पद- रथ यात्रा ने दिया धर्म ,आध्यात्म और समरसता का संदेश- मनोज द्विवेदी
*समाज के सभी वर्ग के लोगों ने दिखलाई एकजुटता*
*( मनोज कुमार द्विवेदी -- अनूपपुर- मप्र )*
अनूपपुर जिला अन्तर्गत कोतमा से माता शारदा देवी के धाम मैहर के लिये इस वर्ष 15 तारीख से 21 अक्टूबर तक पद - रथ यात्रा आयोजक मंडल के सौजन्य से एक नितान्त धार्मिक यात्रा का आयोजन किया गया। आयोजक मंडल को इस यात्रा की सफलता के साधुवाद और इसमें शामिल श्रद्धालुओं के रुप में सनातन समाज के विभिन्न सहभागियों यथा व्यापारी, कृषक, मजदूर, नौकरीपेशा, समाजसेवी, पत्रकारों और राजनैतिक - गैर राजनैतिक वर्ग के लोगों से बढ कर बडी संख्या में मातृ शक्तियों की सहभागिता के लिये जितना भी आभार प्रकट करें, जितना ही अभिनन्दन करें , वो सब कम ही होगा। इस यात्रा की तैयारी, उसका अनुपालन, उसमें व्याप्त धार्मिक - आध्यात्मिक सद्भावना की चर्चा के बिना पद - रथ यात्रा की पूर्णता नहीं हो सकती। समाज के सभी वर्गों ने तन, मन, धन, श्रम, मंशा, भावना के अनुरुप यथा संभव अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है। वह कोतमा का युवा वर्ग ही है जिसने अपनी बेजोड़ सनातनी विचारधारा के अनुरुप यात्रा की योजना का कुशल....अति कुशल संचालन किया है। बिना किसी प्रत्याशा , बिना किसी लालसा के की गयी इस यात्रा का सफल क्रियान्वयन ही ईश्वरीय कृपा का परिचायक है। हजारों - हजार बाल, किशोर, युवक - युवतियों, बुजुर्गों ,दिव्यांगों के साथ इस समागम की सफलता दैवीय कृपा के बिना तो संभव ही नहीं थी।
*पद थके नहीं-- तन झुके नहीं*
15 अक्टूबर को कोतमा से शुरु हुई मैहर के लिये इस धार्मिक -- आध्यात्मिक यात्रा का पहला पड़ाव फुनगा था। यहाँ श्रद्धालुओं की संख्या कुछ सैकड़ा रही होगी। इसके बाद अनूपपुर नगर होकर चचाई, बुढार, शहडोल, घुनघुटी, माता विरासनी जी की नगरी पाली, ज्वाला देवी का उचेहरा धाम, उमरिया होकर मैहर के शारदा मन्दिर तक पहुंचते - पहुंचते इस विशाल शोभा यात्रा में अनुमानित दस हजार लोग शामिल हो चुके थे। किसी ना किसी रुप में यात्रा को सफल बनाने वालों की संख्या लाखों में आंकी गयी है। प्रतिदिन सुबह छ: बजे शुरु होने वाली यात्रा के श्रद्धालुओं की दिनचर्या सुबह चार बजे से देर रात तक अनवरत चलती ही रहती थी। ना बच्चे और ना ही बुजुर्गों के कदमों में कभी थकावट दिखी और ना ही उनके शरीर झुके दिखे।
*धर्म , आध्यात्म की लहर देख भावुक हुए लोग*
श्रद्धालुओं की भीड़ में एक नेत्रहीन बालक और लगभग 90 वर्षीया माता जी के साथ तमाम ऐसे लोग थे , जिन्हे कोई आमंत्रण , कोई हल्दी- सुपारी यात्रा के लिये नहीं दी गयी थी। जिसने भी पद - रथ यात्रा के बारे में सुना , वह स्वत: स्फूर्त तरीके से यात्रा में शामिल होता गया। सभी के मन , मस्तिष्क, चेहरों पर इस पवित्र यात्रा के प्रति आदर ,सम्मान ,श्रद्धा भाव था। सभी भक्तगण अपने - अपने तरीके से यात्रा करते हुए भजन, कीर्तन, सुमिरन, स्तुतियों के माध्यम से प्रभु वंदना में लीन दिखा। ना तन - मन का ध्यान और ना ही भोजन - विश्राम की चिंता....सच्चिदानंद स्वरुपाय... की भावना के साथ धर्म, आध्यात्म की विशाल लहर में सभी उतराते देखे गये। पैर - पैर चलते हुए...विश्राम का अवसर हो या भोजन - स्वल्पाहार का समय...भजन ,कीर्तन , देव सुमिरन को तनिक भी विश्राम नहीं मिला। देवी माता की स्तुतियों, जयकारों के साथ देवी गीत के गायन से लोग भाव विभोर थे।
*जगह- जगह हुई देवी माता की पूजा*
