मै आधुनिक नारी, सब पर भारी, अंदर रखती हूं खुद्दारी, जीत सकती दुनिया सारी

मै आधुनिक नारी, सब पर भारी, अंदर रखती हूं खुद्दारी, जीत सकती दुनिया सारी (उपासना सिंह परिहार की कलम से)



 मै हूं आधुनिक नारी, जो है सब पर भारी

अपने अंदर रखती हूं एक खुद्दारी। 

जिससे जीत सकती हूं दुनिया सारी।

मै हूं आधुनिक नारी। 

नारी जीवन में चाहे कितने भी संघर्ष हैं सबको स्वीकारा मैंने हर्ष से।

जिन्होंने ये नारी जन्म दिया मुझे 

हूं मै उनकी आभारी।

मै हूं आधुनिक नारी , जो है सब पर भारी।

बड़े दुखो को झेलकर नारी एक जीवन जीती है । अपमान और दुख दर्द के घूंट को पीती है। हर नारी का सम्मान करो। उसका कभी भी मत अपमान करो। 

अपने अंदर मै रखती हूं दुनिया सारी।

मै आधुनिक हूं नारी, जो सब पर भारी।

नारी एक है रूप अनेक है।

जिसके आगे संसार भी माथा टेक है।

बेटी, बहन , पत्नी , मां हर रूप में संभालती हूं अपनी  जिम्मेदारी

मै हूं आधुनिक नारी जो है सब पर भारी। 

जब पैदा हुई थी, तब सोचा भी नहीं था कि इतने संघर्ष करना पड़ेगा।

 अपने अधिकारों , खुद की पढ़ाई , नौकरी और बच्चे के जन्म तक इतने दर्द सहना पड़ेगा।

फिर भी हर जगह  संघर्ष करके मै कभी नहीं हूं हारी।

मै  हूं आधुनिक नारी , जो सब पर भारी है। 

सभी नारियों को मेरा सलाम है।

रोशन करना हमें देश का नाम है।

इसी तरह निरंतर आगे बढ़ते रहना है। जुर्म और अत्याचार अब हमें नहीं सहना है।

कठिनाइयों से अब हमे नहीं डरना है।

लड़ी हूं अपने अधिकारों के लिए और आज भी लड़ाई है जारी।

मै हूं आधुनिक नारी जो है सब पर भारी।

अपने अंदर रखती हूं एक खुद्दारी 

जिससे जीत सकती हूं दुनिया सारी।

धन्यवाद। 

उपासना सिंह परिहार विवेकनगर अनूपपुर (म.प्र.)

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