पुत्र की लंबी उम्र के लिए मातायें रखेगीं कल हल षष्ठी का व्रत
अनूपपुर/कोतमा
हर साल भादों मास की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. हलषष्ठी व्रत के 1 दिन पूर्व शुक्रवार को बाजारों में भीड़ बनी रही दिन भर माताएं बाजारों में जाकर पूजन सामग्री की खरीदारी करती नजर आई बाजारों में मिट्टी के चुकडी पसही का चावल सतंजा सहित अन्य पूजन सामग्रियों की खरीदारी करती नजर आई बाजारों में सुबह से लेकर देर शाम तक भीड़ बनी हुई थी ।
*श्रीकृष्ण और बलराम*
हर साल भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी पर्व मनाया जाता है. इस बार ये व्रत 28 अगस्त को पड़ रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. इस पर्व को विभिन्न राज्यों में हलछठ और ललई छठ के नाम से जाना जाता है. महिलाएं इस व्रत को अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए रखती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं ।
*हल षष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त*
पंडित सुशील द्विवेदी ने बताया कि कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अगस्त के दिन शुक्रवार को शाम 06 बजकर 50 मिनट पर शुरू हो जाएगी और अगले दिन 28 अगस्त को रात 8 बजकर 55 मिनट तक रहेगा. इस दिन सुबह – सुबह उठकर माताये महुआ के डाल से दातून करेगी एवे डोरी की खली से स्नान करेंगी और व्रत का संकल्प लें. इस दिन पूजा – अर्चना करने के बाद निराधर रहगी और शाम के समय में पूजा करने के बाद फलाहार करती हैं. इस व्रत को करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है. महिलाएं इस दिन घर के बाहर गोबर से छठी माता का चित्र बनाती हैं. इसके बाद विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती हैं.
व्रत के दिन छोटे कांटेदार झाड़ी की एक शाखा, पलाश की एक शाखा और नारी जोकि की शाखाओं को एक गमले में लगाकर पूजा -अर्चना करेंगी महिलाएं पलाश के पत्ते पर दूध और सुखे मावे का सेवन कर व्रत का पारण करती है. इस दिन गाय की दूध से बनी दही का सेवन नहीं किया जाता है. इस व्रत को पुत्रवधू महिलाएं करती हैं. शास्त्रों के अनुसार, दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम के समय में पसही का चावल और महुए से पारण करने की मान्यता है. इस व्रत को महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए करती हैं और नवविवाहित महिलाएं पुत्र की कामना के लिए करती है.
धार्मिक कथा के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान कृष्ण के जन्म से पहले ही शेषनाग ने बलराम के अवतार में जन्म लिया था. बलराम का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है. इसलिए उन्हें हलदर भगवान कहा जाता है ।