कोयला कर्मियों को क्यों नही मिल रहा फ्रंटलाइन का दर्जा?
अनुपपुर
कोरोना महामारी के दौर में जब सारी दुनिया अपने घरों में वर्क फ्रॉम होम का कार्यक्रम कर रही थी ताकि उनके और उनके परिवार को विषाणु संक्रमित न कर सके, उस वक्त सैकड़ो मीटर जमीन की गहराई में कहे या फिर कड़कड़ाती धूप में कहे, जमीन के भीतर कहे या खुली खदानों में, एक कोयला मजदूर ही था जो इस देश की रोशनी को जलाए रखने के लिए कोयला उत्पादन कर रहा था, आज भी वही कोयला मजदूर बेपरवाह अपने और अपने परिवार के जान के, खदानों में उतर रहा है, कोयले के उत्पादन को जारी रखा हुआ है, देश की अर्थव्यस्था को सम्हालने में मजबूती से अपना योगदान दे रहा है, उसके बावजूद सवाल यही पैदा होता है कि क्यों नही कोयला कर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा दिया जा रहा है??
*अकस्मात हो या वैक्सीनेशन, कॉलरी का अहम योगदान*
प्रारंभिक दौर में कई कॉलियरी क्षेत्रों में कॉलरी द्वारा संचालित अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में वैक्सीनेशन का कार्यक्रम सफल रूप से संचालित हुआ, क्षेत्र की बिजली से लेकर पानी तक कि सारी व्यवस्था कॉलरी के ही कर्मियों पर निर्भर है, यहां तक कि अकस्मात के दौर में जब लोगों की सेहत बिगड़ती है तो कॉलरी के द्वारा ही नियुक्त चिकित्सक व परिचारिकाएँ, आज भी पूरी तन्मयता से अपनी ड्यूटी निभा रही है, फिर भी कॉलरी के कोयला कर्मी न जाने किस नजरिये से फ्रंटलाइन वर्करों में नही गिने जा रहे है यह बात बेहद आश्चर्यचकित करता है।
*कोयला मजदूर लगातार हो रहे है संक्रमण का शिकार*
इतने के बावजूद भी शायद सरकार द्वारा कोयला कर्मियों को फ्रंटलाइन दर्जा प्रदान न किया जाए, फिर भी कोयला कर्मियों की दैनिक दिनचर्या और कर्तव्यपरायणता को तो रोका नही जा सकता है, आज भी लगातार कोयला कर्मी कोरोना विषाणु से संक्रमित हो रहे है, न जाने कितने कोयला मजदूर अपने परिवारों को निराश्रित छोड़ चले गए, उसके बावजूद अगर कोयला मजदूर आज भी खदानों में उतर रहा है तो यह उसके भीतर की मानवता है, वह जानता है कि अगर वह खदानों में कोयले का उत्पादन बन्द कर दे तो पूरे देश की रोशनी बन्द पड़ जाएगी, बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, कितने क्षेत्र तो खदानों से निकले पानी पर आश्रित है वो सभी क्षेत्र सूखा ग्रस्त हो जाएंगे, फलतः पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी।
सोचने वाली बात है, की कोयला कर्मी अगर काम बंद कर दे तो क्या क्या कर सकता है।
ठीक है कोई बात नही, भले किसी कोयलाकर्मी की जान उसके परिवार की छत उजाड़ दे पर सरकार के लिए तो वह जान महज़ एक आंकड़ा ही रह जाएगा।
मानवता के नाते यह इस देश के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।