जनजातीय समाज को धर्मान्तरित लोगों से खतरा -- भगत सिंह नेताम
*भाजपा सरकार संसद में लाए संविधान संशोधन बिल -- बिसाहूलाल सिंह*
*डीलिस्टिंग की मांग को लेकर जनजातीय समाज का विशाल प्रदर्शन*
अनूपपुर
जनजातीय समाज को धर्मान्तरित लोगों से अधिक खतरा है। मूल जनजातीय समाज की रक्षा के लिये हम सबको एकजुट हो कर खडे होने की जरुरत है। संसद में डिलिस्टिंग के प्रस्ताव को पारित करवाना हमारा लक्ष्य है। धर्मान्तरित लोगों से हमारी कोई लडाई नहीं । आप हमारी परंपराओं, प्रथाओं , हमारे धर्म को नही मानते तो आप हमारे नहीं रहे । आप हमारा हक ना छीनें। ये सर्व समाज का बड़ा विषय है। सभी समाज के लोग साथ आएं। झोपड़ी - झोपड़ी, खोपड़ी- खोपड़ी अलख जगाना होगा । जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले अनूपपुर जिला मुख्यालय में जनजातीय समाज के विशाल रैली उपरान्त आयोजित आम सभा को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भगत सिंह नेताम ने उपरोक्त विचार व्यक्त किये। 27 मई 2022 , शुक्रवार की दोपहर उत्कृष्ट विद्यालय प्रांगण में आयोजित जनजातीय समाज के विशाल सभा मे परंपराओं को बचाने के लिये वीर महानायकों शंकर शाह, रघुनाथ शाह, रानी दुर्गावती सहित अन्य को याद करते हुए कहा कि 1950 मे संविधान निर्माण के वक्त एक भूल हुई। इस भूल को लेकर जनजागरण का दायित्व प्राप्त नरेन्द्र मरावी, मध्यप्रदेश शासन के मंत्री बिसाहूलाल, जय सिंह मरावी , कालू सिंह मुजाल्दा, रामलाल रौतेल, मनीषा सिंह, रुपमती सिंह, सुदामा सिंह, रामदास पुरी ,अमोल सिंह के साथ उपस्थित हजारों लोगो को संबोधित करते हुए कहा कि धर्मान्तरण करने के बाद लोग जनजातीय समाज की परंपराओं , प्रथाओं को छोड़ देते हैं और आरक्षण की सुविधाओं का लाभ उठाते रहते हैं। ऐसे लोगों को डिलिस्ट करके आरक्षण के लाभ से वंचित कर देना चाहिए। रियल स्टेट कानून के तहत अंग्रेज कलेक्टर को जनजातीय समाज की जमीनें आवंटित करने का अधिकार था। जिसके तहत छत्तीसगढ़ के कुनकुरी मे एशिया के सबसे बड़े चर्च के लिये जमीन दी गयी। देश में ऐसे हजारों उदाहरण हैं । अनेक विषयों पर विचार करने के बाद संविधान का निर्माण हुआ। गाँव में रहने वाले व्यक्तियों के साथ छुआछूत, असमानता, अस्पृश्यता के कारण जनजातीय समाज को आरक्षण दिया गया। कोई अनुजाति वर्ग का व्यक्ति जिसे आरक्षण मिला हो, यदि वह इस्लाम, इसाई धर्म स्वीकार करने पर आरक्षण का लाभ शून्य हो जाएगा।अनु जनजाति के लिये संस्कृति, प्रथा, परंपराओं को लेकर अनु 342 में प्रावधान किया गया । रामप्रसाद पोट्टाई बस्तर समय पर अपनी राय नहीं दे पाए। जय पाल सिंह मुण्डा ने कह दिया कि जनजाति समाज को किसी धर्म में नहीं बांधा जा सकता। उसका कोई धर्म नहीं होता। फूट डालो - राज करो की इसी नीति से राज किया गया। देश में जागरुकता तब भी बहुत थी। जनजातीय समाज के 225 से अधिक सांसदों ने इसका विरोध किया। डा कार्तिक उराव ने 1966,मे इस मुद्दे को उठाया 235 सांसदों के साथ।
सरकारी नौकरियों में अधिकांश पदों पर कनवर्टेड क्रिस्चियन भर गये। उनके प्रयास का परिणाम यह हुआ कि बडी संख्या में जनजातीय समाज के सांसद चुन कर आए। 341 मे जैसा प्रावधान sc के लिये है 342 में वैसा प्रावधान st के लिये हो। ज्वाईंट पार्लियामेंटरी कमेटी ने इसका प्रस्ताव रखा। तब के प्रधानमंत्री भी कन्वर्टेड थे ,जिनके विरोध के कारण लोकसभा में चर्चा ही नहीं हुई। संशोधन विधेयक पुन: प्रस्तुत 14 नव 1970 को यह प्रस्ताव पास हुआ। नागालैंड और मेघालय के मुख्यमंत्री ने इसके विरुद्ध भारत से अलग होने की धमकी दी। 24 नव 1970 को कार्तिक उरांव के बोलने के पहले व्हिप जारी कर दिया गया। तब मौन रह कर पार्टी के पक्ष में बोलना पडता है। 