जगत गुरु रामभद्राचार्य के आश्रम में श्री राम पथ गमन काव्ययात्रा का हुआ भव्य स्वागत
अनूपपुर/चित्रकूट
चित्रकूट धाम पहुंचने पर तुलसी पीठ मे पहुंच कर परम पूज्य जगत गुरु रामभद्राचार्य जी के आश्रम में , श्रीराम पथ गमन काव्ययात्रा का भव्य स्वागत हुआ और महाराज श्री के द्वारा आयोजित समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होकर धन्य हो गया। जगत गुरु परम पूज्य रामभद्राचार्य जी का है राम जन्म भूमि आंदोलन में है महत्वपूर्ण योगदान आइये जानते हैं ।
सुप्रीम कोर्ट (SC) में अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद को लेकर सुनवाई पूरी हो चुकी थी और अब सभी को देश के सबसे बड़े निर्णय की प्रतीक्षा थी। लगातार 40 दिनों तक उच्चतम् न्यायालय में दोनों पक्षों की ओर से पेश की गई दलीलों पर देश भर में बहस हो रही थी, जिसमें तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे थे। एक आँकड़े के अनुसार कुल डेढ़ दर्जन पक्षकारों ने सर्वोच्च अदालत में दलीलें पेश कीं, इनमें राम जन्मभूमि मंदिर पक्ष के 11 और बाबरी मस्ज़िद पक्ष के 7 पक्षकारों की ओर से अपनी-अपनी दलीलें पेश की गईं। राम जन्मभूमि मंदिर की ओर से विवादित स्थल पर भगवान राम की जन्म स्थली और राजा दशरथ का महल होने के मजबूत प्रमाण प्रस्तुत किये गये थे। इसके लिये लगभग सभी 11 पक्षकारों की ओर से करीब 437 प्रमाण अदालत के समक्ष पेश किये गये थे, जो दर्शाते थे कि विवादित ज़मीन पर ही भगवान राम की जन्मस्थली है। इसमें कुछ प्रमाण धर्म चक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण जगदगुरु रामभद्राचार्यजी की ओर से भी उपलब्ध कराये गये थे।
जब जस्टिस ने प्रश्न किया, ‘वेदों से सिद्ध कर सकते हैं क्या ?
अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान जब हिंदू पक्ष की ओर से विवादित स्थल ही भगवान राम की जन्म स्थली होने के पक्ष में वेद-पुराणों, रामायण आदि धर्म ग्रंथों के आधार पर एक के बाद एक प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे थे, तब 5 जजों की संविधान पीठ में शामिल एक जज जस्टिस एस. ए. नज़ीर ने खिन्न होकर हिंदू पक्ष के वकील से पूछा कि ‘आप लोग हर बात में वेदों से ही प्रमाण माँगते हैं, तो क्या वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि राम का जन्म अयोध्या में उसी स्थल पर हुआ था ?’ इस पर अदालत में वादी के रूप में उपस्थित प्रज्ञाचक्षु जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी ने एक क्षण भी न गँवाते हुए कहा कि ‘दे सकता हूँ महोदय !’ इसके बाद उन्होंने वेदों की जैमिनीय संहिता से उधारण देना शुरू किया, जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का सटीक ब्यौरा देते हुए उन्होंने राम जन्मभूमि की स्थिति बताई। इसके बाद अदालत के आदेश से जैमिनीय संहिता मँगाई गई और उसमें जगदगुरु की ओर से निर्दिष्ट संख्या को खोल कर देखा गया तो उनका दिया गया संपूर्ण विवरण सही पाया गया। नक्शे का मिलान करने पर जिस स्थान पर राम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है, विवादित भूमि उसी स्थान पर पाई गई। जगदगुरु के वक्तव्य ने फैसले का रुख हिंदुओं की तरफ मोड़ दिया। इस पर प्रश्न पूछने वाले जज ने भी स्वीकार किया कि ‘आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा। एक व्यक्ति जो भौतिक आँखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उधारण दिये जा रहा था ? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है ?
कौन हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य ?
जगदगुरु रामभद्राचार्य का दीक्षा से पूर्व का नाम गिरिधर मिश्र है। वे उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्म गुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगदगुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं। इस पद पर वे 1988 से प्रतिष्ठित हैं। वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसीपीठ के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे चित्रकूट में स्थित जगदगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं। यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तथा डिग्री प्रदान करता है।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के सांडीखुर्द नामक गाँव में 14 जनवरी1950 को मकर संक्रांति की रात को जन्मे जगद्गुरु रामभद्राचार्य की माता का नाम शचीदेवी और पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्र है। इस प्रकार वे वसिष्ठ गोत्रीय सरयूपारीण ब्राह्मण हैं। उनके पितामह पंडित सूर्यबली मिश्र की एक चचेरी बहन मीरा बाई की भक्त थीं, चूँकि मीरा बाई अपने काव्यों में भगवान श्रीकृष्ण को गिरिधर के नाम से संबोधित करती थी, इसलिये उन्होंने नवजात बालक का गिरिधर नामकरण किया था। जगद्गुरु रामभद्राचार्य की आयु मात्र दो माह थी, जब रोहे के रोग से उनकी आँखों की दृष्टि चली गई थी। इसके बाद काफी डॉक्टरों को दिखाने और हर तरह का उपचार कराने के बावजूद उनकी दृष्टि नहीं लौट सकी। गिरिधर मिश्र एकश्रुत हैं। वे एक बार जो सुन लेते हैं, उसे भूलते नहीं हैं। उन्होंने शिक्षा के लिये भी ब्रेल लिपि का कभी उपयोग नहीं किया। वह सुन कर बोलना सीखे और बोलकर ही अपनी रचनाएँ लिखवाते हैं। उन्होंने 700 श्लोकों वाली भगवद गीता मात्र 15 दिन में सुनकर कंठस्थ कर ली थी। इसी प्रकार 60 दिन में तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस को छंद सहित कंठस्थ कर लिया था। अब वे कई धर्म ग्रंथों को कंठस्थ कर चुके हैं और कई धर्म ग्रंथों की बहुभाषाओं में रचना कर चुके हैं। वे 22 भाषाएँ बोल सकते हैं। वे धार्मिक मुद्दों के निपुण साक्षी के रूप में अदालतों में प्रस्तुत होते हैं। उन्होंने अयोध्या केस में ही इलाहाबाद कोर्ट में भी राम जन्मभूमि मंदिर स्थान को लेकर गवाही दी थी। उनके अनुसार अदालत में राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में 437 मजबूत प्रमाण प्रस्तुत किये गये थे, जिनके आधार पर अदालत का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आ सका।