प्रेस स्वतंत्रता दिवस की बधाई, कलम के सिपाही को कब मिलेगा न्याय- पत्रकार आदर्श दुबे

 प्रेस स्वतंत्रता दिवश की बधाई पत्रकारो के इस दर्द के साथ।


आदर्श दुबे न्यूज़ नेसन संवाददाता अनूपपुर ✍️

बधाई आपको भी मुझे भी दिन आज स्वतंत्रता का है इस स्वतंत्रता में पहरे कितने यह जानना भी जरूरी । 

लोगो को न्याय के लिए लड़ने बाला माइक और कलम लेकर घूमने बाले कलम के सिपाही को खुद कितना न्याय मिला।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में 142 स्थान पर भारत है 

प्रेस स्वतंत्रता के मुद्दे पर काम करने वाली 

अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विद आउट बॉर्डर' (आरएसएफ) की अभी हाल की  रिपोर्ट के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में भारत 142वें स्थान पर खिसक गया है.

2020 की यह वर्तमान भारतीय रैंकिंग पिछले साल से भी दो स्थान नीचे है. अपनी रिपोर्ट में भारत पर टिप्पणी लिखते हुए आरएसएफ ने कहा कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ लगातार दर्ज हो रहे क़ानूनी मामले भारत की गिरती रैंकिंग की एक बड़ी वजह है ।

प्रेस की स्वतंत्रा के स्तर में देशव्यापी गिरावट आयी है ।

कमिटी फोर प्रोटेक्शन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) को यह जानकारी है कि देश में पत्रकारों की वर्तमान स्थिति को भारत भर में प्रेस की स्वतंत्रता के स्तर में आई गिरावट का एक प्रतिबिम्ब है बात-बात पर पत्रकारों को क़ानूनी नोटिस थमाना उन्हें प्रताड़ित करने का ही एक तरीक़ा है जिससे वह नेताओ और अधिकारियों के रवैये की खिलाफत ना कर पाए सच सामने लाना जुर्म बन रहा है अब भारत में।

सवाल है क्यों अटका पड़ा है देश का 'पत्रकार सुरक्षा क़ानून'?

चुनावी जुमले से पत्रकार भी हो जाते है खुश बाद में ठन ठन गोपाल । हाल में ही छतीशगढ़ ने पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की बात कही भूपेश सरकार ने बड़े जोर से यह मुद्दा रखा पर पता नही क्या लगा की आज तक कानून बनाना छोड़ अब तो कोई जिक्र भी नही होता , चुनाव के समय या पत्रकारों पर हुए बड़े हमलों के समय सोसल मीडिया में पत्रकारो के सुरक्षा के लिए आवाज बुलंद होने लगती है उसके बाद ठन ठन गोपाल।

प्रताड़ना की कितनी परतें ?

इस प्रताड़ना में छोटे शहरों में काम करने वाले पत्रकारों की परत का ज़िक्र किया जाए तो  पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज हो रहे गंभीर क़ानूनी मामले पूरी समस्या का एक बड़े लक्षण मात्र हैं.

बड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्रकारों के लिए यूएपीए का इस्तेमाल होता है लेकिन छोटे ज़िलों में बिना किसी सपोर्ट सिस्टम के काम करने वाले पत्रकार कलेक्टर के एक नोटिस या कई बार तो सिर्फ़ 144 तोड़ने के आरोप में ही जेल के अंदर भर दिए जाते हैं. बड़े शिकार के लिए बड़ा हथियार और छोटे शिकार के लिए छोटा. एक पर यूएपीए लगाया बाक़ी के दस अपने आप शांत हो जाएँगे. इस महामारी की आड़ में विरोधी स्वर दबाए जाते रहेंगे । 

यह बात तो हुई पूरे देश के पत्रकारों की आप अपने जिले कि स्थिति का आंकलन कीजिये कि जब भी कोई अवैध कार्य हो या प्रशाशन के रवैये ,भ्रटाचार की खबर बनाने पर कैसे तिलमिलाकर सांठ गांठ कर पत्रकारों पर प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं । क्या इन बातों को कोई सुनेगा या पत्रकार अपने  गिरती सुरक्षा व्यवस्था से वही मुंह मोड़ लेगा जहां समाज नही चाहता।

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