, ट्रेन क्यू हो गयी बेपटरी ? जनता की समस्या कही चुनाव में न पड़ जाए भारी (पब्लिक इश्यू) विकास पाण्डेय की कलम से



अनूपपुर/बिजुरी

अनूपपुर अंबिकापुर, अनूपपुर चिरमिरी रेलखंड जनता का त्राहि माम  और रेल्वे हठधर्मिता  ? या तानाशाही क्या कहा जाए  ? कौन सा नाम दिया जाए कुछ भी कह लीजिए कैसी भी व्याख्या कर लीजिए  लेकिन  इस बात से  इंकार नही किया जा सकता की वाकई वक्त कठिन है  इस बात का  उल्लेख  इसलिए क्योंकि   आजादी के बाद से  अब तक  वर्ष दर वर्ष  इतिहास के पन्नो को पलटते जाइए   लेकिन  ऐसा कभी हुआ नही  इतिहास खुद  इस बात की गवाही देता है जो तस्वीर बीते लगभग  ढाई साल से  उक्त  रेलखंडो के बीच  ट्रेनो के आवागमन को लेकर देखने को मिल रही है यकीनन  त्रासदी है इस त्रासदी के बीच जनता के बीच हो रही चर्चाओ को अगर सुना जाए  तो लोग  आपस मे  चर्चा तो इसी बात की करते है कि आखिर ट्रेने कब चलेगी?  चलेगी भी  या नही चलेगी  ? ट्रेनो को आखिर बेपटरी क्यो किया गया है  इस पर रेल्वे के अधिकारी तो यही कहते है रेल्वे बोर्ड के  आदेश पर ही  ट्रेनो का परिचालन होता है जैसे ही बोर्ड का आदेश  आएगा ट्रेनो को पटरी पर दौड़ाया जाएगा लेकिन वो आदेश कब  आएगा ये किसी को नही मालूम , अब तक क्यो नही  आया ये भी किसी को नही मालूम , रेल्वे बोर्ड या फिर रेल मंत्रालय के  उक्त रेलखंडो के बीच ट्रेनो को चलाने के ताने-बाने के बीच   एक सवाल हमारे जहन मे उठता है। 

आपके जहन मे उक्त सवाल  उठ रहा होगा  क्या रेल मंत्रालय  या फिर रेल्वे बोर्ड  को जनता की परेशानीयो से कोई लेना-देना नही है?  ये एक बड़ा सवाल हो चला  है  अब  उक्त रेलखंडो के बीच खड़े हो जाइए और सरपट दौड़ती मालगाड़ीयो को देखते जाइए तस्वीर बताती है कि रेल्वे स्टेशनो पर दिन भर मालगाड़ी  आती  और जाती है लेकिन कोचिंग ट्रेनो का अकाल है  और जनता  बदहाल है उल्लेखनीय है कि ट्रेने बंद होने की वजह से आम नागरिक समाज परेशान है  व्यापार पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है  लोगो मे सत्ता  और रेल प्रशासन के प्रति भारी आक्रोश है जिसकी स्पष्ट तस्वीर ट्रेनो को पटरी पर लाने के मद्देनजर बिजुरी नगर मे  दो बार  किए गए  आन्दोलनो मे देखने को मिली थी याद कीजिए  वाकई जनता का अभूतपूर्व समर्थन था  इस बात से  इंकार नही किया जा सकता चिलचिलाती धूप  और जनता जनसमर्थन फिर मतलब साफ है कि ट्रेनो के बे पटरी होने के कारण  आम जनता बहुत परेशान है।  

बिजुरी नगर रेल्वे संघर्ष समिति की कोशिश तो यही थी आन्दोलन के आसरे जनता की  आवाज को सत्ता के गलियारे तक  पहुंचाई जाए लेकिन  हफ्ते दर हफ्ते चार हफ्ते  बीत चुके है  ट्रेने कब चलेगी इसका जवाब  अब तक किसी के पास नही,  इसके पहले ट्रेनो के मांग के मद्देनजर शहडोल संसदीय क्षेत्र की सासंद ने  अनूपपुर  अंबिकापुर  , अनूपपुर चिरमिरी रेल खंडो के बीच ट्रेनो को पटरी वापस लाने के लिए  दिल्ली के सत्ता के गलियारे लोकसभा मे रेल मंत्री जी से  मांग कर चुकी है ज्ञापन के आसरे भी  माननीय सासंद  द्वारा माननीय रेल मंत्री जी का ध्यान  आकृष्ट कराया गया लेकिन  आस्वाशन से इतर कुछ मिला नही  प्रसंग वस् सवाल तीन है आखिर ये कौन सी स्थिति है कि  क्षेत्रीय सासंद की आवाज भी सत्ता को सुनाई नही पड़ रही है?

जबकि सासंद भी सत्ता दल की ही है? आखिर सत्ता द्वारा  अनूपपुर  अंबिकापुर  अनूपपुर चिरमिरी रेल खंडो के जनता के साथ सौतेला व्यवहार क्यो किया जा रहा है   ? क्या जनता  और जनप्रतिनिधि की आवाज को अनसुना करना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत माना  और कहा जा सकता है  ? इसके के ठीक पैरलर उक्त रेलखंडो के बीच ट्रेनो के बेपटरी होने के बाद के समाचारपत्र पत्रो के पन्नो को पलटकर देखिए समाचार पत्रो मे भी ट्रेनो को पटरी पर  दोबारा लाने की बड़ी बड़ी खबरो का प्रकाशन किया गया पोर्टल पर भी सिलसिलेवार खबरे चलाकर  सत्ता का ध्यान  इस तरफ दिलाने की हर संभव कोशिश की गई लेकिन परिणाम सिफर रहा  एक बड़ा सवाल  हमारे जहन मे बार बार  उठता है क्या जनता के  आवाज के सारे रास्ते बंद कर दिए गए है ? 

कहते है कि हिन्दुस्तान की ताकत तो राजनीति सत्ता मे बसती है और सत्ता जनता के जनादेश के  आसरे ही बनती है जनता जनादेश देकर  उम्मीद तो यही करती कि सत्ता द्वारा  ऐसी नीतिया बनाई जाएंगी जिनका जनसरोकार से सीधा नाता होगा जनहित की तस्वीर  नितियो मे स्पष्ट  देखने को मिलेगी लेकिन ये जनहित की  कौन सी नीति है कि बीते लगभग  ढाई वर्षो से अनूपपुर  अंबिकापुर  अनूपपुर चिरमिरी रेलखंडो के बीच  अधिकांश ट्रेने बे पटरी है जनता परेशान है ऐसे मे क्या ये कहना  अतिशयोक्ति होगा  कि क्या जनता के  आवाज के सारे रास्ते बंद कर दिए गए है ?क्योंकि  अनूपपुर  अंबिकापुर  अनूपपुर चिरमिरी रेलखंडो की जनता आवागमन के मद्देनजर  मुश्किल हालात मे है!

अभी जल्द ही नगरपालिका, नगर परिषद, जनपद ग्राम पंचायत और जिला पंचायत के चुनाव होने है अगर यही हाल रहा और जनता की समस्या पर जनप्रतिनिधियों द्वारा ध्यान नही दिया गया तो कही पार्टी को भारी न पड़ जाए अब क्या होना है जनता खुद तय कर देगी उसके बाद फिर जनप्रतिनिधियों और पार्टी को सोचने का भी टाइम नही मिलेगा इसलिए जल्द सुधार आवश्यक है।

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