27 नव को लोकसभा भंग कर दिया गया। जनजातीय समाज को अधिकारों से वंचित करने का षड्यंत्र किया गया। कार्तिक उरांव ने दुखी हो कर किताब लिखी 20 वर्ष की काली रात। उन्होने कहा कि आजादी के 75 वें वर्ष में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। जनजातीय समाज दस करोड में से चार करोड़ लोगों ने धर्मान्तरण कर लिया है। हम मौन रहेंगे तो हमारी भावी पीढी कभी माफ नहीं करेगी। आप भी उस पाप के भागीदार हैं। हम रहें या ना रहें ,समाज रहेगा। कन्वर्टेड लोगों का लगभग 80 % पदो पर प्रशासनिक पदों पर कब्जा है और 50% पदों पर राज्य सेवा मे सरकारी पदों और सत्ता पर कब्जा कर रहे हैं। मूल जनजातीय समाज की रक्षा के लिये खडे होने की जरुरत है। डिलिस्टिंग के प्रस्ताव को पारित करवाना हमारा लक्ष्य है। अन्याय से मुक्ति चाहिये ...हमें न्याय चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मध्यप्रदेश शासन के मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि 37 हजार वर्ष पहले से जनजातीय समाज है। गोंडवाना सबसे पुराना स्थान है । धर्मान्तरण और धर्मान्तरित हुए लोगों के विरुद्ध जनजाति सुरक्षा मंच अच्छा कार्य कर रहा है। जन चेतना ला रहा है। छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड में कांग्रेस और 20 राज्य में हमारी भाजपा की सरकार है। सब मिल कर संसद मे संविधान संशोधन बिल क्यों नहीं लाते ?
हमारे विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति...हमें आन्दोलन करने की जरूरत क्यों ? उन्होने सबसे निवेदन करते हुए कहा कि हम इस देश के मूल निवासी हैं। आरक्षण समाप्त करना तो दूर यदि इसका विचार भी किसी के मन में आया तो बड़े -- बड़े पदों पर बैठे लोग उन पदों पर नहीं रहेगें। मुख्यमंत्री तक अपने पद पर नही रहेंगे । अंग्रेजों ने देश के अलग अलग हिस्सों में कब्जा कर लिया लेकिन जनजातीय क्षेत्र में कब्जा नहीं कर सके। तब उन्होंने कुछ लोगों को मिशनरी का पादरी बना कर भेजा। हिन्दू धर्म शुरु से है। कुछ लोग लालच में पड़ कर इसाई बन गये। मिजोरम, असम, त्रिपुरा, मेघालय में 90 % लोग ईसाई बन गये। लोग अपनी सुविधानुसार आदिवासी, मूल निवासी, जनजाति कहते हैं। शंकराचार्य द्वारा चार धाम की स्थापना से पहले से हम हैं। पहले आदिवासी शहरों में ही रहते थे। आर्यों के आने के बाद वैदिक काल में धर्मग्रंथों की रचना हुई। चारों युगों में आदिवासी रहे हैं। सब आदिवासी एक हो जाएं तो झारखण्ड, मध्यप्रदेश जैसा तीन अलग राज्य बन सकता है। मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री एवं जयसिंहनगर विधायक जयसिंह मरावी ने कहा कि धर्मान्तरण देश को कमजोर करने की विदेशी साजिश का हिस्सा है। हमारे पुरखों ने अपनी संस्कृति, परंपराओं, प्रथाओ की रक्षा के लिये बलिदान दिये। इसके बिना हमारा जीवन अधूरा है। जापान में क्वाड सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने जनजातीय समाज की कलाकृति को आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को भेंट करके हमे गौरवान्वित किया ।
पूर्व विधायक एवं अजजा आयोग के पूर्व अध्यक्ष रामलाल रौतेल ने कहा कि जनजातीय समाज षड्यंत्र का शिकार है। धर्मान्तरण एवं धर्मान्तरित लोगों के विरुद्ध जनजाति विकास मंच का सराहनीय प्रयास है। मप्र कोल जनजाति विकास संस्थान का समर्थन देते हुए उन्होंने कहा कि कोल समाज के लोग अभाव में जीवन जी रहे हैं लेकिन धर्मान्तरण नहीं कर रहे।
जैतपुर विधायक मनीषा सिंह ने कहा कि जनजातीय समाज के अधिकारों की सुरक्षा के लिये समाज के सभी लोगों को एकजुट होकर डीलिस्टिंग की मांग के लिये आवाज उठाना होगा। उन्होंने समाज से धर्मान्तरण के विरुद्ध जागरुक होने की अपील की।
