काले हीरे की नगरी, अधिकारी जनप्रतिनिधि मौन एक बूंद शुद्ध पानी के लिए तरस रही जनता

काले हीरे की नगरी, अधिकारी जनप्रतिनिधि मौन एक बूंद शुद्ध पानी के लिए तरस रही जनता (बिजुरी से विकास पाण्डेय  की कलम से ) ( पब्लिक  इश्यू )


अनूपपुर/बिजुरी

"रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥" आज ऐसा प्रतीत होता है की शायद रहीम दास जी ने यह दोहा बिजुरी नगर पालिका के लिए ही लिखा था। इस दोहे के आसरे पानी के महत्व को समझा जा सकता है। इसी तरह से कहा तो यह भी गया है की जल है तो कल है, जाहिर है  अलग- अलग जानकारों ने पानी के महत्व को अपने- अपने तरीके  से परिभाषित किया है। अगर हम वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की बातों पर गौर करें तो उनके द्वारा शरीर के अंदर पानी का महत्व बताया गया है। आज यह बताने की आवश्यकता नहीं है की पानी का हमारे शरीर में क्या महत्त्व है और कितना महत्व है  जाहिर है पानी शरीर के अंदर आपके डाइजेशन सिस्टम को ठीक करता है अर्थात जल ही हमारे जीवन की रेखा को रेखांकित करता है। लेकिन पानी का मुख्य मापदंड क्या है ? या क्या होना चाहिए ?, यह अहम  सवाल है। आखिर कैसा पानी मनुष्य को पीना चाहिए,  तो आप सभी एक सुर से यही कहेंगे कि अरे! जनाब पानी तो साफ और शुद्ध ही पीना चाहिए। जी, पानी का मुख्य मापदंड उसकी शुद्धता ही है। चिकित्सकों के अनुसार अशुद्ध पानी आपके जीवन को खतरे डाल सकता है। आप गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकतें हैं। गौरतलब है कि पेट संबंधित कयी बीमारियो की जड़ दूषित पानी ही है! 


एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 60 प्रतिशत बीमारियों का कारण ही अशुद्ध जल ही  है। जल जनित रोग भारत के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है और यह समस्या अब महामारी का रूप ले रही है। हमारा बिजुरी नगर इससे अछूता नहीं है, दुर्भाग्यवश बिजुरी एक ऐसा साधन संपन्न मगर अभागा नगर है जिसके नागरिकों को आज़ादी  के 7 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी शुद्ध पेयजल मयस्सर नहीं हो रहा है।  और लोग पेट संबंधित बीमारियो के शिकार भी हो रहे है 


बिजुरी में नगर पालिका के टैंकर हों या फिर न.प द्वारा बिछाई गई पाईप लाइन हो, इनसे आपूर्ति क्षेत्र में संचालित कोयला खदानों के प्रदूषित जल की ही होती है। जाहिर है 15 वार्डों वाली न.प बिजुरी लगभग 30 हजार की आबादी को अपने जद मे समेटे हुए है। इतिहास के पन्नों को अगर पलटिएगा और जानकारों की माना जाए तो बीते 30 वर्ष पहले बिजुरी को पंचायत से नगर पंचायत का दर्जा मिला था और बाद मे नगर पालिका का दर्जा मिला। यानी बीते 30 वर्ष से अब तक न.प बिजुरी क्षेत्र का नागरिक स्थानीय निकाय चुनाव में जनादेश देते आ रहे  है। वार्ड पार्षदों और न.प अध्यक्ष को चुनते आ रहे  है और  सियासी ताने- बाने के बीच कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस; सत्ता बदलती रही और जनप्रतिनिधि भी बदलते रहे और लोगों को घर-घर शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वादा नेता करते रहे। चुनावी चौसर पर शुद्ध पेयजलापूर्ति की मुनादी जमकर की जाती है   यह नेतागण चुनावी वक्त पर पेयजल को मुद्दा बनाकर वोटों की फसल काटते रहे, फिर भी अब तक बिजुरी मे पेयजल संकट का स्थायी समाधान हो नहीं पाया है। मतलब साफ है कि  लोगों को अब तक शुद्ध पेयजल मिलता नहीं है।


