शिक्षक दिवस सेवानिवृत्त आचार्यों के नाम- कुलपति प्रो. प्रकाश मणि त्रिपाठी

शिक्षक दिवस सेवानिवृत्त आचार्यों के नाम-  कुलपति प्रो. प्रकाश मणि त्रिपाठी


अनूपपुर/अमरकंटक

शिक्षक दिवस समारोह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के डॉ लक्ष्मण हवानुर सभागार में कोविड-19 की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से संपन्न हुआ। दीप प्रज्वलन एवं मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रो. एम. एल. श्रीवास्तव; पूर्व डीन, विज्ञान संकाय, दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर एवं डॉ. प्रेम शंकर पाण्डेय; आयुष विभाग, बीएचयू, वाराणसी तथा मुख्य अतिथि प्रो. के.के. त्रिपाठी; पूर्व प्रमुख, चिकित्सा विभाग, बीएचयू, वाराणसी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी द्वारा की गई। 

सर्वप्रथम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के सेवानिवृत्त प्रोफेसरों जैसे प्रो. हौशिला प्रसाद, प्रो. किशोर शंकर, प्रो. प्रदीप भार्गव, प्रो. नरोत्तम गान एवं प्रो. दिलीप सिंह का अभिनंदन व सम्मान विश्विद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी द्वारा शाल,श्रीफल एवं श्रीमद्भागवत गीता से किया गया। तत्पश्चात अतिथियों का सम्मान किया गया।

आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. के.के. त्रिपाठी द्वारा योग को मानव जीवन का शिक्षक बताते हुए इसके विभिन्न आसनों को पीपीटी के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया। वहीं विशिष्ट अतिथि प्रो. एम. एल. श्रीवास्तव द्वारा 5 सितंबर के महत्व को बताते हुए स्पष्ट किया गया कि विश्वविद्यालय में चलाये जा रहे समस्त पाठ्यक्रमों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारतीय शिक्षा के प्रति जो दृष्टिकोण था उसकी झलक देखने को मिलती है। 


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा गया कि 'ये शिक्षक दिवस सेवानिवृत्त आचार्यों के नाम है'। जिनकी तपस्या एवं शिक्षा पद्धति से विश्विद्यालय की शैक्षणिक नींव मजबूत हुई है। कुलपति ने शिक्षक को पारस बताया कि जिस तरह पारस के छूने मात्र से कोई भी धातु सोना बन जाती है, ठीक उसी तरह शिक्षक द्वारा दी हुई शिक्षा से छात्र उच्च आदर्शों एवं उच्च चरित्र को प्राप्त करता है और जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा के आधार पर आगे बढ़ता है। अतः शिक्षक को हमेशा याद रखना चाहिए कि उसके ज्ञान से विद्यार्थी, समाज, राष्ट्र और मानवता का निर्माण होता है। मनुष्य के बाल्यापन से लेकर वृद्धावस्था तक के जीवन में कोई ना कोई शिक्षक उसको प्रतिपल शिक्षित करता रहता है। वो बात दूसरी है, कि उस शिक्षक को कोई जल्दी से पहचान नहीं पाता है। एक शिक्षक होना सिर्फ आजीविका चलाने का साधन नहीं है, क्योंकि शिक्षक ईश्वर का रूप है, वह ईश्वर के द्वारा पृथ्वीलोक पर भेजा गया है। इसलिए शिक्षक को स्व: मूल्यांकन करते रहना चाहिए, क्योंकि वह समाज के लिए आदर्श है। शिक्षक को हमेशा चेतना का प्रसार करते रहना चाहिए जिससे भावी पीढ़ी का निर्माण होता है। शिक्षक को हमेशा याद रखना चाहिए कि उसके ज्ञान से सिर्फ संस्थान में आ रहे छात्र ही शिक्षित नहीं होते हैं बल्कि आंचलिक समाज भी शिक्षित होता है। शिक्षा निरंतर चलती है बिना अवरोध के यह एक सतत प्रक्रिया है इसलिए शिक्षक को कभी भी संकीर्ण सोच का नहीं होना चाहिए। भारत में शिक्षक के सम्मान की परम्परा अत्यंत प्रचीन है। हिन्दू धर्मग्रंथो में भी इसका उल्लेख मिलता जिसमें ईश्वर ने शिक्षक को श्रेष्ठ मानकर उसकी वंदना की है। आज पूरी दुनिया में भारत की पहचान ज्ञान के माध्यम से हो रही है। शिक्षक और शिक्षा के माध्यम से एक भारत एवं श्रेष्ठ भारत के साथ-साथ संसार में भारत का स्थान श्रेष्ठतम होगा। मैं ऐसी कामना करता हूँ, कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्विद्यालय, अमरकंटक एक आदर्श विश्विद्यालय बनकर उभरेगा। इसकी पहचान विश्व पटल पर होगी, जिसकी जबाबदारी हमारे शिक्षकों के कंधों पर है। 

इस अवसर पर कुल 7 पुस्तकों का विमोचन किया गया जिसमें श्री राम और गांधी से लेकर कैंसर की रोकथाम कि तकनीक को लिपिबद्ध किया गया है। इन पुस्तकों के लेखकों को कुलपति एवं सम्मानित मंच द्वारा बधाई दी गई।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीत कुमार मीणा (सहा.प्राध्यापक - इतिहास विभाग, आपकी 3 पुस्तकों का विमोचन हुआ।) द्वारा किया गया तथा शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एम.टी.वी. नागराजू द्वारा कार्यक्रम का परिचय एवं स्वागत उद्धबोधन दिया गया। विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री पी. सिलुवैनाथन द्वारा आभार व्यक्त किया गया। कार्यक्रम को तकनीकी रूप से सफल बनाने में डॉ. अभिषेक बंसल का योगदान रहा। कार्यक्रम में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से विश्विद्यालय के अधिष्ठाता (अकादमिक) प्रो.आलोक श्रोत्रिय, कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र सिंह भदौरिया, वित्त अधिकारी श्री ए. जेना तथा शिक्षक एवं कर्मचारीगण के साथ-साथ बड़ी संख्या में विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

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