संतान के लिए पूजा अर्चना कर, ब्रत रखकर धूमधाम से मनाया हलछठ का त्यौहार
अनुपपुर/कोतमा
हलछठ का पर्व शनिवार को बड़े ही उत्साह पूर्वक जिला मुख्यालय सहित पूरे क्षेत्र में मनाया गया। महिलाएं संतान के लिए व्रत रखते हुए विधान से पूजन अर्चना की। और पूजा अर्चना के बाद विधान के साथ पसही का चावल, भैस का दही, महुआ एवं अन्य चीजों के साथ खाकर अपना ब्रत पूर्ण किया।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलछठ या हरछठ के रूप में मनाया जाता है। इस बार हलछठ पूजन व व्रत 28 अगस्त शनिवार को मनाया गया। इसे पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, हलछठ, हरछठ व बलराम जयंती के रूप में भी जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हलषष्ठी व्रत किया जाता है। बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मुसल है। इसलिए उन्हें हलधर के नाम से भी पुकारा जाता है और उन्ही के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है।
हलषष्ठी के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर दीवार पर गोबर से हरछठ चित्र मनाया गया। इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं। इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखा जाता है। हलषष्ठी की पूजा में पसाई के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज चढ़ाया जाता है। इसमें भूने हुए गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं। इसके बाद हलषष्ठी माता की कथा सुनने का भी विधान है।
हरछठ पर क्षेत्रीय स्तर पर वैसे तो बहुत सी कथाएं कही जाती हैं लेकिन यह कथा विशेष रूप से प्रचलित है। एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक बार वह गर्भवती और दूध बेचने जा रही थी तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी इसलिए वह अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई। उस दिन हर छठ व्रत था।और सभी को भैंस का दूध चाहिए था लेकिन ग्वालिन ने गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने उसके बेटे के प्राण हर लिए। ग्वालिन जब लाैटकर आई तो रोने लगी और अपनी गलती का अहसास किया। इसके बाद सभी के सामने अपना गुनाह स्वीकार पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता प्रसन्न हो गई और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इस वजह से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र हेतु हर छठ का व्रत व पूजन होता है। शनिवार को सुबह से ही माताएं स्नान कर पूजन की तैयारी में जुट गई उसके उपरांत नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में एवं को लांचर क्षेत्रों में विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया उसके उपरांत महिलाओं ने व्रत का पारण किया।