पद - रथ यात्रा की जान यात्रा में शामिल देवी जगत जननी की अतीव सुन्दर प्रतिमा युक्त सुसज्जित रथ था। वाहन को माता के रथ का मनभावन स्वरुप दिया गया था। जिसमे हर वक्त पुजारी जी विधिवत पूजा - अर्चना करने के साथ - साथ शंख, घंटा, घड़ियाल कॆ नाद से वातावरण को भयमुक्त करते रहे। साथ चलने वाले एवं मार्ग में मिलने वाले सभी भक्तों को माता का प्रसाद वितरित किया जाता रहा। कोतमा से मैहर के बीच सैकड़ों छोटे - बड़े स्थानों पर मार्ग में श्रद्धालुओं , भक्तों द्वारा देवी माता की पूजा, आरती की जाती रही। स्थान - स्थान पर स्थानीय समाजसेवियों , स्वजनों द्वारा स्वल्पाहार, भोजन, चाय , पानी की व्यवस्था भी की गयी थी। रात्रि विश्राम के लिये सुनिश्चित स्थानों पर पाण्डाल लगाए गये थे
*सनातन परंपराओं का जीवंत दर्शन*
एक ओर जब विश्व के अन्य हिस्सों के साथ भारत में भी हिन्दुत्व और सनातनी विचारधारा, परंपराओं पर योजनाबद्ध प्रहार किये जा रहे हों तो ऐसे समय में पद - रथ देवी यात्रा का धार्मिक - आध्यात्मिक महत्व काफी बढ जाता है। इस पद रथ यात्रा में बड़ी संख्या में किशोरवय और युवा वर्ग के लोग शामिल हुए। उन्होंने इस यात्रा के दौरान बड़े नजदीक से धार्मिक परंपराओं, पूजा विधि, कर्मकांड को समझने की कोशिश की। यह एक पूर्णतया धार्मिक ,आध्यात्मिक यात्रा थी , जिसमें चार से अधिक जिलों के सैकड़ों गाँव के हजारों हिन्दू , सनातन धर्मावलंबियों ने हिस्सा लिया। यह व्यक्ति को व्यक्ति से, समाज को आध्यात्म से और समाज को समाज से जोड़ने का अभिनव प्रयोग था , जो सफल रहा। शक्ति आराधना के पर्व नवरात्रि के दौरान यह यात्रा प्रारंभ हुई। बहुत से देवी भक्तों ने नौ दिन का उपवास रखते हुए शक्ति आराधना की और इस पुनीत यात्रा में शामिल हुए। निश्चित रुप से इस धार्मिक यात्रा का पुण्यफल उन्हे, उनके परिजनों को प्राप्त होगा।
*अनुशासन और कुशल प्रबंधन की मिसाल बनी पद - रथ यात्रा*
कोतमा के व्यवसायी, समाजसेवियों द्वारा पद रथ यात्रा की तैयारी के लिये पूर्व के अनुभवों और तय की गयी योजना का भरपूर उपयोग किया गया। यात्रा की सफलता , उसमें व्याप्त अनुशासन और कुशल प्रबंधन का परिचायक है। यात्रियों के भोजन, विश्राम सहित एक - एक बिन्दु पर विधिवत चर्चा करके , उसके लिये पूरी तैयारी की गयी तथा सभी योजनाओं का कुशल जमीनी क्रियान्वयन करके दिखलाया गया। देवी माता के रथ के साथ श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये बसों, कारों के साथ टैंट , राशन- भोजन हेतु अलग - अलग वाहन और दलों को साथ रखा गया था। तय विश्राम स्थल पर श्रद्धालुओं के पहुंचने से पूर्व ही वहाँ इन सुविधाओं की तैयारी पूरी हो जाती थी। आपातकाल के लिये एक एंबुलेंस की व्यवस्था भी थी। शहडोल जिला और पुलिस प्रशासन ने अपनी सीमा के भीतर सुरक्षित , कुशल यात्रा के लिये पर्याप्त तैयारी की थी। इसके साथ ही पद यात्रियों में यात्रा के दौरान स्वत: स्फूर्त अनुशासन का प्रबल भाव था। एक यात्री अपने आसपास के अन्य यात्रियों का भी बराबर ध्यान देते दिखे। इसी के चलते पूरी यात्रा के दौरान कहीं कोई अनहोनी नहीं हुई।
*सामाजिक समरसता की बनी मिसाल*
पद - रथ यात्रा राजनीतिक विचारधारा से अलग सभी वर्ग लोगों को समाहित किये हुए एक समरस यात्रा थी। एक ऐसी यात्रा ! जिसमें साथ चलने ,रहने, पूजन - अर्चन, भजन- कीर्तन , भोजन - विश्राम के दौरान कहीं कोई जाति, वर्ग भेद नहीं था। पद रथ यात्रा मजबूत सामाजिक समरसता की ऐसी जीवंत मिसाल बना , जिसके दर्शन पूरी यात्रा के दौरान होते रहे। आज यदि इस यात्रा को महात्मा गाँधी, बाबा साहब अंबेडकर की आत्माएं देख रही होंगी तो बहुत खुश होंगी। सभी जाति, वर्ग के लोगों को एक साथ, समभाव के साथ साथ चलते, साथ रहते , साथ भोजन करते देखना देश के लिये प्रसन्नता दायक रहा है।
पद रथ यात्रा समाज में धर्म , आध्यात्म का भाव प्रबल करने के साथ - साथ सामाजिक समरसता के ताने बाने को मजबूत करने में सफल रहा है । यह देश के लिये एकता का भाव प्रसारित करने वाला शुभ संदेश है। इस पुनीत ,सफल, कुशल कार्य के लिये कोतमा के युवाओं, आयोजक मंडल , सभी श्रद्धालुओं, पद रथ यात्रियों को मैं ससम्मान प्रणाम् करते हुए उनके प्रति आभार प्रदान करता हूँ ।