पिता एक उम्मीदअपने मजबूत कंधों से देते हैं सबको सहारा- वंदना खरे

 दिनांक 20/6/2021

शीर्षक- ........ "उम्मीद"

विषय -------- "पिता एक उम्मीद"

     ---- स्वरचित



आज के विषय पर कुछ पंक्तियाँ.....

पिता इस उम्मीद में हर दम घुलता रहता है, उम्मीद हर किसीको है हर किसी से, पिता उम्मीद लगा कर बैठा है ,जो मैं ना कर सका बेटा कर दिखाएगा। उसको 

काबिल बनाने के लिए पिता किसी भी मेहनत से घबराता नहीं, हर मेहनत वह कर गुजरता है, अपने बस से बाहर सुविधाएं जुटाने में दिन रात एक कर देता है ,बस इसी उम्मीद पर जो.. मैं ना कर सका मेरा बेटा कर दिखाएगा,,,,,, यही तो है पिता से बच्चे की उम्मीद.... और बच्चे की पिता से उम्मीद.....

कितना मजबूत स्तंभ घर का,

 अपने ही अंदर समेटा अपने को,

कभी किसी को न बताया अपना दर्द ,

बस सब कुछ सह लिया हंसते-हंसते,

 न बताया न जताया हर दर्द सह लिया।

 कमा कर लाना घर परिवार चलाना

 आता है उन्हें ,

अपने लिए जीना जैसे आता ही नहीं उन्हें,

न कोई खर्चा न कोई शोक,

 जिंदा रहते हैं घर परिवार के लिए,

 अपने मजबूत कंधों से देते हैं सबको सहारा ।।

माता पिता हर बच्चे के आइडियल होते हैं हीरो होते हैं ,,,एक मुक्तक आप सबके समक्ष रख रही हूंँ, आजकल के युवाओं की हर खुशी बस एक दिन की होती हैं....

जताना आता है उन्हें,,,,अपने प्यार को....

यह भी बहुत बड़ी बात है ,पहले लोग जताते नहीं थे प्यार को अपने...

 facebook whatsapp पर यह एक दिन का प्यार दिखता है ,उसी पर यह पंक्तियांँ हैं,,, 

 यह जो नया नया सा अंदाज चल पड़ा है। एक दिन के त्योहार का रिवाज चलपड़ाहै।

 कैसे नापोगे माँ बाप के प्यार को तुम । जाने किस और ये समाज निकल पड़ा है। (सम्मान का ये कैसा रिवाज चल पड़ा है।

वंदना खरे "मुक्त" समाज सेविका चचाई जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

साहित्यिक मित्र मंडल ,जबलपुर


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