पद उतरते ही शिष्टाचार याद आया पूर्व जिला कांग्रेसाध्यक्ष को

पद उतरते ही शिष्टाचार याद आया पूर्व जिला कांग्रेसाध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल को (अरविंद बियानी की कलम से)


अनूपपुर 


पद की गरिमा क्या होती है और पद मुक्त होने की गरिमा क्या होती है यह अब पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल को समझ में आने लगी।होली के बहाने शिष्टाचार मुलाकात इसका ताजा उदाहरण है।जब तक पद में थे जब तक शिष्टाचार कहां दफन हो गया था पद उतरते ही शिष्टाचार आपसी भाईचारा नजर आने वाले पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष को शोभा नहीं देता।इतना ही शिष्टाचार था तो हिंदू धर्म के अन्य धर्मों के कई त्यौहार पड़े जब जाकर मुलाकात करते तो शिष्टाचार समझ में आता।आज जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद उनकी चाह के अनुरूप जिसे वह चाहते थे नहीं मिल पाया तो खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली बात यहां चरितार्थ होते दिख रही है।किसी भी संगठन में चाहे वह किसी भी दल का हो 14-14 वर्ष तक कोई अध्यक्ष पद पर काबिज नहीं रहता।लेकिन पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल को ऐसी छत्रछाया मिली थी कि उस छत्रछाया में उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था।एक तरफा अध्यक्ष थे लाख विरोध होने के बाद भी वह पद पर कायम रहे। लेकिन जिस दिन उनके काफी करीबी कांग्रेस में कद्दावर नेता रहे बिसाहूलाल सिंह ने पाला पलटा उस दिन से ही उनके अध्यक्ष पद को लेकर खतरा मंडराने लगा।परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे वह कांग्रेस को कमजोर करने के लिए आदिवासी नेता की उपेक्षा प्रारंभ कर दिए।जिसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष माननीय कमलनाथ जी ने काफी गंभीरता से लिया एवं समाचार पत्रों में सुर्खियों में आ चुके पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल की खबरों की कतरन प्रदेश से लेकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तक पहुंचने लगी परिणाम यह हुआ एक तरफा अध्यक्ष पद से उनको मुक्त कर साइट का रास्ता दिखा दिया गया।जिससे वह पूरी तरह नरभस हो गए और अपने पुराने गुरु बिसाहूलाल सिंह की शरण में चले गए और उस मुलाकात को शिष्टाचार की मुलाकात बता

दिया।जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल को पता होना चाहिए कि इसके पहले भी कई त्यौहार चले गए तब तुम्हारा शिष्टाचार कहां गया था जब तुम्हारा भाईचारा कहां गया था।  आज जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर आदिवासियों के मसीहा आदिवासियों के नेता पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक फुन्देलाल सिंह मार्को की नियुक्ति से तुम इतने भयभीत हो गए कि संगठन की मान मर्यादा संगठन के लोगों को किनारे कर तुम अकेले अकेले रात के अंधेरे में अपने गुरु के पास चले गए और जब मीडिया की सुर्खियों में आए तो सफाई देने लगे की होली के शुभ अवसर पर शिष्टाचार मुलाकात करने गया था।इस मुलाकात को तो तुम ने राजनीतिक रंग खुद दे दिया और तुम्हारे साथी कहां चले गए थे उनको भी अपने साथ ले जाते।अकेले-अकेले क्या पका कर आ गए...?अब यह वक्त उसी का इंतजार कर रहा है। आज नहीं तो कल वह सच्चाई भी जनता की पटल पर तुम्हारी मुलाकात को लेकर आ जाएगी।विधानसभा उपचुनाव के परिणाम तुम्हारी सच्चाई को जग जाहिर कर चुका है और होली की मुलाकात क्या गुल खिलाएगी आने वाला समय बताएगा।

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