यह अलग बात है की आर्थिक रूप से संपन्न लोग  अपने घरों मे बोर करा कर शुद्ध पानी पी रहे है  लेकिन आम लोग तो आज भी कोयला खदान के दूषित पानी से गुजर बसर करने को मजबूर हैं। वो पानी जो कोयला खदानों से सीधे सप्लाई कर दिया जाता है जो की पूरी तरह से प्रदूषित और काला  होता है। चाहे वो बेहराबांध भूमिगत कोयला खदान का पानी हो या फिर बिजुरी कोयला खदान का, जाहिर है कि कोयला खदानों के अंदर कोयला उत्खनन करने के लिए तरह- तरह की मशीनों का संचालन किया जाता है और उक्त मशीनों से हाइड्रोलिक, मोबिल, ग्रीस और तरह-तरह के  रासायनिक केमिकल सीधे पानी मे घुल जाते हैं। कोयला खानों के भीतर पिसा हुआ कोयला पानी को पूरी तरह से प्रदूषित और "धीमे ज़हर" जैसा बना देता है। पानी को बिना समुचित फिल्टर किए सीधे नागरिकों तक टैकंरो और नलों के माध्यम से पहुंचा दिया जाता है। और लोग मजबूरन काले पानी से गुजर बसर करने को मजबूर होते है क्योंकि साफ शुद्ध पानी  मिल पाता नही अगर काले पानी की आपूर्ति देखना है तो गर्मी के मौसम मे  बिजुरी नगर का रूख अख्तियार करिए और नप के टैकंरो पर नजर डालिए तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी गौरतलब है की बिजुरी नप की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है, क्षेत्र मे संचालित 4 कोयला खदानों के आसरे बिजुरी नगर पालिका को मोटी रकम हर महीने मिलती है, मगर उक्त मोटी रकम शुद्ध पेयजल के स्थाई व्यवस्था के मद्देनजर खर्च की नहीं जाती।  


अगर खर्च की जाती है तो फिर सीधा सवाल है कि आखिर बिजुरी न.प के लोगों को शुद्ध पेयजल आखिर क्यो नही मिल पाता या मिल पाया है?  हालांकि पेयजल के लिए नाम पर बिजुरी न.प द्वारा पैसा पानी की तरह बहाया गया है। कभी पेयजल परिवहन के नाम पर, कभी पाइप लाइन विस्तार के नाम पर, कभी ओवर हेड टैंकों के निर्माण के नाम पर, तो कभी फिल्टर प्लांट  के निर्माण के नाम पर। याद कीजिए बिजुरी वासियों को केवई नदी से शुद्ध पानी घर-घर पहुँचाने का सपना चुनावी वक्त पर बीते 30 वर्षों से नेताओं द्वारा दिखाया जा रहा है लेकिन अब तक केवई नदी से पानी आ नही पाया है, तो क्या ये मान लिया जाए की केवई नदी का पानी न.प और प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में है ही नहीं? अगर है तो  अब तक बिजुरी नगर मे केवयी नदी आखिर  आ क्यो नही पाया?  या फिर केवयी नदी के पानी  के आसरे वोटो की फसल काटने का मुख्य पैमाना मात्र बनकर रह गया है ?    जिसके नाम बीते लगभग  30 वर्षो से बिजुरी नगर मे चुनाव जीते जा रहे है ? आखिर बिजुरी वाषियो को केवयी नदी का पानी  अब तक क्यो नही मिल पाया ये एक बड़ा सवाल हो चला है? ?  अगर बिजुरी नप के विकास की नब्ज को टटोला जाए तो     सिर्फ सड़कों, नालियों और बड़े बड़े भवनो का निर्माण ही नगर पालिका बिजुरी की प्राथमिकता दिखाई देता है  , क्या यह सच नही है   की चुनावी वक्त पर बिजुरी नगर की जनता की भावनाओं से  खिलवाड़ मात्र  किया जाता है? जाहिर है बिजुरी नगर में नेताओं की कमी नहीं है। भाजपा, कांग्रेस, बसपा के कई भारी भरकम नेता नगर में निवासरत हैं। 

वो नेता जिनकी सक्रियता सिर्फ चुनावी वक्त पर ही देखने को मिलती है और चुनावी वक्त पर उक्त सियासत दार चुनाव मे खुद के जीतने या  अपने सियासी दल को जिताने की हर संभव कोशिश करते हैं।  बिजुरी नगर की जनता को स्वच्छ पेयजलापूर्ति का भरोसा दिलाते हैं। सवाल तीन हैं,  क्या नेताओं को बिजुरी नगर के पेयजल संकट की याद सिर्फ चुनावी वक्त पर वोटो की फसल काटते समय ही आती है? इस सवाल का जिक्र  इसलिए क्योंकि अगर चुनावी चौसर  पर वोटों की फसल काटते समय बिजुरी नगर के नेताओं द्वारा जनता के समक्ष किए जाने वाले  मखमली    वादो के पन्नो को  अगर पलटा जाए तो  दिखाई तो यही देता है की  चुनाव के समय कमोबेश हर सियासी दल के नेता  जनता से वादा तो यही करते है भरोसा तो इसी बात का दिलाते है कि हमे  चुनाव मे जिताइए, हम जीतने के बाद घर-घर  साफ पानी की व्यवस्था करेंगे।  दूसरा सवाल यह है की जब बिजुरी नगर की जनता प्रदूषित पानी के असरे गुजर बसर करने को मजबूर हो तो फिर जिम्मेदार कौन है? और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण सवाल की इसे सियासत कहें या त्रासदी? 

शायद वक़्त की मांग है की जनता को याचना नहीं अब रण करना होगा। याद रहे, अगला विश्वयुद्ध "जल" के लिए ही होना है।

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