धूमधाम से मनाई गई ईद और परशुराम राम जयंती, हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे को दी शुभकामनाएं
अनूपपुर
विश्वभर में फैली कोरोना महामारी के चलते बीते दो साल से जिस तरह से प्रतिबंधों के बीच ईद का त्योहार मनाया जा रहा था उसके बाद इस साल वैसा माहौल नहीं है। एक बार फिर लोग पहले की तरह पूरे हर्षोल्लास से ईद का त्योहार मना रहे हैं। मंगलवार सुबह मस्जिदों और ईदगाहों पर नमाजियों की भीड़ और उनका उत्साह बताता है कि इस बार की ईद उनके लिए कितनी खास है। सुबह से ही नमाजी ईदगाहों और मस्जिदों में पहुंचे और ईद की नमाज अदा की। बच्चे-बूढ़े-जवान हर उम्र के लोगों ने एक-दूसरे के गले मिल ईद की मुबारक दी। जिला मुख्यालय अनूपपुर में वार्ड क्रमांक 2 में स्थित ईदगाह में सुबह 7:30 बजे ईद की नमाज अदा की गई अनूपपुर वक्फ बोर्ड के पूर्व जिला अध्यक्ष लियाकत अली ने जानकारी देते हुए बताया कि अलविदा जुमे के दिन ईद की नमाज के लिए निर्धारित किए गए समय सुबह 7:30 बजे ईद की नमाज जामा मस्जिद के हाफिज मो सलमान ने अदा कराई इस अवसर पर अनूपपुर सहित आसपास के गांव के मुस्लिम भाइयों ने ईदगाह पहुंचकर नमाज अदा की साथ ही बताया की मुसलमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। त्यौहार पर शांति व्यवस्था बनाए रखने अन्य व्यवस्थाओं के लिए वक्फ बोर्ड के पूर्व जिला अध्यक्ष लियाकत अली ने अनूपपुर कलेक्टर सोनिया मीणा पुलिस अधीक्षक अखिल पटेल अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक राजन, अनु विभागीय दंडाधिकारी कमलेश पुरी, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस कीर्ति बघेल,तहसीलदार भागीरथी लहरें, थाना प्रभारी प्रवीण साहू को मुस्लिम समाज की ओर से धन्यवाद ज्ञापित किया गया है |
परशुराम जयंती पर ब्राम्हण समाज ने निकाली रैली, मुस्लिम समाज ने फूल बरसाकर किया इस्तकबाल
एक-दूसरे को दी शुभकामनाएं,श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया भगवान परशुराम प्राकट्योत्सव अनूपपुर। ऋषि संस्कृति के प्रखर प्रकाश पुंज भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती अक्षय तृतीया का पावन पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ अनूपपुर, चचाई, राजेन्द्रग्राम, अमरकंटक, बिजुरी, कोतमा, राजनगर, संजय नगर, जैतहरी सहित अन्य स्थानों पर लोगों ने श्र्राध्दा और उल्लास से मनाया। उल्लेखनीय है कि हिन्दू समाज के लिये अक्षय तृतीया एवं भगवान परशुराम प्राकट्योत्सव अत्यंत शुभ, सिद्ध एवं सर्वकल्याणकारी पर्व होने के कारण सुबह से ही लोगों ने पूजा अर्चना की तथा एक दूसरे को शुभकामनाएं दी। वहीं सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस बल तैनात किया गया था।
एक तरफ देश में लगातार बिगड़ते सांप्रदायिक तनाव है तो दूसरी तरफ अनूपपुर नगर की हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने एकता की मिसाल पेश करते हुए मुस्लिम धर्मावलंबी ईद का त्यौहार मना रहे हैं ब्राह्मण समाज द्वारा भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम की जयंती पर पुरानी बस्ती् स्थिति बूढ़ीमाई से भगवान परशुराम की शोभायात्रा निकाली गई जो समातपुर हनुमान मंदिर में समाप्त हुई। दोनों धर्मों के त्योहार मनाएं जा रहे हैं जहां भाईचारा और प्रेम के साथ एक दूसरे के त्योहारों पर बधाइयां दी गई वही अनूपपुर बस स्टैंड में मुस्लिम समाज परशुराम जयंती पर ब्रह्म समाज द्वारा निकाली गई शोभायात्रा का स्वागत फूलों से किया और ठंडा शरबत पिला कर भारत की एकता और अखंडता बरकरार रखने का संदेश देने की कोशिश की। दोनों धर्म के प्रमुखों ने इसे भाईचारा और प्रेम का प्रतीक बताया। ब्रह्म समाज ने कहा कि ब्रह्माण शरीर का मस्तिष्क माना जाता है जिस पर जवाबदारी है कि सभी समाज और धर्म को लेकर साथ चलें। कोतमा में भगवान परशुराम जयंती के अवसर पर विप्र बंधुओं ने ठाकुर बाबा प्रांगण में भगवान परशुराम का पूजन उपरांत कन्या भोज का आयोजन किया गया। जिसमें हम सभी विप्र बंधुओं शामिल हुए। कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र थे। धार्मिक ग्रंथों में बताया जाता है कि ऋषि जमदग्नि सप्त ऋषियों में से एक थे। ऐसा किवंदतियां प्रचलित हैं कि भगवान परशुराम का जन्म 6 उच्च ग्रहों के योग में हुआ था, जिस कारण वे अति तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी थे। इनके बारे में किए वर्णन के अनुसार प्राचनी काल में एक बार इन्होंने अपने पिता की आज्ञा पर अपनी माता का सिर काट दिया था। परंतु बाद में अपने पिता से वरदान के रूप में उन्हें जीवित करने का वचन मां को पुन: जीवित कर लिया था। इसी प्रकार जब परशुराम ने क्षत्रियों को मारना बंद कर दिया, तो उन्होंने खून से सना अपना फरसा समुद्र में फेंक दिया, इससे समुद्र इतना डर गया कि वह फरसा गिरने वाली जगह से बहुत पीछे हट गये समुद्र के पीछे हटने से जो जगह बनी वो केरल बना, इसी मान्यता के आधार पर केरल में परशुराम की पूजा की जाती है। शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। शस्त्रो में अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।