दमोह से आए जिला सत्र न्यायाधीश प्रकाश सिंह उईके ने संग्राम शाह, रघुनाथ शाह जैसे शहीदों के वंशजों को प्रणाम् करते हुए कहा कि यह एक कानूनी लडाई है और कानूनी विसंगति है। हमारे समाज का व्यक्ति जज, आई ए एस, सांसद, मंत्री, विधायक बन जाए , यदि हम 40 रुपये की लकडी का गट्ठा बेंचने वाले के हितों का रक्षा ना कर पाए तो सब बेकार है। इसके लिये सामाजिक जागरुकता लाने की जरुरत है। कालू सिंह मुजाल्दा ने कहा कि पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में धर्मान्तरित लोगों का बहिष्कार करें। इससे पूर्व कार्यक्रम की प्रस्तावना सोहन जी ने रखा । जबकि स्वागत भाषण देते हुए पूर्व विधायक, मंच के जिला संयोजक सुदामा सिंह सिंग्राम ने कहा कि इससे पूर्व 14 राज्यों के राज्यपालों को इस मांग से अवगत कराते हुए ज्ञापन सौंपे गए । साथ ही मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , अरुणाचलप्रदेश , उत्तरप्रदेश , गुजरात , झारखण्ड , आसाम के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर उनका समर्थन मांगा गया । भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय केरल से सम्बंधित एक वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्म बदलने के बाद कोई व्यक्ति उस जनजाति का सदस्य रहा या नही यह इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसा व्यक्ति धर्मांतरण के बाद भी क्या सामाजिक रूप से अयोग्य - कमजोर है और क्या वह अब भी अपनी पुरानी जाति के रीति - रिवाज और परम्पराओं का पालन कर रहा है ? ( केरल बनाम चन्द्रमोहन एआईआर 2004 सर्वोच्च न्यायालय 1672 ) जनजाति समाज में सभी रीति - रिवाज , सामाजिक व्यवस्था एवं पारंपरिक उत्सव आदि हमारे आराध्य देवी - देवता तथा देव स्थान के प्रति आस्था एवं विश्वास पर आधारित होते हैं । धर्मान्तरित होते समय व्यक्ति को अपने देवी - देवताओं और प्रकृति पूजा का त्याग करना जरूरी होता है ( बाईबल मे ईसाई होने की अनिवार्य शर्त ) । तो फिर क्या वह अपनी - अपनी धर्म संस्कृति का पालन एवं रक्षण कर सकते हैं ? हम सब जानते हैं कि जहाँ तक " सामाजिक रूप से अयोग्य कमजोर " होने का धर्मान्तरित व्यक्ति धर्म न बदलने वालों से तो अच्छी स्थिति में हो ही जाता है । प्रश्न हैं तो यह व्यावहारिक रूप से असंभव बात है कि हरेक मामले में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाए कि अमुक - अमुक धर्मान्तरित व्यक्ति इसका पालन नहीं कर रहा, अतः उसे जनजाति से बाहर घोषित किया जाए । इसके लिये यह आवश्यक है कि एक स्पष्ट कानून बनाते हुए धर्मान्तरित होते ही उसे अनुसूचित जनजाति से बाहर कर आरक्षण की सारी सुविधाओं से वंचित किया जाए । ईसाई को प्रधान बनने पर लगाई रोक आदिवासी से ईसाई बनने के बाद परम्परागत रूप से गाँव के मुखिया के चुनाव में भाग लेने पर रोक लगाने के मेघालय के एक शासकीय आदेश को गोवाहाटी उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कर न्यायोचित एवं वैध ठहराया कि ऐसे मुखिया को परम्परा के अनुसार गाँव के धार्मिक अनुष्ठान एवं प्रशासनिक दोनों कार्य एक साथ करने पड़ते हैं और एक धर्मांतरित ईसाई ऐसा नहीं कर सकता है । ऐसा धर्मांतरित ईसाई आदिवासी अब देश में कहीं भी गाँव का मुखिया नहीं बन सकता । ऐसे लोग अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक दोनों को देय सुविधाओं के लाभ उठा रहे हैं जो अनुचित , अनैतिक एवं संविधान की मूल भावना के विपरीत हैं । ( ऐवान लांकेई रिम्बाई बनाम जयंतिया हिल्स डिस्ट्रिक्ट कॉउंसिल एवं अन्य 2006 , 3 स्केल ) - उपरोक्त निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने हमारी मांग का समर्थन किया है और जनजातिय हितों की रक्षा की है । गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के ललन सिंह उईके सहित अन्य लोगों ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का प्रभावी और ओजस्वी संबोधन पूर्व अजजा आयोग अध्यक्ष एवं जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक नरेन्द्र मरावी ने तथा आभार प्रदर्शन अमोल सिंह ने किया। इससे पूर्व पुष्पराजगढ, जैतहरी, अनूपपुर ,कोतमा से आए हजारों जनजातीय समाज के लोगों ने नगर में रैली निकाली । सलैया, दैखल, बीजापुरी, बोदा सहित अन्य नृत्य दलों ने कला का मनमोहक प्रदर्शन करके मन मोह लिया।